Monday, December 30, 2019

पुस्तक पठन संस्कृति की उम्मीदें जगाता वर्ष


वर्ष 2019 की उल्लेखीय, पठनीय पुस्तकों का संसार


हिन्दी साहित्य में यह दौर स्थापनाओं का है। एक ओर सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के इस समय में मुद्रित शब्द के अतीत होते चले जाने का हर ओर बोलबाला है तो दूसरी ओर पुस्तकें बहुतायत से छप रही है, बिक रही है और ‘लिटरेचर फेस्टिवल्स’, ‘साहित्य आज तक’ जैसे आयोजनोें से पुस्तक-लेखक को प्रचारित करने का भी एक नया ट्रेंड बाजार में चल निकला है। पर विडम्बना यह भी है कि कुछेक प्रकाषन समूहों, लेखकों की बिरादरी ही इनमें नजर आती है या फिर इस बिरादरी ने जिन्हें स्थापित करने की ठानी है, वही हर तरफ प्रमुखतया से प्रचारित किए जा रहे हैं। पुस्तकें भी ऐसे-ऐसे शीर्षकों और सज्जा से प्रकाषित करने की होड़ मच रही है, जिससे पाठक उसे खरीदे ही खरीदे-यह देखने के लिए कि आखिर उनमें है क्या? हिन्दी अंग्रेजी भाषा में भी जैसे कोई भेद नही ंरह गया है। साहित्य के नाम पर रहस्य, रोमांच के साथ ही भूत-प्रेत गाथाओं से संबद्ध प्रकाषनों की भी बाजार में जैसे बाढ़ आ गयी है।
वर्ष 2019 साहित्य की दृष्टि से इस रूप में महत्वपूर्ण रहा कि अज्ञेय द्वारा संपादित ‘चैथा सप्तक’ के कवि, नाटककार, आलोचक राजस्थान के नंदकिषोर आचार्य को हिन्दी का केन्द्रीय साहित्य अकादेमी सम्मान उनकी काव्य कृति ‘छिलते हुए अपने को’ पर मिला तो राजस्थानी का यह सम्मान ख्यात कथाकार रामस्वरूप किसान को उनकी कथाकृति ‘बारीक बात’ के लिए मिला। हिन्दी के लिए राजस्थान के किसी लेखक को पहली बार साहित्य अकादमी का सम्मान मिला है। पुस्तको के प्रकाषन की दृष्टि से देखें तो यह साल उम्मीदें जगाने वाला रहा। सालभर पुस्तकों के प्रकाषन का दौर चलता रहा। बहुतेरी प्रकाशित पुस्तकेां में हिमांषु वाजपेयी का  उपन्यास ‘किस्सा-किस्सा लखनउवा’, प्रभात रंजन का ‘पालतू बोहेमियान: मनोहरष्याम जोषी की एक याद’, राजेन्द्र मोहन भटनागर का उपन्यास ‘अथ पद्मावती’, उदय प्रकाष का कविता संग्रंह ‘अम्बर में अबाबील’, कृष्ण कल्पित का ‘हिन्दनामा’ खूब चर्चित रहीं।
बहरहाल, पुस्तकों के बड़ी संख्या में प्रकाषन को देखते हुए सहज यह कहा जा सकता है कि पुस्तकों के पाठक हैं और भविष्य में भी रहेंगेे।  प्रकाषित कथाकृतियों में  ईषमधु तलवार की ‘रिनाला खुर्द’ विभाजन की त्रासदी को बंया करता दो देषो के भाषायी, भावनात्मक संसार की अनूठी कथा व्यंजना है। सूर्यबाला की औपन्यासिक कृति ‘कौन देस को वासी: वेणु की डायरी’ कृति आधुनिक समय संवेदना का एक तरह से लालित्य भरा कथा कोलाज है। सूर्यबाला के पास अनूठी किस्सागोई है और भाषा का लालित्य भी। मनीषा कुलश्रेष्ठ का उपन्यास ‘मल्लिका’ भारतेन्दु हरिष्चन्द्र और उनकी प्रेमिका के अकथ प्रेम की व्यंजना है। पढ़ते भारतेन्दु हरिष्चन्द्र के युग से ही पाठक साक्षात् नहीं होते बल्कि शब्दों की उस दृष्य लय से भी औचक साक्षात् होते हैं जिसमें घटनाएं, समय और परिवेष जीवंत होता सदा के लिए हममें बस जाता है। इसी तरह जितेन्द्र सोनी की कथाकृति ‘एडियोस-ढाई आखर की ढाई कहानियां’ ढाई अक्षरों में व्यंजित प्रेम का अनहद नाद सुनाती पात्रों की मर्मान्तक मजबूरियों के क्षणों का सुंदर कथा संयोजन कथाकार जितेन्द्र सोनी ने किया है। बेहद सामान्य सी लगने वाली स्थिति-परिस्थितियों से प्रारंभ कर कहानियों को बड़ा और मार्मिक अर्थ कथाकार ने दिया है। राजस्थानी कहानी की गौरवमयी परम्परा के साथ ही आधुनिक दृष्टि और बदले परिवेष का षिल्प समृद्ध संसार लिए डाॅ. नीरज दईया द्वारा संपादित ‘एकसौ एक राजस्थानी कहानियां’ इस मायने में महत्वपूर्ण रही है कि इसमें राजस्थानी कहानी की परम्परा और वर्तमान के विविध पक्षों की गहराई है। भारतीय भाषाओं में लिखी जा रही कहानी की भी एक तरह से यह विरल दीठ है।
