Sunday, March 3, 2019

भस्मांगरागाय महेश्वराय...



स्वामी श्री रामसुखदासजी शिव के भस्मलेपन पर बड़ी रोचक कथा सुनाते थे। याद है, बचपन में बीकानेर में दादी के साथ उनकी कथा सुनने जाना होता था। अभी भी वह ज़हन में बसी है। वह सुनाते थे, एक बार शिव कहीं जा रहे थे। देखा कुछ लोग एक शव को ‘राम नाम सत है’ का नाद करते हुए श्मशान ले जा रहे थे। शिव को लगा, अरे वाह! इस शव में राम का वास है। भोले भंडारी शवयात्रा के साथ हो लिए। श्मशान पहुंचे तो देखा, लोगों ने शव दाह किया। कुछ समय वहां रूके और फिर सब अपने-अपने घर चल दिए। शिव वहीं रूक गए। पूरी तरह से जब मुर्दा जल गया तो शिव ने सोचा, इसमें ही राम बसे हुए हैं सो उन्होंने जले हुए शव की भस्म का लेपन कर लिया। बस तभी से शिव भस्म रमाने वाले हो गए। पंचाक्षर स्त्रोत है ‘नागेन्द्रहराय त्रिलोचनाय, भस्मांगरागाय महेश्वराय।’
मुझे लगता है, शिव चित्त की अस्थिरता को साधने वाले देव हैं। देवों के देव। महादेव! 
अकेले शिव ही ऐसे हैं जो नंग-धड़ंग पूजे जाते हैं। और कुछ नही तो लंगोटी की जगह चमड़े का टुकड़ा ही लपेट लिया। गहनों के नाम पर गले में सर्प धारण कर लिया। चिता की राख लपेटे भी वह हमें लुभाते हैं। आप ही सोचिए! सवारी भी कोई और नहीं सांड। कोई पास जाते हुए भी डरे। ...और भोजन भंग-धतुरा। समुद्र मंथन में जब हलाहल निकला तो उसे कौन पीए? भोले भंडारी आगे आए। दूषण हलाहल उनके कंठ पहुंच भूषण बन गया। वह नीलकंठ हो गए। गंगा के प्रचण्ड वेग को कौन धारण करें? शिव ने अपनी जटाओं में उसे धारण किया। कलंकी चन्द्रमा किसके पास जाए? शिव ने उसे भी माथे पर स्थान दे आभूषण बना लिया।...तो दूषण सारे भूषण हो गये। है ना सौन्दर्य का उनका यह अद्भुत रूप! 
शिव रूद्रावतार हैं। संगीत कला के पर्याय। कहते है, इसी अवतार में उन्होंने कभी नारद को संगीत कला का ज्ञान दिया था। शिव नाद रूप हैं और पराशक्ति नाद रूपिणी। ‘संगीत मकरंद’ में शिव के नाट्य कला रूप का ही गान है। शिव नृत्य करते हैं तो ब्रह्मा ताल देते हैं, विष्णु ढोल, सरस्वती वीणा, सूर्य-चन्द्र बांसूरी, अप्सराएं और गंधर्व तान देते हैं, नंदी और भृंगिरिडि मृद्दल बजाते हैं और नारद गाते हैं। शिव ताण्डव में शिव एकाकी प्रतीक है, किन्तु नृत्य में सभी ईश्वरीय शक्तियों का योग है। भर्तृहरि ने जीवन के अलग-अलग पड़ावों में नीति, श्रृंगार और वैराग्य शतक रचे। एक श्लोक में वह लिखते हैं, ‘लहरे हैं। फफोले हैं। तडि़त हैं। संपत्ति है। चमकते गृह, सर्प और नदियों का प्रवाह है। लेकिन इन सबमें अटके हे मन! कामनाओं को छोड़ कर शिव शक्ति को प्राप्त कर। शिव प्राप्ति के लिये गंगा किनारे बसेरा बनाकर मोक्ष पाले।’