Saturday, January 3, 2015

सुर जो सजे



धन्यवाद यतीन्द्र ! 

राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिस्ट में कवि,संगीत आलोचक यतीन्द्र मिश्र ने "सुर जो सजे" की समीक्षा की है.
यतीन्द्र ने लिखा है - 

" पुस्तक के बारे में यह भी काबिले गौर है कि संगीत के तमाम सारे तकनिकी पक्षों, तथ्यों एवं उसके बनने के इतिहास को लिखते समय लेखक ने अपने आस्वादक को प्रमुख भूमिका में रखा है, जिससे किताब बोझिल बनने की बजाय एक सहज गति से बढ़ती हुई अपनी सांगीतिक अनुगूंजें पैदा करती चलती है. "

एनबीटी से प्रकाशित इस पुस्तक का  ब्लर्ब है -
'सुर जो सजे' में डॉ राजेश कुमार व्यास ने हिन्दी फिल्म संगीत के बहुत से स्तरों पर अब तक के अकहे इतिहास को संस्मरण-संवाद की अपनी विशिष्ट शैली में संजोया है। इसमें लोकप्रिय फिल्मी गीतों की धुन, उसके लिखे जाने और उसे संगीतबद्ध किए जाने के पीछे की कोई कथा, कोई व्यथा या अन्य कोई घटना-प्रसंग का रोचक वर्णन है। पढते लगेगा, संगीत सर्जना के क्षण आपके समक्ष जीवंत हो उठे हैं। यही इस पुस्तक की बडी विशेषता है। पुस्तक की शुरूआत लता मंगेशकर, मन्ना डे, गीतकार प्रदीप, गुलजार संगीतकार खैयाम, रवि, ओपी नैय्यर के साथ डॉ राजेश कुमार व्यास के हुए संवाद से होती है। फिर शुरू होती है, फिल्मी गीतों से जुडी 'सरगम' की रोचक दास्तां लेखक की संगीत रूचि और पत्रकारिता सफर की 'सुर जो सजे' एक प्रकार से अर्न्तरयात्रा है। पढते लगेगा, आप भी इस पुस्तक का हिस्सा' हैं। यही इसकी विशेषता है।


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