Wednesday, February 24, 2016

देखने, सुनने और गुनने का संस्कार देती कलाएं

कलाएं देखने, सुनने और गुनने का संस्कार देती है। खजुराहो नृत्य समारोह में 'कलावार्ता' के अंतर्गत दिए व्याख्यान के केन्द्र में यही सबकुछ साझा किया। 

सुखद लगा, विश्व के बेहतरीन नृत्य आयोजनोें में से एक 'खजुराहो नृत्य महोत्सव' कलाओं के अंर्तसंबंधों का संवाहक बनता जा रहा है। जब बोल रहा था, सुनने वालों में नृत्य से जुड़ी देश की प्रतिभाएं थी, चित्रकार थे, नाट्य कलाकार थे और थे साहित्य की संवेदनाओं से जुड़े वह रचनाकार भी जो कलाओं में सौंदर्य की मेरी अनुभूतियों का रस ले रहे थे। 

...कलाओं के विशाल भव से स्वयं भी तो निरंतर साक्षात् होता वहां अपने को संपन्न पा रहा था। कभी न भुला देने वाली अनुभूतियां सहेजे देह से लौट आया। ...मन की यात्रा तो अविराम है. 


Sunday, February 14, 2016

जीवनगत सरोकारों की बारीक पड़ताल


सुधीर तैलंग काटूर्निस्ट भर नहीं थे, उम्दा इंसान और संस्कृति के रेखीय पोषक भी थे। यह सही है, वह राजनीतिक विषयों को लेकर ही अधिकतर काटूर्न बनाया करते थे पर समाज के विदु्रप को भी वह अपनी पैनी नजर से अपने कार्टूनों में निरंतर उघाड़ते  रहे। याद है, देश में गणेश जी को दूध पिलाने की अफवाह जब तेजी से फैली और सारा देश गणेश मूर्तियों को दूध पिलाने में लगा था, उनका एक कार्टून आया। इसमें लंबोदर गणेश की तोंद बहुत अधिक बड़ी दिखाई दे रही है,। पास में उनका वाहन चूहा हंस रहा है और मदर डेयरी का टेंकर खड़ा दिखाई दे रहा है। वाहन चालक कह रहा है, ‘प्रभू! यह अंतिम टैंकर है।’(माने सारा दूध तो आपको पिला दिया गया है) उनके इस काटूर्न को लेकर अंधश्रद्धालुओं ने बवाल भी खूब मचाया परंतु सुधीर तैलंग ने समाजगत रूढि़यों को उघाड़ते अपनी रेखाओं की धार को कभी कुंद नहीं होने दिया।  
राजनीति के अंदरूनी सच को उनकी रेखाओं ने परत दर परत निरंतर उघाड़ा। उनका एक कार्टून अभी भी जेहन में बसा है। कार्टून क्या, सच को बयां करने का उनका वह अंदाज न भूला देने वाला है । काली रेखाओं से उकेरा कमाण्डों सुरक्षा में खड़ा है और सिंहासन रूपी कुर्सी पर सफेद झक्क कपड़ो में नेताजी विराज रहे है। उनके इस कार्टून का कैप्सन है-‘ब्लेक कमांडो एण्ड व्हाईट ऐलिफेंट’। नेताओं को सफेद हाथी कहने की ऐसी कार्टून व्यंजना के बहु़तेरे दसरे आयामों में उन्होंने देश की राजनीति के अंदरूनी सच को सदा ही अपने व्यंग्य चित्रों से उभारा। उनका कहना भी था, राजनेता जनता के लिए उपयोगी भले नहीं हो परन्तु कार्टून बनाने वालो के लिए काम आने वाले कोई हैं तो वह राजनेता ही है। 
उनसे कभी भेंट का सुयोग नहीं हुआ पर उनके व्यंग्य चित्रों की धार देखने को मन लालायित सदा ही रहा। एक कार्टून संसद का उन्होेंने कभी बनाया था। मानसून सत्र चल रहा है, संसद परी तरह से पानी में ड़ूबी है, नेताजी संसद की छत को फाड़ बाहर निकले है। संसद जैसे गुहार कर रहीं है-बचाओ बचाओ। मुझे लगता है, अच्छे व्यंग्य चित्र यहीं करते है। वे आपको अंदर तक झकझोर देते है। कंधार अपहरण के दौरान पूर्व मंत्री जसवंत सिंह का तालिबानी वेश में बनाया कार्टून हो या फिर मुंबई आतंकवादी हमलों के दौरान बनाये कार्टूनों की उनकी वह श्रृखंला जिसमें सभी देश को, मीडिया को संबोधित करने में व्यस्त है-आतंकवादियों से निपटने की किसी को कोई फुर्सत नहीं है। 