वर्ष 2019 में कविता की भी बहुत सारी पुस्तकें प्रकाषित हुई परन्तु उनमें राकेश रेणु की काव्य कृति ‘इसी से बचा जीवन’ प्रेम, प्रकृति और जीवन को कविता के चालू मुहावरे की बजाय वैचारिक सघनता में अनुभव की आंच पर पकी है। कवि मायामृग की ‘मुझसे मिठा तू है’ काव्यकृति में कविता बोलती नहीं बल्कि दिखती हुई हममें बसती है। कवि के पास कहन की अनूठी संवेदना है तो पेड़, धरती और आसमान को देखने की उदात्त दृष्टि भी है। राकेष मिश्र के कविता संग्रह ‘जिन्दगी एक कण है’ में विचार, भाव और रूप का अनूठा साहचर्य है। आंतरिक अन्वेषण में उनकी कविताएं ‘याद की बारिष’ से सराबोर करती है तो भ्रम बीजों से उपजी खुषियों की फसल की अनुभूतियां से भी साक्षात् कराती है।
कथेतर गद्य में वर्ष 2019 में रामबक्ष जाट की आत्मकथात्मक, संस्मरण कृति ‘मेरी चित्ताणी’ गद्य का अनूठा उजास लिए है। इसमें अपने गांव के बहाने लेखक ने लोक संस्कृति, आधुनिकता में साहित्य और साहित्य से इतर जीवन का सांगोपांग कथात्मक चित्र उकेरा है। सत्यनारायण की ‘सब कुछ जीवन’ कृति रिपोर्ताज, रेखाचित्र रूप में हिन्दी गद्य की बढ़त हैं। लेखिका, संपादक उमा की कृति ‘किस्सागोई’ मे जीवनीपरक है परन्तु इसमें लेखकों के चरित्र के अपनापे को अनूठी कथा शैली में गुना और बुना गया है। यात्रा संस्मरण की महत्ती कृतियांे में असगर वजाहत की ‘स्वर्ग में पांच दिन’ हंगरी के इतिहास का वातायन ही नहीं है बल्कि जीवन और स्थानों की यात्रा से जुड़े संस्मरणों की उज्ज्वल शब्द दृष्टि भी है। प्रताप सहगल का यात्रा संस्मरण ‘देखा-समझा देस-बिदेस’ इस मायने मंे विषिष्ट है कि इसमें कहानी का अनूठा गद्य है तो डायरी की निजता भी है, निबंध का लालित्य है तो स्थान और परिवेष को देखने और समझने-समझाने की आलोचना दीठ भी है। डाॅ. गोपबंधु मिश्र का पेरिस प्रवास का यात्रावृतान्त ‘पारावार के पार’ मूल संस्कृत से हिन्दी मे अनुदित है पर इसमें पेरिस की सभ्यता और संस्कृति की सुंदर दार्षनिक व्याकरणिक व्याख्या करते भारतीय और पष्चिमी समय संवेदना के गहरे मर्म भी उद्घाटित हुए हैं।
इस वर्ष आयी गद्य की कुछ अन्य महत्वपूर्ण कृतियों में चार साल की ही उम्र में ही पोलियो से ग्रस्त होने के बावजूद कठिनाइयों से जूझते समाज में अपना एक विषिष्ट स्थान बनाने की कहानी कहती ललित कुमार कीे संस्मरणात्मक जीवन गाथा ‘विटामिन जिन्दगी’ चुनौतियों को अवसर में बदलने का जैसे प्रभावी सूत्र है। प्रयाग शुक्ल की ‘स्वामीनाथन: एक जीवनी’ बंधे-बंधाए ढर्रे से पृथक कलाकार स्वामीनाथन के साथ की यात्राओं, उनके कला प्रष्नों, कलाकृतियों और सृजन सरोकारों को सहेजते सिनेमा की मानिंद शब्दों का दृष्य रूपान्तरण सरीखी है। विजय वर्मा की व्यंग्यकृति ‘राग पद्मश्री’ सरकारी तंत्र, समाज और साहित्य-संस्कृति से जुड़ी जीवनानुभूतियों की से सूक्ष्म दीठ है। इस वर्ष शरद सिंह द्वारा संपादित ‘थर्ड जेंडर विमर्ष’ को तीसरे लिंग से जुड़ी वर्जनाओं, धार्मिक सामाजिक और भय से जुड़ी मानसिकता के चिंतन की महत्ती कृति कहा जा सकता है तो लेखिका सुजाता की ‘स्त्री निर्मिती’ स्त्रीवाद का जैसे आईना है। डाॅ. श्रीलाल मोहता और ब्रजरतन जोषी सपादित ‘संगीत: संस्कृति की प्रकृति’ इस मायने में इस वर्ष की विरल कृति कही जा सकती है कि इसमें भारतीय कलाओं के आलोक में संस्कृति से जीवंत संवाद में डाॅ. छगन मोहत्ता की महत्ती स्थापनाएं हैं।
-राजस्थान पत्रिका ‘हम लोग’ में प्रकाशित
29-12-2019