शिविर में मुम्बई के शार्दूल कदम ने अपनी कलाकृति में राम-सीता के जनजातीय स्वरूप के साथ ही अयोध्या के स्थापत्य की व्यंजना में महाराष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत गूड़ी पर्व को भी याद किया। अरण्य प्रवास के उनके चित्र रूपक में राम और सीता के पुष्प आभूषण अलग से ध्यान खींचते हैं। बड़ौदा के राहुल मुखर्जी वृहद विषयों का एक तरह से कैनवस रूपान्तरण करते हैं। उनके चित्र रूप गोठ हैं। उनके एक चित्र का आधार रामायण के सातों काण्डो से जुड़े प्रसंग है। दूसरे चित्र में रघुवंष की व्यंजना भी कुछ ऐसी ही है। गुवाहाटी के दिलीप तामुली ने असम के आदिवासी इलाकों में रची-बसी कार्बी रामायण के राम को अपने चित्र का आधार बनाते आदिवासी राम के चरित्र चित्रण को श्वेत-ष्याम में रचा। उनका चित्र ‘सबिन अलून’ माने राम का गाना है। हेलेन बाला ब्रह्मा भुवनेष्वर की हैं। उनके चित्रों की बड़ी विषेषता है, रेखाओं की ओपती लय और टैक्सचर। अपने एक चित्र में हेलेन ने स्वर्णमृग को उकेरा है। ओडि़सा की सुप्रसिद्ध सम्बलपुरी साड़ी के रंगो को कैनवस पाष्र्व बनाते उन्होंने स्वर्णमृग के बहाने रामायण को आख्यायित किया है।
भोपाल की अपर्णा अनिल ने राम और अयोध्या के राजाओं की प्रतीक और बिम्बों में रेखीय व्याख्या की है। कैनवस में गहरा नीला रंग और उनमें रेखाओं में रचे तीर-धनूष के सुनहरेपन में उन्होंने राम की मर्यादापुरूषोतम छवि की जैसे दृष्य व्याख्या की है। उनके सृजित चित्र में बरते रंग अयोध्या के शासकों के साथ ही राम की असीम उदात्तता और घट-घट में व्याप्त उनके आदर्ष को जैसे व्याख्यायित करते हैं। मुझे लगता है, रंगो की उत्सवधर्मिता में अपने चित्रों में वह रेखाओं का जैसे छन्द रचती है।
मुम्बई के डगलस जाॅन ने अपने कैनवस में अयोध्या नगरी और सरयू का सांतरा चितराम किया है। उनके चित्र में अयोध्या के प्रमुख स्थानों, मंदिरों, हिन्दु और मुगल स्थापत्य के साथ ही सरयू नदी को प्रतीक रूप में उकेरा गया है। दूसरे चित्र में चित्त को आकर्षित करते राम की मोहक छवि है। बहुत सारे गहरे रंग पर धीरे-धीरे परछाई स्वरूप में वह वह उन्हें इस कदर हल्का कर टैक्सचर का हिस्सा बना देते हैं कि उनकी सिरजी आकृतियों से औचक अपनापा होने लगता है। कोलकत्ता के दिप्तिष घोष दस्तीदार के चित्र देखने की हमारी बंधी-बंधाई सोच से जैसे हमें विलग करते हैं। दूर-लघू परिप्रेक्ष्य (परस्पेक्टिव) में वह चरित्रों को सर्वथा नए ढंग से हमारे समक्ष उद्घाटित करते हैं। उनके एक चित्र में धनुष-बाण लिए राम है तो दूसरे में सेतुबंध के दौरान मदद करने वाली गिलहरी को लिए राम है। दोनों में ही रेखाओं की लय अंवेरते उन्होंने राम के चरित्र और घटना विषेष के भावों की गहराई को छूआ है।
पटना के मिलन दास ने लोक में व्याप्त राम-सीता को अपने तई कैनवस मं जिया है। टैक्सचर में बिहार की जनजातीय कलाओं, खासकर मिथिला कला का परिवेष रचते उन्होंने लिपियों की भाव सर्जना में राम लीला को ही जैसे उकेरा है। पीले, हरे, लाल, नीले, सफेद रंगो को कैनवस पर पोतने की बजाय वह जैसे बिखेरते हैं। रंग लय के साथ टैक्सचर में बुने राम और सीता और पाष्र्व में अक्षरों की बुनघट। लोक में गुंजरित रामकथा जैसे उनके कैनवस पर चलायमान है। उनकी कलाकृति बिहार की सुप्रसिद्ध कला मधुबनी का समकालीनता में जैसे पुनराविष्कार है।
जयपुर के विनय शर्मा ने इस बार कला षिविर में सर्वथा नवीन प्रयोग किया। अयोध्या स्थित नया घाट में सरयू नदी के भीड़-भाड़ रहित एक तट को उन्होंने अपने कैनवस का हिस्सा बनाया। श्रीमदभागवत के नवें स्कन्ध में आए अयोध्या के चित्रण को आधार बनाते उन्होंने अपने दूसरे चित्र में सूर्यवंषी राजाओं की परम्परा, यज्ञ से जुड़ी भारतीय संस्कृति और अयोध्या के स्थापत्य अलंकरण को बिम्ब और प्रतीक में रखते हुए रंगो का जैसे छन्द रचा है। लखनऊ के अवधेष मिश्र ने लव-कुष द्वारा पकड़े गए अष्वमेघ यज्ञ के घोड़े को कैनवस पर जीवंत किया है। नीले, लाल, हरे, पीले, भूरे रंगों के घोल में रेखाओं की लय रचते अवधेष ने घोड़े के बहाने जीवन की गति और राम से जुड़ी आदर्ष की भारतीय संवेदना को अपने कैनवस पर जैसे मुखर किया है। उनके दूसरे चित्र में अयोध्या का षिल्प केन्द्र में है। इमारतों की बारीकी में जाते उन्होंने वृत्त में स्थापत्य प्रतीक मछली को भी कैनवस पर बुना है।
अवधेष के चित्रों में स्थान, परिवेष से जुड़ी संवेदना उनके बरते रंगों और रेखाओं में ऐसे ही ध्वनित होती है। चेन्नई के षिवा बालन ने अपने कैनवस पर अयोध्या के कनक भवन की भव्यता को उकेरा तो दिल्ली के एम.के. पुरी ने अयोध्या से भारतीय जन-जीवन के जुड़ाव के आलोक में राम के घट-घट में व्याप्त होने की दृष्य सर्जना की। लखनऊ के राजेन्द्र प्रसाद ने समाधिस्थ राम का चित्रांकन किया है। राम है पर तापस स्वरूप में। रंग और रेखाओं का उनका पाष्र्व तप की भारतीय संस्कृति का आख्यान स्वरूपा है।
बहरहाल, कला षिविर में सिरजे राम और अयोध्या के स्थापत्य विषयक चित्रों में रंगाच्छादन और मौलिक दृष्य प्रभाव कुछ इस तरह से है कि कला में रूप तत्वों का सांगीतिक आस्वाद होता है। भिन्न प्रांत पर राममय भारतीय संस्कृति को कलाकारों ने रंग और रेखाओं में गहरे से जिया है। यह है तभी समालीनता की लय के बावजूद लगभग सभी चित्रों में पारम्परिक भारतीय चित्र शैलियांे की दीठ भी है और है, लोक कलाओं का अलंकरण।