Sunday, October 29, 2017

अर्थ संभावनाओं का संस्थापन आकाश ‘पूर्णमिदम्’


विद्यासागर उपाध्याय : पूर्णमिदम 
हमारे यहां इन्स्टालेषन माने संस्थापन की परम्परा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। दूर्गा, गणेष पूजा और फिर विसर्जन, जन्माष्टमी और तमाम हमारे ग्रामीण, आदिवासी परम्पराओं-संस्कारों का ताना-बाना संस्थापनों से भरा पड़ा है। पर इन्स्टाॅलेषन आर्ट में इधर देष में जो कुछ हो रहा है, उसमें विचार प्रायः गौण है। माने संस्थापन के अंतर्गत जो कुछ किया जा रहा है, उसमें चमत्कृत करने, अपने आपको स्थापित करने का आग्रह इस कदर रहता है कि कला का मूल कहीं नजर नहीं आता। इस दीठ से पिछले दिनों जयपुर के रवीन्द्र मंच की कलादीर्घाओं में भारतीय दर्षन और चिंतन से जुड़े स्वरांे में देषके प्रमुख पांच कलाकारों की संस्थापन प्रदर्षनी ‘पूर्णमिदम्’ ने जैसे जड़ता को तोड़ कला में विचार के भारतीय दर्षन से साक्षात् कराया है। 
इषावष्योपनिषद् का शांति मंत्र है, ‘पूर्णमिदम्’। कुम्हार मिटटी से घड़ा बनाता है परन्तु मिट्टी में घड़ा पहले से मौजूद होता है। सत्य यही है, हम सोचते है कि षिल्प के जरिए मिट्टी से कुछ निकाला जाता है परन्तु वह भी अंततः मिट्टी ही हो जाता है। यही पूर्णता है। पूर्ण से पूर्ण निकाल दे ंतब भी पूर्ण ही बचा रहेगा।  सृजन के बाद विसर्जन होगा तभी नया कुछ सृजित हो सकता है। भारतीय परम्परा में जीवन से जुड़े इसी दर्षन की गूंज है। यह महज संयोग ही नहीं है कि इस कला प्रदर्षनी में सभी कलाकारों ने जीवन से जुड़ी संवेदनाओं के भावों को अपने तई कला चिंतन में गहरे से जिया है। ‘पूर्णमिदम्’ में प्रदर्षित कलाकृतियों की एक बड़ी विषेषता दृष्य की अनंत संभावनाओं में अनुभवजन्यता की बढ़त का कला संस्कार भी है।
विनय शर्मा : अतीत का सौन्दर्यान्वेषण 
‘पूर्णमिदम्’ के संस्थापन अंतर्मन में बनने वाली छवियों, आभासी दुनिया और वास्तविकता के बीच संवेदनाअेां को चक्षु देते एक पूल की मानिंद हैं। मुझे लगता है, विचार और जो कुछ हो रहा है उस पर प्रतिक्रियाओं का गहन आत्मान्वेषण इन कलाकृतियो में है। विद्यासागर उपाध्याय का इनस्टाॅलेषन रंगो के उजास में पूर्णता के भारतीय दर्षन को गहरे से जैसे मौन में भी व्याख्यायित कर रहा था। रंग-रेखाओं के भांत-भांत के रूप उन्होंने माउंटबोर्ड पर संजोए।  सूक्ष्म कलाकृतियों का रंग-रूप कोलाज! एक साथ कलाकृतियों के मेल से प्रतीत होता है, एक-दूसरे के होने में ही सभी पूर्ण है परन्तु गौर करेंगे तो यह भी पाएंगे, हरेक का अपना निज अस्तित्व है। 
विनय शर्मा ने अपने संस्थापन में परम्पराओं के आधुनिक बोध में तिरोहित होते जा रहे जीवन मूल्यों की जैसे बारीक पड़ताल की है। उनका संस्थापन ‘परम्पराओं का सौंदर्यान्वेषण’ समय संदर्भों में तकनीक के मेल से होने वाले बदलावों पर चिंतन का नया स्वर देता है। घरों में, व्यवसाय में कभी हिसाब-किताब के लिए बही लेखन का कार्य होता था। आलमारियांे में पुराने हिसाब-किताब के लेखे-जोखे से भरी बहियां भरी होती थी। कागज और कलम का पूजन होता था।  ‘लाभ-षुभ’ के साथ यह घर, व्यवसाय में यह सोच मौजूद थी कि लाभ हो परन्तु ऐसा जो शुभकारी हो। मंगलदायक हो। इसीलिए लक्ष्मीपूजन यानी धन की पूजा भर जीवन का ध्येय नहीं होता था बल्कि लक्ष्मी के साथ सरस्वती भी घरों में पूजी जाती थी। इसीलिए तो कलम, दवात के भी पूजन की परम्परा थी। पर समय बदला और बही, कलम और दवात तथा ‘लाभ-षुभ’ की सोच के बहाने परिवेषगत जो सौंदर्य था उसका स्थान एक अकेले कम्प्यूटर ने ले लिया। 
गौरीशंकर सोनी : रेखाओं की लय 
तकनीक ने बहुत कुछ आसान कर दिया परन्तु परम्परा के सौंदर्य को लील लिया। इन्हीं सबको प्रदर्षित करता विनय शर्मा का संस्थापन बहुत से स्तरों पर झकझोरता भी है तो परम्पराओं के हमारे सौंदर्यगत परिवेष की नई दीठ भी दे रहा था। विनय ने परिवेषत अतीत होती जा रही चीजों को अपने संस्थापन में नए संदर्भ दिए हैं।  उनके संस्थापन में अतीत स्मृति भर नहीं है बल्कि परम्पराओं का सौंदर्यान्वेषण है। 
गौरीषंकर सोनी का संस्थापन ‘लिनियर ट्रांसफोर्मेषन’ लोक में रची-बसी संवेदनाओं का अनूठा रेखीय आयाम है। आसमान में उड़ती पतंग के संग चलती चरखी की डोर बहुतेरी बार हवा के रूख के साथ भांत-भांत के मोड़ों में अनूठे रूप धारण करती है। अपनें संस्थापन में गौरीषंकर ने चरखी से निकलती डोर के अनंत आकाष में रेखीय आयामों में उभरते रूपाकारों का एक तरह से पुनराविष्कार किया है। गौरीषंकर रंग-रेखाओं में भावों का अनूठा संसार रचते रहे हैं। उनका यह संस्थापन भी रेखाओं की लय अवंेरता मूर्त-अमूर्त को आकाष देता है। दृष्य की  लूंठी सोच में भावों की विरल व्यंजना इस संस्थापन में है। 
मनीष शर्मा : धरोहर 
मनीष शर्मा ने शहरों के वास्तुषिल्प से जुड़े संदर्भों में धरोहरों के निरंतर उजड़ते जाने की व्यथा-कथा को अपने संस्थापन ‘म्यूजियम शाॅप’ में संजोया है। उनके संस्थापन के केन्द्र में हजार हवेलियों का शहर बीकानेर है। हवेलियों के षिल्प सौंदर्य और वास्तु षिल्प से जुड़े सौंदर्य संदर्भो का उनका संस्थापन कहन इसलिए भी लुभाता है कि वहां पर हवेलियों, घरों में छत बनाने के लिए प्रयुक्त ‘टोडी’ और षिकार कर जानवरों को अपने महलों में भुसा भरकर रखी प्रतिकृतियों को माध्यम बनाया है। इन प्रतिकृतियो में पारम्परिक भारतीय लघु चित्रषैलियों, बीकानेर की मथेरण और उस्ता कला का भी मोहक चित्रण मनीष के संस्थापन में अलग से ध्यान खंीच रहा था।
नीरजा पालशेट्टी : क्षणिक रूप से मूर्त 
नीरजा पालीसेट्टी की कलाकृति ‘क्षणिक रूप से मूर्त’ में कागज की ढ़ेर सारी कतरनें और उनसे बने स्तम्भ पर बहुत सारे रखे समाचार पत्र जैसे जीवन चक्र को ही व्यंजित कर रहे थे। यह भी कि कागज के कितने-कितने रूप हो सकते हैं। और यह भी कि विचार संप्रेषण के सषक्त माध्यम के रूप में यह कागज ही है जो अपने यथार्थ में होने और न होने के मध्य भी जीवन से जुड़ी संवेदना को जैसे परिभाषित करता है। जन्म का अंत हो सकता है परन्तु जीवन का नहीं। कागज के जरिए इसी दार्षनिक चिंतन को अपने संस्थापन में नीरजा ने प्रदर्षित किया है। कागज का मूर्त रूप भी यहां है तो अमूर्त भी। सामग्री परिवर्तन की प्रक्रिया के साथ यहां समय की भी सुमधुर व्यंजना है। कागज के कितने-कितने रूपों के बहाने नीरजा का यह संस्थापन वैचारिक उन्मेष लिए देखने वालों के भीतर गहरे से रचता-बसता है।
बहरहाल, विद्यासागर उपाध्याय, विनय शर्मा, गौरीषंकर सोनी, मनीष शर्मा और निधि की कलाकृतियांे से साक्षात् होते यह अहसास भी निंरतर होता है कि वहां आधुनिकता का बोध है, संप्रेषण के लिए तकनीक है परन्तु कलाकारों ने सृजन को माध्यमों के प्रदर्षन की वस्तु मात्र नहीं देखते उनमें संवेदनाओं के जरिए सौंदर्य और अर्थ की अनंत संभावनाओं की तलाष की है।

