Sunday, September 24, 2017

'दीठ रै पार' (दृष्टि से भी आगे)




कविताएं अंतस का आलाप है। बहुतेरी बार शब्द के भीतर बसे शब्द के पास भी वे ले जाती हैं। राजस्थानी मेरी मायड़ भाषा है। हाल ही में 'बोधि प्रकाशन' से राजस्थानी का नया कविता संग्रह 'दीठ रै पार' (दृष्टि से भी आगे) प्रकाशित हुआ है। 

इसमें पिछले एक दशक में लिखी कविताएं संग्रहित है। इससे पहले वर्ष 1994 में 'जी रैयो मिनख'  (जी रहा है मनुष्य)  और वर्ष 2012 में 'कविता देवै दीठ' (कविता दृष्टि देती है)  प्रकाशित हुए हैं।  

'दीठ रै पार' संग्रह का आवरण ख्यात कलाकार विनय शर्मा ने तैयार किया है। इस संग्रह की दो कविताएं—
मून
आतम है
मून।
मनगत
दीठ।
कदास
थूं-
बसतो रूं-रूं
मारग
पूग जावती आंख।



अंवेरी नीं छांट

आभो जोवै
बैंवती नदी
गड्डा कैवै
पाणी री कहाणी
रूंख झाड़ै पान
मगसो हुयोड़ो हरो खोलै
मांयरा पोत-
बिरखा हुई
पण
अंवेरी नीं ही छांट।

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