Friday, June 12, 2009

अन्तर्मन संवेदनाओं में सांगीतिक आस्वाद

प्रति शुक्रवार डेली न्‍यूज, जयपुर के सम्‍पादकीय पृष्‍ठ पर प्रकाशित होने वाला लेखक के स्‍तम्‍भ कला तट से दिनांक 12 जून, 2009

चित्रकला कैनवस में उभरी आकृति या अमूर्त का सच भर ही नहीं है। कलाकार जब कला के जरिए कोई अभिव्यक्ति कर रहा होता है तो उस वक्त केवल वह अपने आपको ही नह बल्कि अपने आस-पास की बहुत सी दूसरी चीजें और अनुभूतियों को भी अपने तई परोट रहा होता है। उसकी संवेदनाओं की अनुभतियां में प्रकृति, जीवन और जीवन के बहुतेरे रहस्य तब अनायास ही कैनवस पर उभर रहे होते हैं। ममता चतुर्वेदी अर्से से चित्र बना रही है परन्तु इधर उनके चित्रों ने कैनवस पर जैसे नयी करवट ली है। पिछले दिनों उनके नये बनाए चित्रों की कला प्रदर्शनी शहर की एक कला दीर्घा में देखने का सुयोग हुआ। लगा रंग और रेखाओं के जरिए ममता ने अपने इन चित्रों में सुक्ष्म अनुभव संवेदना को कैनवस पर जैसे जिया है।

रंगो और रेखाओ में ममता भीतर की अपनी गहन आस्था को भी जैसे जीती हैं। एक चित्र के पार्श्व में गहरे रंग धीरे-धीरे हल्के होते जाते हैं। गौर करने पर भगवे, नीले और हरे रंग में जो आकृति उभरती है उसमें जैसे सृष्टि विद्या समाहित शिव का स्वरूप साकार हो रहा है। दृश्य में श्रव्य की अनुभूति यहां ऐसी है जैसे आकृति के साथ आप मंदिर में प्रवेश कर गए हैं और मधुर घंटियां होले-होले सुनते उसमें लीन भी हो रहे हैं।

इन चित्रों की बडी विशेषता इनमें निहित वे स्मृतियां हैं जिनमें कैनवस पर गहरे रंग धीरे-धीरे धुसर होते बीते हुए वक्त को जैसे स्वर देते हैं। कुछ चित्रो में रिचुअल्स है और अन्तर्मन आस्था भी। कुछ में उभरे रंगो में स्कल्चरल एप्रोच भी अलग से लुभाती है।

बहरहाल, छाया-प्रकाश का संयोजन भी ममता के इन चित्रों का अलग आकर्षण है। एकाधिक चित्रों में पीले, हरे, लाल रंगों के मेल में दोपहर की धूप का बोध भी ऐसा है जिसे देखने का मन करता है। सभी चित्रों में आकृतियों का लयात्मक संतुलन ऐसा है जिसमें रंग अपनी कोमलता में देखने वालों को भीतर तक भरते हैं। ममता के इधर बनाए ये चित्र क्या मनःदृश्य ही नहीं है! मन के आंतरिक भावों में प्रकृति और जीवन के संबंधों का कैनवस पर पुनराविष्कार जो इनमें किया गया है... यही सब सोचते कला दीर्घा से बाहर निकलता हूं। जेहन में अभी भी चित्रों के रंग और रेखाओं का स्पन्दन हैं।

6 comments:

Unknown said...

rangon aur rekhaaon se ukeri gayi kalpnaayen bhi utnee hi prabhavshaali hoti hain jitni ki shreshthtam kavitaayen...
bahut achha aalekh !
badhaai!

Anonymous said...

साथ में चित्र भी होते तो मज़ा ही आ जाता....

दिल दुखता है... said...

हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका हार्दिक स्वागत है.....

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

bhav mahtavpurn hai,chahe wah kalam se ho chahe kuchi se. narayan narayan

उम्मीद said...

आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी

राजेंद्र माहेश्वरी said...

आप की रचना प्रशंसा के योग्य है