"..पंडित शिवकुमार शर्मा का संतूर आत्म से साक्षात्कार कराता ध्वनियों का ध्यानगान है.प्रकृति की भांत भांत की छटाओं को हममें बसाता औचक वह हमें जैसे आनंद घन करता है...संतूर में उन्होंने शास्त्रीयता की शुद्धता को बरकरार रखते हुए निरंतर नवीन प्रयोग किए।...उन्होंने भारतीय संगीत की लगभग सभी परम्पराओं से संतूर को जोड़ा तो रागों के अनुशासन में रहते हुए भी उनके जड़त्व को निरंतर तोड़ा। "...
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