मुझे लगता है वह जो कुछ घटित हो रहा होता  उसी को नहीं बल्कि उसके अंतर्निहित उस सच पर भी जाते जिस पर आमतौर पर ध्यान जाता नहीं है। उनकी रेखाओं मे समय-परिवेश से जुड़ी संवेदनाओं का अंदरूनी राग निरंतर ध्वनित होता रहा है। एक बड़ी विशेषता उनकी रेखाओं की यह भी लगती है कि वहां स्थान विशेष की संस्कृति के परिवेश की छाप खास तौर से नजर आती है। माने किसी राज्य  से जुड़ा कोई कार्टून उन्होंने बनाया है तो उसमें उससे जुड़े परिवेष की सूक्ष्म व्यंजना भी वहां मिलेगी ही। उन पर आरंभ में यह आरोप भी लगा कि वह अंग्रेजी के कमजोर कार्टूनिस्ट है पर बाद में उनकी रेखाओं और सधे कैप्षन इस बात के गवाह भी बने कि विचार से जुडे तीव्रतम संवेग में वह जीवनगत सरोकारों को बारीकी से खंगालते विसंगतियोें पर गहरा प्रहार करने वाले थे। यहीं कारण था कि देखने के बाद भी उनके कार्टून आंखो में सदा के लिए बसते थे। 
सुधीर तैलंग का मानना भी था कि लोकतंत्र में कार्टूनिस्ट की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। इसलिए कि वह समाज में जो कुछ हो रहा है या फिर होने की आषंका है-उसके लिए पाठकों को जागरूक करता है। यह आसान नहीं है कि प्रतिदिन कोई शानदार विचार आपके दिमाग में आए ही परन्तु कार्टूनिष्ट के पास राजनेता है जो जनता के लिए नहीं पर कार्टूनिस्टों के लिए पूरें दिन कार्य करने को तैयार है। उनके कहे के इस मर्म में कार्टून कला के मर्म को गहरे से समझा जा सकता है। उन्होंने निरंतर कार्टून बनाए। काटूनिष्ट के रूप में इलेस्ट्रेड विकली में उन्होंने काम किया। हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए बरसों उन्होंने कार्टून बनाए। टाइम्स आॅफ इण्डिया और नवभारत टाइम्स भी उनके कार्टूनों से सजता रहा। अपने कार्टूनों में उन्होंने भारतीय राजनीति का जैसे रेखीय व्यंग्य इतिहास लिखा। 
सुधीर तैलंग निरंतर कहते भी रहे, कार्टून की हरेक लाईन का अपना जीवन होता है। हरेक लाईन कुछ कहती है। वह जीवंत होती है। उनके भीतर के उम्दा इंसान को इसी से समझा जा सकता है कि कभी उन्होंने कपिलदेव का सात फुट का व्यंग्य चित्र बनाया था, इसकी निलामी से मिली राशि को उन्होंने बच्चों के फंड में दान कर दिया था। इसी प्रकार भोपाल गैस त्रासदी में हताहत हुए लोगों की राहत के साथ ही उन्होंने राजस्थान के सूखा प्रभावित लोगों के लिए भी अपने कार्टूनों की बिक्री कर राशि जुटाई थी। 
सुधीर तैलंग राजनेताओं की मुखाकृतियों के बहाने उनके भीतर अपनी रेखाओं से जैसे झांकते थे। कार्टून में विचार के संवाहक सुधीर की रेखाओं का सुघड़पन और कंपोजिशन सेंस के साथ ब्रश-स्टोक घटनाओं, स्थितियों का आकाश स्पन्दित करता था। वह नहीं है परन्तु उनकी रेखाएं और उनमें व्यंजित जीवन से जुड़े सरोकारों पर रखी पैनी नजर सदा हमें उनकी याद दिलाती रहेगी।

Sunday, February 7, 2016

अन्तःसौन्दर्य का गान

स्वामी संवित सोमगिरी अभियांत्रिकी अध्यापन से बरसों तक जुडे़ रहे हैं पर मन वैराग्य में रमा, सो वेदान्त का अध्ययन व साधना करने सब कुछ छोड़-छाड़ सन्यासी हो गए। वेद-पुराणों के साथ ही भगवद्गीता पर उनकी सूक्ष्म दीठ के प्रकाषित साहित्य ने सदा ही मन मोहा है पर इधर सद्य प्रकाशित उनका काव्य संग्रह ‘प्रणव ने हृदय में गाया’ पढ़ते प्रकृति और जीवन के नए संदर्भों से साक्षात् होता है। 
उपनिषदों के आलोक का हममें वास कराता यह ऐसा संग्रह है जिसमें किसी सन्यासी की अनुभूतियो की अनूठी दीठ है। प्रकृति के विरल अभिप्राय हैं तो संवेदनाओ की वह दार्षनिक व्यंजना भी जिसमें प्रकृति और व्यक्ति के होने की तलाश को नए अर्थ दिए गए हैं। 
प्रकृति और जीवन के बाह्य परिवेष के सौन्दर्य के बहाने भीतर के राग की रस वृष्टि यहां है। यह है तभी तो सोमगिरिजी जी संग्रह में अपने को पूर्णता से भरने का आग्रह करते ‘मुझे आकाष कर’ जैसे शब्दों में वात्सल्य को नए अर्थ देते आंखों में आकाश और क्षितिजों को पलकों में भरने को उद्यत होते हैं। 
‘प्रणव ने हृदय में गाया’ रूपी अपने कविता घर में वह ‘गंगा-मां’ से संवाद करते हैं तो ‘श्रीगुरू-अवतरण’ कविता में शब्दों की जैसे गागर छलकाते  हैं, ‘नर तन थरकर/आये गुरूवर/समरस करने/बाहर-अंदर’। ऐसे ही हृदय के अंतरतम भावों का आकाष रचते सोमगिरिजी ‘ओ सूरज! तुम मुझेमें उगो’, ‘ऐसा दो सुनसान मुझे’, ‘षब्दों! सुनो-मत पहनो पराये वसन’, ‘शिल्पित-संस्कृत’ जैसी शब्द व्यंजना में अंतर्मन संवेदनाओं के मर्म से ठौड़-ठौड़ साक्षात् कराते हैं। संग्रह में प्रकृति  और मानवेतर का अंष-अंष शब्दोद्घाटन है। जो कुछ देखा-सुना और छूआ जा सकता है, वही नहीं बल्कि उससे परे की संवेदना को भी इसमें गहरे से गुना और बुना गया है। प्रकृति के अनूठे अभिप्राय संग्रह में है तो अनुभूति की तीव्रता में मर्मस्पर्षी बिम्बों का अनूठा भव भी रचा गया है। यह है तभी तो इसमें बरते शब्द संवेदना की हमारी आंख बनते बहुत कुछ वह दिखाते है जिसे सामान्यतः हम देख नहीं पाते हैं। 
संग्रह में सोमगिरिजी के काव्य संकेत मन को मथते हैं, शब्द नहीं शब्द से जुड़ी संवेदना इसी कारण औचक, बार-बार हममें बसती है। औचक केनोपनिषद् के पढ़े को फिर से जैसे जीने लगता हूं। केनोपनिषद् में ईष्वर, ब्रह्म, परमात्मा के स्वरूप को गुरू द्वारा समझाने के बाद भी षिष्य की फिर से जिज्ञासा है, ‘उपनिषदं भो ब्रूहीति’-मुझे उपनिषद् कहिए। शब्द जहां पहुंच नहीं पाते, सोमगिरिजी के भाव वहां पहुंच-पहुुंच फिर से कुछ और जानने को प्रेरित करते हैं। मन विचारने लगा है, कविता क्या है? अन्तःसौन्दर्य का गान ही तो। लय में अंवेरा संवेदना राग। तो कहूं, ‘प्रणव ने हृदय में गाया’ इसी की व्यंजना है।

कविता संग्रह: प्रणव ने हृदय में गाया
कवि: स्वामी संवित् सोमगिरि
प्रकाषक: मानव प्रबोधन न्यास, शिवबाड़ी, बीकानेर
मूल्य: एक सौ पचास, पृष्ठ: 128