Sunday, June 25, 2017

जिसका मन रंगरेज

कलाओं में अव्वल तो हिन्दी में अच्छी पुस्तके है ही बहुत कम, और जो है उनमें अधिकतर सैद्धान्तिक और अकादमिक घेरे में आबद्ध ऐसी है जिन्हे पढते मन रंजित नही होता। या कहे उन्हें पढ़कर कलाओं से किसी प्रकार का हेत पैदा नही होता। इस दृष्टि से कलाकार और कला समीक्षक देव प्रकाष चैधरी की सद्य प्रकाषित पुस्तक ‘जिसका मन रंगरेज‘ लीक से हटकर कही जा सकती है। सुप्रसिद्ध कलाकार अपर्णा कौर की कला पर केन्द्रित यह ऐसी पुस्तक है जिसमें शब्दों के सांगीतिक भावों का सुमधुर केनवास रचा गया है। पुस्तक में ठोड़-ठोड़ देव प्रकाष के शब्दों की मोहक काव्य व्यंजना में मन रंगो के आलोक से नहाता है तो रेखाओं की लय में आबद्ध होते कलाओं  के सर्वांग से साक्षात भी होता है। अपर्णा कोर के रंगरेज मन की थाह लेते जरा उनके शब्द देखें, ‘‘गुरूनानक के हाथ/ रंगो की एक दोपहर में/खोलते है संसार के द्वार। यही नही वह अपर्णा कोर के बहाने रंगो की प्रार्थना का अमूर्तन भी हममें बसाते है तो झूठ के अंधेरे और सच की धूप के साथ अपनी परछाई और दूसरे की छाया के मध्य कलाओं के लिए बनी जगह की भी अनायास पाठक को तलाष करवा देते है।
‘जिसका मन रंगरेज‘ की बडी विषेषता यह भी है कि इसमें शब्दांडम्बर नही है। थोडे़ शब्द परन्तु अर्धसघनता। वह भी ऐसी कि पुस्तक पढने के बाद  भी कलाकार की कला से जुडी संवेदना को पाठक निरंतर अनुभूत करता रहता है। एक और बडी खासियत इस पुस्तक की यह भी है कि इसमें कविता और चित्रकला का सांगोपांग सहकार है। जरा इन पंक्तियों को देखे, ‘रंगों का पडा़ेस/रिष्तों की महक/गमले की गुलदाउदी में/उतर आया है आसमान।’ 
बहरहाल, पुस्तक अपर्णा कोर की कला यात्रा की बहुत सी अनछूई बाते भी पाठकों से साझा करती है। मसलन बचपन से ही अमृता शेरगिल अर्पणा की पसंदीदा कलाकार रही हैं और महज 9 साल की उम्र में उन्होंने अमृता शेरगिल की पेंटिंग बनाई। यह भी है कि वह जिंदगी को प्रकृति की सबसे खूबसूरत कविता मानती है और अरावली के पहाड़ उन्हे भाते है। और यह भी कि 2010 में जब काॅमनवेल्थ खेल आयोजन हुआ तो अपर्णा ने खेलगांव में सिरीफोर्ट आॅडिटोरियम के आस-पास सड़कों के किनारे दषकों से खडे पेडो की गिनती करती थी और उन्हे परवाह इस बात की थी कि उन पेडो की हरियाली से दिल्ली सदा के लिए महरूम हो जायेगी। उन पर रहने वाले पक्षियों के घोसलें उजड़ जाएंगे। इसके लिए बाकायदा उन्होंने आंदोलन किया। सोनी-महिवाल की प्रेम कहानी से अपार प्यार, कागज की कष्ती बनाने से लेकर केनवास पर आकारों की प्राण प्रतिष्ठा, स्कल्पचर, इंस्टालेषन आदि के अंतर्गत अपर्णा कोर के कला सरोकारों की रोचक दास्तां को पुस्तक में देव प्रकाष ने बखूबी संजोया है।
देव प्रकाष ने पुस्तक में अपर्णा की कलाकृतियों और उनके निहितार्थ को भी गहरे से छूआ है। वह लिखते है, ‘इनके (अर्पणा कौर की कलाकृतियों में) रंगो में कोई घमासान मचा हुआ नही दिखता। कही रंगो का स्पर्ष बहुत हल्का है, मानों रंग किसी सिद्ध आवाज की तरह लगभग गायब हो रहे है।’ वह अपर्णा की कलाकृति ‘ट्रि आॅफ डिजायर’ के बहाने प्रकृति से उनके जुडाव और रंग-रेखाओं को बरतने की मौलिक दीठ भी देते है। स्वयं अपर्णा के शब्दों में, ‘पेंटिंग का मतलब सिर्फ केनवास पर पेंट लगाना भर नही है। यह जीवन का पूरा दर्षनषास्त्र है।’ और इस दर्षनषास्त्र के पन्ने ही देवप्रकाष चैधरी ने ‘जिसका मन रंगरेज’ में अपर्णा से किए एक साक्षात्कार में खुलवाए है। इन खुले पन्नों में वृन्दावन में रहने वाली विधवाओं के जीवन पर बनाई ‘विंडोज‘ श्रंखला की दास्तां है, कबीर श्रंखला और स्ट्रीट आर्ट यानी दीवारों पर किए रिलीफ वर्क के उनके कार्य के साथ ही बहुतेरी दूसरी बातों के साथ उनकी कला में प्रतीकात्मक रूप में आई कैंची से जुडा आख्यान भी पाठक को पृथक से आंदोलित करता है।
अपर्णा की बहुत सारी कलाकृतियों से अलंकृत ‘जिसका मन रंगरेज‘ ऐसी कला पुस्तक है जो कलाकार के बहाने हमे कलाओं की सूक्ष्म सूझ से सम्पन्न करती है। काले, लाल, पीले, हरे और नीले रंगो की प्रार्थना सरीखे शब्दों में इस पुस्तक में रेखाओं का उजास ध्वनित होता है। कहें, पुस्तक पढ़कर मन कलाओं का रसिक ही नही बनता बल्कि रंग-रेखाओं को सुनने-देखने के लिए संस्कारित भी होता है। देवप्रकाष चैधरी के ही पुस्तक में बरते शब्दों में कहूं तो हिंदी में कला पुस्तकों की एकरसता को जीते पाठकों के मध्य ‘मेरा मन रंगरेज’ से ‘...औचक चुप्पी का दरवाजा टूटा है।’   
-दैनिक नवज्योति, रविवारीय परिशिष्ट 25 जून, 2017 

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