Friday, October 8, 2010

कला का समय, संवेदना और रचनात्मक मूल्य

अपने युग से कला जब संवाद करती है तो निष्चित ही उससे जुड़ी घटनाओं, परिघटनाओं को अपने में समाहित करके चलती है। कम्प्यूटर के इस दौर में जब विज्ञान और तकनीक कला पर निरन्तर हावी होती जा रही है, यह सोचने की बात है कि तकनीक क्या कला हो सकती है? वह कलात्मक तो हो सकती है परन्तु उसे कला कैसे कहा जाए!

दरअसल तकनीक बाजार की जरूरत है। वह यदि रचनात्मकता पर हमला करती है तो फिर उससे कला जगत को सतर्क होने की आवष्यकता है। ‘फ्रीडम ऑफ क्रिएटीविटी’ के तहत कला में इधर तकनीक के जरिए बहुत से स्तरों पर बेहतरीन कार्य भी हुआ है परन्तु उसकी अपील सार्वकालिक, सार्वदेशीय है भी अथवा नहीं, इस पर विचार किए जाने की जरूरत है। तकनीक के साथ इधर इंगलैण्ड, अमेरिका और आस्ट्रेलिया में कलाकार अपने शरीर तक का इस्तेमाल तथाकथित अपनी कला में करने लगे हैं। कुछ समय पहले कोडिस गैलरी ने नया काम करने वाले विभिन्न कलाकारों को बुलाया था। मकसद था कला में नवीन करने वालों की कला का प्रदर्षन। इसमें इन्स्टॉलेषन के लिए अमेरिकी कलाकार गुइलर्मो वर्गाज जिमनेज हेबाकक ने एक कुत्ते को तब तक बांधे रखा जब तक कि वह भूख से बिलबिला कर मर नहीं गया। इस तथाकथित कला को इन्स्टालेषन कला का सर्वश्रेष्ठ नमूना घोषित किया गया। सोचने की बात यह है कि कला के नाम पर इस तरह का प्रयोग हमारी संवेदना को कहां पहुंचा जा सकता है। आज कूत्ते का प्रयोग क्या कल मनुष्य में परिणत नहीं होगा?

कलाकार अन्तर्मन में बनने वाली छवियों, और स्थान विशेष के साथ जुड़ी यादों के बिम्बों को सहज और आत्मीय संस्थापनों के जरिए ही कला में अभिव्यक्त करता है। इस अभिव्यक्ति में आभासी (वर्चुअल) और वास्तविक के बीच के द्धन्द को तकनीक बेहतरी से अभिव्यक्त कर सकती है परन्तु इमेजोलॉजी के अंतर्गत यदि बगैर किसी रचनात्मक सोच के साथ कुछ किया जाता है तो वह तकनीक का प्रदर्षन भर होगा। तकनीक अन्तर्मन अनुभवों और संवेदनशीलता को उजागर करने का साधन तो हो सकती है परन्तु कला का साध्य नहीं। कला व्यक्ति की संवेदनाओं को चक्षु देती है। यह कला ही है जिसमें विचार और प्रतिक्रियाएं गहन आत्मान्वेषण से मुखरित होती है। ऐसा जब होता है तो कलाकार इस बात की परवाह नहीं करता कि उसके किए सृजन का क्या महत्व होगा। उसका बाजार में क्या मूल्य होगा। कला रचनात्मकता का अनुभव है। इस अनुभव में जीवन की लय संवेदना से जुड़ी हो न कि चौंकाने या चमत्कृत करने के लिए। आप क्या कहेंगे?

"डेली न्यूज़" में प्रति शुक्रवार को एडिट पेज पर प्रकाशित
डॉ.राजेश कुमार व्यास का स्तम्भ "कला तट" दिनांक 8-10-2010

No comments: