Tuesday, April 11, 2017

शब्दों की उज्ज्वल दीठ ‘एकान्त का मानचित्र’

कवि, कथाकार और नाटयषास्त्र मर्मज्ञ संगीता गुन्देचा की यह पुस्तक सर्वथा भिन्न दृष्टि की कविता और कहानियां का मौलिक दस्तावेज है। संगीत, नृत्य, चित्रकलाओं में रची बसी इस संग्रह की कहानियां दार्षनिकता के रंग में शब्दों का अनूठा उजास लिए है। छन्दों में बिखरी गद्य की लय संगीता गुन्देला की 16 कहानियों में यहां है तो दृष्यालेख सरीखी कविताओं में जीवनानुभूतियों की अनूठी रागात्मकता है। अंतर्मन अनुभूतियों के साथ मनोवैज्ञानिक भावों में रची-बसी संगीता की कहानियों में ध्वनित शब्द ही नही वह अदेखा, अपढ़ा भी पाठक अनुभूत कर सकता है, जिसे शब्दों के बीच का मौन कहते है। 
भाषायी रूढ़ता से परे अंर्तमन संवेदनाओं के आलोक में अदेखे छंद को अंवेरती इस संग्रह की कहानियां प्रयोगधर्मिता के साथ शब्दों के जिस भाव में ले जाती है, वह पाठकों को लुभाता है। कहें उनकी इस संग्रह की कहानियों में समय का मौन बजरिए शब्द मुखरित हुआ है। मसलन संग्रह की ‘छन्द’ कहानी को ही लें। कहानी नहीं एक तरह से यह शब्द गीत है। ऐसा जिसमें भाषिक विवेचना के केन्द्र में मनोभावों का सागर रचा गया है। दुनियाभर की भाषाओं की अन्व्तिि में अपने होने, उस क्षण को अनुभूत करने की यात्रा का कहानी मार्मिक विवेचन है जो हममें अनायास घट कर औचक दूर हो जाता है। संगीता गुंदेचा की कहानियां की यही विषेषता है, वहां जीवनानुभूतियों की क्षण विवेचना है। गहरी संवेदना के साथ शब्दों का अपूर्व उजास वहां है। एक कहानी की पंक्तियां देखे, ‘वहां का आकाष, वहीं का आकाष था, यहां का पानी वहीं का।’
एकांत का मानचित्र,-संगीता गुंदेचा 
(कहानिया एवं कविताएं)
सूर्य प्रकाशन मंदिर, नेहरू मार्ग, बीकानेर
मूल्य : २५० रूपये, प्रथम संस्करण २०१६
बहरहाल, एकांत का अर्थ प्रायः अकेलेपन से लिया जाता है परन्तु कथाकार संगीता गुंदेचा की कहानियां पढंेगें तो यह भी पाएंगे वहां एकंात आत्म से जुड़ी संवेदना की सूक्ष्म व्यंजना है। यह है तभी तो उनकी कहानियां अपने आप से संवाद के अनूठे राग में अंतर्मन संवेदनाओं से साक्षात् कराती है। इनमें भीतर झांकने की दीठ है। कहानिकाकार के अंतर उजास में पाठक इन कहानियों में समय के अनूठे संदर्भ तलाष सकता है। इसलिए कि संग्रह की लगभग सभी कहानियां मन के आंतरिक कानों को छूती हममें गहरे से बसती है-उस समय के लिए ही नहीं जब हमें उन्हें पढ़ रहे होते हैं बल्कि उसके बाद भी वे निरंतर मन में घटती हमें मथती है। संग्रही की डायरीनुमा कुछ कहानियां इस दृष्टि से विरल है कि वहां शब्द नहीं शब्द के भीतर के शब्द की कथा है। ‘निषानेबाज’ कहानी कुछ इसी तरह की है। आख्यान सरीखी यह कथा ऐसी है जिसमें कहानी के भीतर कहानियों का आकाष है। ऐसे ही ‘कथाकार’, ‘डायरी’, ‘गुमषुदा’ आदि ऐसी कहानियां है जो मन को बांचती, बंचवाती पात्रों की व्यथा-कथा के मर्म उघाड़ती हममें सदा के लिए बस जाती है। उनकी कहानियां में शब्द ही नहीं वह अदेखा-अपढ़ा भी अनुभूत किया जा सकता है जो हमारे परिवेष का हिस्सा तो है परन्तु उस ओर हमारा कभी ध्यान नहीं जाता है। शायद इसलिए कि इस तकनीक आक्रांत समय में हम अकेले तो बहुतेरी बार होते हैं परन्तु एकांत को नहीं जीते।...तो यह कहानियां इसीलिए ‘एकांत का मानचित्र’ बनाती है।
आस-पास की घटनाओं, संवेदनाओं के मर्म से साक्षात कराती संग्रह की संगीत गुंदेचा की कहानियां ही नहीं कविताए भी पाठक को सर्वथा नई दीठ से संस्कारित करती है। संग्रह की ‘भस्म से जागता है महाकाल’, ‘वह मेघदूत पढती है/जहां दिनों के बीतने का हिसाब/फूलों से किया जाता है।’ कविताएं पढते आख्यानों की हमारी परम्परा जैसे आधुनिकता में पुनराविस्कृत होने लगती है। गोधूली बेला की  उनकी अप्रतीम शब्द व्यंजना देखें, ‘पक्षियों की टोली, आकाष में उडते-उडते शब्द बन जाती है।’ ऐसे ही शब्द भीतर के शब्द को ध्वनित करती उनकी श्राप कविता की पंक्तियां देखें, ‘..प्रार्थनाएं/मौन को समर्पित हैं/जिसमें पड़ी हुई दरारों से झांकते हैं देवगण/क्या वे उन वारांगनाओं की तरह है/जो खेल से मन उचट जाने पर/कभी कभी झांक लिया करती हैं-/अपने गवाक्षों से बाहर।’
 संगीता गुंदेचा का गद्य और पद्य इसलिए भी लुभाता है कि वहां लिखे की परम्परा की बजाय कहानी-कविता की नई राह तलाषी गई है। वह शब्द ब्रह्म में परम्पराओं को गहरे से खंगालती है। ‘छटपटाहट’ कविता में लोगों की आकांक्षाओं की उनकी दार्षनिक व्यंजना देखें, ‘..मंदिरों के गर्भगृह खाली हैं/देवताओं को सोख लिया है/लोगों की भटकती आकांक्षाओं ने।’ 
उनकी कविताएं अर्थगर्भित शब्द की उज्ज्वल दीठ है। ‘संभव’ कविता को पढ़ते  शब्द के ओज में जीवन से जुड़ संवेदनाओं के राग में एक तरह से हम बंध जाते हैं। कविता नहीं, जीवन के सच और तमाम कहे और कहे जा सकने को जैसे संगीता ने अपने भावों में समेट लिया है, यह कहते, ‘..मौत एक दिन आएगी/लील लेगी वह सारे कहे हुए को/लौटते हुए उसके पैरों के निषां में/संभव है छूट जाए/न कहे जा सके की आकृति/मानचित्र एकान्त का।’
‘एकान्त का मानचित्र’ रस की वह गागर है जिसमें अंतर्मन संवेदनाओं के सागर को समेटा गया है। हिंदी में इधर आई पुस्तकों में यह सर्वथा भिन्न पर अनूठी रागात्मकता लिए ऐसी पुस्तक है जिसे पढंगे तो मन करेंगा गुनें, गुनते ही रहें।
- वागर्थ, अप्रैल 2017  में प्रकाशित समीक्षा