Sunday, July 16, 2017

श्रावणे पूजयेत शिवम्


चैत्र प्रतिपदा से प्रारंभ नव वर्ष का पांचवा महिना है श्रावण। पावस ऋतु! ऋग्वेद का एक श्लोक है, जिसमें आया है, ‘...वाचंपर्जन्यानिन्वितांप्रमण्डूकाअवादिषु।।’ माने वर्ष पर्यन्त जो जीव मौन व्रत धारण किए होते हैं, इस ऋतु में बोलना प्रारंभ कर देते हैं। ...तो कहें, मौन व्रत के बाद जीवों के नाद से साक्षात् का माह है श्रावण। जो नास्तिक हैं उनके मन में भी यह श्रावण आस्था का वास कराता है। भगवान शिव का प्रिय जो है यह मास! ...श्रावण से बहुत सारी कथाएं जुड़ी हैं। कहते हैं, महादेव को यह इसलिए अत्यधिक प्रिय है कि देवी सती ने दक्ष के यज्ञ में जब योग शक्ति से शरीर त्यागा तो उससे पहले हर जन्म में षिव को ही पाने का प्रण किया था। दूसरे जन्म में वह हिमाचल की पुत्री रूप में जन्मी। युवावस्था में हिमाचल-मैना की बेटी पार्वती ने इसी श्रावण माह में निराहार रहते कठोर तप किया। षिव प्रसन्न हुए और उनसे विवाह किया। बस तभी से यह समय षिव को सदा के लिए प्रिय हो गया। दूसरी कथा षिव के विष पान से जुड़ी है। कहते हैं इसी माह में समुद्र मंथन हुआ। मंथन से 14 प्रकार के तत्व निकले। बाकी सभी तत्व तो देवताओं और राक्षसों ने ग्रहण कर लिए पर हलाहल विष का पान कौन करे? सृष्टि की रक्षा के लिए षिव सारा विष पी गए। उन्होंने इसे कंठ में धारण किया। जहर के संताप से बचाने उन्हें गंगा जल अर्पित किया गया। बस तभी से श्रावण में षिव के विषेष जलाभिषेक की परम्परा भी जुड़ गई। षिव का जलाभिषेक करने के लिए हरिद्वार, काषी और भी कहां से कहां से गंगाजल लिए कांवर यात्रा करते हैं लोगा। कहते हैं कभी कांधे पर कांवर लिए भगवान श्री राम ने भी सुल्तानगंज से जल  लिया और देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया।
वैदिक परम्परा में उद्घोष भी है, ‘श्रावणे पूजयेत शिवम् ’। त्रिगुण स्वामी हैं षिव। सत, रज और तम गुण भाव को जो प्राप्त करता है, वही है त्रिगुणातीत। जन्म-मरण से अपने भक्तों को मुक्त ही तो करते हैं षिव। इसीलिए श्रावण में षिव पूजन का अर्थ है, मन को साधना। यह मन ही मोक्ष और बंधन का सबसे बड़ा कारक है। कहते हैं, साधना की सबसे बड़ी बाधा चन्द्रमा है। इसी से चित्त अस्थिर रहता है। पर षिव ने अपने मस्तक पर चन्द्रमा को धारण किया हुआ है। सो जो षिव का पूजन करे, उसकी साधना पूर्ण हो जाए। जिसने षिव को साध लिया, समझिए मन को भी उसी ने साधा है। 
श्रावण मंे ही मरकंडू ऋषि के पुत्र मार्कण्डेय ने लम्बी आयु पाने के लिए घोर तप किया। काल के काल महाकाल प्रसन्न हुए और मार्कण्डेय ने मृत्यु को पराजित किया। श्रवण में कथा यह भी आती है कि श्रावण में षिव पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए और वहां उनका स्वागत जलाभिषेक से हुआ। इसलिए श्रावण में षिव के जलाभिषेक का खास महत्व है। बिल्वाष्टकम में षिव पर चढ़ाए जाने वाले बेल पत्रों का रोचक वर्णन है। तीन पत्तियां एक साथ जुड़ी होती है माने षिव के तीन रूपों का ही उनमें वास है-सृजन, पालन और संहार। तीन गुणों की भी यह द्योतक है-सत, रज और तम। तीन ध्वनियों अ,उ,म् से उत्पन्न एक नाद ऊॅं की भी यह द्योतक है और त्रिपुरारी षिव भी तो त्रिनेत्र वाले त्रिषुल धारी हैं। स्वयं वेद स्वरूप हैं षिव। इसीलिए तो कहा गया है, ‘वेदः षिवः, षिवः वेदः’ माने वेद ही षिव है और षिव ही वेद है। 
भगवान षिव के बारे में जब भी विचारता हूं, मन त्वरित उनकी अर्चना को ही उद्यत हो उठता है। ऐसे ही हैं भोले भंडारी। याद है, स्वामी श्री रामसुखदासजी षिव के भस्मलेपन पर बड़ी रोचक कथा सुनाया करते थे। कहते, एक बार षिव कहीं जा रहे थे। देखा कुछ लोग एक शव को ‘राम नाम सत है’ का नाद करते हुए श्मषान ले जा रहे थे। षिव को लगा, अरे वाह! इस शव में राम का वास है। भोले भंडारी शवयात्रा के साथ हो लिए। श्मषान पहुंचे तो देखा, लोगों ने शव दाह किया। कुछ समय वहां रूके और फिर सब अपने-अपने घर चल दिए। षिव वहीं रूक गए। पूरी तरह से जब मुर्दा जल गया तो षिव ने सोचा, इसमें ही राम बसे हुए हैं सो उन्होंने जले हुए शव की भस्म का लेपन कर लिया। बस तभी से षिव भस्म रमाने वाले हो गए। पंचाक्षर स्त्रोत है, ‘नागेन्द्रहराय त्रिलोचनाय, मस्मांगरागाय महेष्वराय।’
आईए, षिव के प्रिय मास श्रावण में हम भी षिव की पूजा-अर्चना कर उन्हें प्रसन्न करें। जल्द प्रसन्न होने वाले देवों के देव हैं महादेव। आषुतोष। काल के भी काल-महाकाल। निपट भोले-भोलेनाथ। रुद्रह्योपनिषद् में षिव के बारे में कहा गया है कि सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित है और सभी देवता रुद्र की आत्मा है। इसीलिए कहा गया है, ‘रुतम्-दुःखम्,द्रावयति-नाषयतीतिरुद्रः।’ यानी भगवान षिव सभी दुखों को नष्ट कर देते हैं। श्रावण में षिव की अर्चना करेंगे तो धरित्रि पर भी सभी दुःखों का शमन होगा। आईए हम षिव के बहाने अपने आपको साधें। चित्त की अस्थिरता को साधने का ही तो पावन पर्व है श्रावण मास।

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