Monday, October 9, 2017

रम्य रूप

''...दूर जहां तक नजर जाए पानी ही पानी। आसमानी की परछाई ओढ़े नीला पानी।...प्रकृति ने जैसे धरती को उपहार दिया है।...दो बेहद मोहक हरियाली से आच्छादित पहाड़ियां और बीच में बहता नीर। घाट पर जहां बैठा हूं, वहां नाव बंधी है और प्रस्तर खंड को तराश सिरजा धवल हाथी जैसे दूर तक फैले जल को निहार रहा है। सूंड उठाए। यह पहाड़ियों के मध्य बिखरे जल का रम्य रूप है। प्रस्तर निर्मित घाट...एशिया  का मानव निर्मित सबसे बड़ा जलाशय  है यह। पर गौर करता हूं, समुद्र सरीखा है यहां का दृष्य। हवा में बनती पानी की शांत लहरें....दूर तक जाती हुई और फिर से आती हुई।..'' 

"....घर लौटता सूर्य जैसे इन सब पर अपनी किरणों से जादू जगा रहा है। दूर तक पसरा जल...टापू और नीड़ पर लौटते पक्षियों के समूह को देख अनुभूत होता है किसी ओर लोक में हूं। 

सफेद संगमरमर पत्थरों से निर्मित घाटों पर अब सूर्यास्त से अंधेरा पसरने लगा है।...पर यह क्या! चन्द्रमा की धवल चांदनी में जयसमंद का सौन्दर्य और भी जैसे बढने लगा है। चांद की चांदनी में दूध से नहाए हाथी जैसे झील की ओर मुख करते हुए भी मुझसे कुछ और देर वहीं रूकने का आग्रह कर रहे हैं। मैं उनकी बात मान वहीं घाट पर बनी सीढ़ियों पर बैठ जाता हूं। विशाल प्रस्तर खंड को सामने रख सिरजे शिल्पटषिल्प सौन्दर्य पर पड़ती धवल चांदनी और दूर तक फैला झील का नीर। खंड-खंड अखंड! सौन्दर्य की जैसे रूप वृष्टि। ठंडी हवाओं के झोंके मन को विभोर कर रहे हैं। पता ही नहीं चलता, कितने घंटे ऐसे ही वहां बैठे गुजर जाते हैं। 

वन विभाग के विश्रामगृह का चैकीदार मुझे ढूंढते झील के घाट पर आ मुझे झिंझोड़ते हुए कहता है, ‘साब खाना नहीं खाना है?’ मैं कलाई में बंधी घड़ी पर नजर डालता हूं...अरे! रात्रि के 9 बज गए हैं।...उठकर विश्राम गृह की ओर लौट पड़ता हूं।... जयसमंद से विदा लेता हूं, यह कहते हुए-कल सूर्योदय पर फिर आऊंगा इन घाटों पर।"...

-'जनसत्ता', 9 अक्टूबर, 2017 'दुनिया मेरे आगे'

Friday, October 6, 2017

संस्कृति से अपनापा कराती केलीग्राफी कलाकृतियां

कैलीग्राफी यानी अक्षरांकन की दृष्यात्मक दीठ। आमतौर पर यही माना जाता है कि कैलीग्राफी के अंतर्गत अक्षरों को ही उकेरा जाता है परन्तु कलाकृतियों के सृजन का आधार भी यह है। यह सही है, मूलतः कैलीग्राफी में सुंदर अक्षरों को ही उकेरा जाता है परन्तु इससे महत्ती कलाकृतियों भी इधर सृजित हो रही है। 
संकतो का अर्थपूर्ण, सुव्यवस्थित आकार ही तो है कैलीग्राफी।...और यह जब है तो स्वाभाविक ही है कि इसके जरिए अर्थगर्भित कलाकृतियां भी आरंभ से ही सृृजित की जाती रही है।
अर्थ के आग्रह से मुक्त ऐसी ही कलाकृतियां के लिए कोरिया में बाकायदा प्रतिवर्ष आर्ट बिनाले भी होता है। पिछले दो दषको ंसे कोरिया में ‘द वर्ल्ड कैलीग्राफी बिनाले’ का आयोजन हो रहा है। इस बार यह बिनाले 21 अक्टूबर से 19 नवम्बर के दौरान होगा। यह महत्वपूर्ण है कि इस बिनाले में इस बार राजस्थान मूल के सुप्रसिद्ध कलाकार विनय शर्मा की कैलीग्राफी कलाकृतियां भारत का प्रतिनिधित्व करेगी। 
विनय शर्मा अपनी कलाकृतियों में अतीत का एक तरह से पुनराविष्कार करते हैं। पुरानी बहियां, ताड़पत्र, जन्मपत्रियां और तमाम जो हमारी संस्कृति सं संबद्ध पुराना रहा है, उसे वह अपनी कलाकृतियो ंमें बड़े जतन से सहेजते हैं। इधर उन्होंने कैलीग्राफी कलाकृतियों का भी जो संसार रचा है, उसमें अतीत से अपनापा कराते भारतीय षोडस संस्कारों  के साथ ही संस्कृति से जुड़े बारीक तत्वों को अंवेरा है। प्राचीन अभिलेखों, सुसज्जति पांडुलिपियों, संग्रहालय में संग्रहित पुरावस्तुओं के साथ ही उन्होंने जीवन से जुड़े सांस्कृतिक सरोकारों को अपनी कैलीग्राफी कलाकृतियों में एक तरह से जिया है। उनकी ऐसी कलाकृतियां में भारतीय नृत्य, संगीत, नाट्य और वास्तुकला से संबद्ध संकेताक्षरों में कलाओं के ंअंतःसंबंधों को भी गहरे से जिया गया है।
विनय ने प्राचीन लिपियों की अपनी कैलिग्राफी कलाकृतियों में अतीत का आधुनिकता में एक तरह से पुनराविष्कार किया हैं। उनकी कलाकृतियों में अक्षरांकन के अनूठे दृष्यालेख उभरते हैं। उन्होंने प्रकृति और जीवन से जुड़ी कैलिग्राफी पेंटिंग श्रृंखला बनाई है। इसमें पेड़-पौधों और जीवन से जुड़े सरोकारों की मनोरम व्यंजना हुई है। इसी प्रकार उन्होंने लघु कैनवस पर कुछ समय पहले  कैलिग्राफी पेंटिंग में ही गणेष के बहुविध रूपों को भी प्रदर्षित किया था। षिव के आदि, अनादि स्वरूप, भगवान श्री कृष्ण के पौराणिक आख्यानों को भी उन्होंने कैलीग्राफी की अपनी कला में गहरे से जिया है। 
कोरिया में आयोजित होने जा रहे ‘द वर्ल्ड कैलिग्राफी बिनाले’ में विनय शर्मा भारतीय संस्कृति से जुड़े इसी तरह के आख्यानों आधारित अपनी कैलिग्राफी पेंटिंग का प्रदर्षन करेंगे। विनय शर्मा बताते हैं, ‘कैलीग्राफी अथवा अक्षरांकन  की ही नहीं कलाकृतियों रचने की भी दृश्यात्मक शैली है। प्राचीन काल में कैलीग्राफी के जरिए ही इतिहास का चित्रात्मक प्रदर्षन किया जाता था। अतीत से जुड़े संदर्भों की कैलिग्राफी दृष्य कहन है। ‘द वर्ल्ड कैलिग्राफी बिनाले’ विष्वभर के कैलिग्राफी कलाकारों का साझा मंच है।’
कतर में दोहा एशियाई खेलों के दौरान आयोजित एशियन आर्ट प्रदर्शनी में भी विनय ने इससे पहले भारतीय कला का प्रतिनिधित्व किया था। इंग्लेण्ड, पोलेण्ड, साउथवेल्स सहित देश विदेश में उनकी अनेकों एकल चित्र प्रदर्शिनियां आयोजित होती रही है। यह महत्वूर्ण है कि कोरिया में आयोजित होने जा रहे वर्ल्ड कैलीग्राफी बिनाले में भारतीय संस्कृति से जुड़ी कला विनय के जरिए विष्वभर में पहुंचेंगी।