Saturday, December 10, 2011

रेखीय आयामों का संवेदना आकाश



कलाएं हमें सौन्दर्य अनुभूति के आंतरिक चक्षु देती है। वहां जो दिख रहा है, वही सच नहीं रहता बल्कि उससे परे भी संवेदना का एक नया आकाष उभरता है। चित्रकला की ही बात करें। विषय-वस्तु सादृष्य की अपेक्षा वहां उसके अभिव्यंजक रूप में ही अधिक और सुदीर्घ असरकारी नहीं होते! अभी बहुत समय नहीं हुआ, जवाहर कला केन्द्र में अब्दुल करीम के चित्रों से रू-ब-रू हुआ था। लगा, ज्यामीतिय संरचनाओं में कला के अनूठे सौन्दर्य लोक में पहुंच गया हूं। हर ओर, हर छोर रंग और रेखाओं के जड़त्व को तोड़ते वास्तविक सृष्टि का जैसे पुनःस्ािापन किया गया है। चटख रंगों से सजी उनकी कलाकृतियों का आस्वाद करते प्रकाष और रेखीय कोणों के नये संदर्भ भी अनायास मिले। मुझे लगता है, आत्मिक और विषुद्ध सौन्दर्य के बीच के द्वन्द में वह कला में प्रयोगषीलता का सर्वथा नया मुहावरा रचते हैं। यह ऐसा है जिसमें मानवाकृतियों को रेखीय आवरण में रंग, प्रकाष संवेदना के नये अर्थ हैं। अर्सा पहले पढ़ा कुर्बे का कहा औचक जेहन में कौंधने लगा है, ‘कला में कोई शैलियां नहीं होती, वहां केवल कलाकार होते हैं।’ 
सच ही तो है...अब्दुल करीम के ज्यामीतिय आकारों में बाह्य की बजाय उनके आंतरिक दर्षन की अनुगूंजे है। इन अनुगूंजों में छीजती मानवीय संवेदनाओं को अनुभूत किया जा सकता है तो आधुनिकता में रोबोटीय होते जीवन में घुलते परिवेष के रंगो की महीन परतें भी साफ देखी जा सकती है।
बहरहाल, अब्दुल करीम के कैनवस पर उभरी  बहुआयामी आकृतियों के बिम्ब-प्रतीकों में रेखाओं का सघन टैक्सचर है। नीले, पीले, हरे, लाल और चटख से धूसरित रंगों में आकृतियां स्पष्ट है परन्तु वहां संवेदना के अनगिनत रंग हैं। रेखीय आयामों की सामर्थ्य का वह जो कैनवस रचते हैं उसमें कला की किसी एक शैली की बजाय तमाम आधुनिक कला शैलियों का सांगोपांग मेल है। माने वहां मानवाकृतियों के साथ विज्ञान है तो सूक्ष्मग्राही सौन्दर्य संवेदना का भी अनूठा आकाष है। मूक व अचल वस्तु समूहों के साथ प्रकृति और जीवन का संगीत उनकी ज्यामीतिय संरचनाओं में सहज सुना जा सकता है। प्रायः सभी चित्रों में एक दूसरे को भिन्न अर्थों में काटती रेखाओं के कोण और उनसे झांकती मानव आकृतियां में कला का नया अर्थान्वेषण है। कलाकृतियों के साथ भीतर के उनके दर्षन की थाह लगाते औचक एक चित्र पर नजर ठहर जाती है। कैनवस के शीर्ष पर चांद है। ज्यामीतिय संरचना में कोण लिये रेखाओं और रंगो का अनूठा उजास यहां है। गौर करता हूं, प्रकाषीय किरणों की मानिंद जो प्रतीक और बिम्ब करीम ने इस चित्र में रखे है उसमें जैसे सृष्टि के गूढ अर्थ रूपायित हुए हैं। प्रकाष की रेखीय लय में  सहज सरल आकृतियां। एक प्रकार से प्रकृति की गूढ शक्तियों की काव्यात्मक अभिव्यक्ति। ओपते रंग जैसे अभिव्यक्ति की उनकी अनुकूलता के संवाहक हैं। ऐसे ही एक चित्र में गहरे रंगों की लेयर में मानव मस्तिष्क के जरिये अध्यात्म की गहराई के साथ दर्षन के अनूठे चितराम हैं। कुछेक चित्र ऐसे भी हैं जिनमें प्रकाषीय रेखाओं के साथ अलंकार भी उभरे दिखाई देते हैं। सहज। हां, रंग और रेखाओं की उनकी बड़ी विषेषता ज्यामीतिय नियमबद्धता से युक्त चित्रकाव्यात्मकता है। अंतर्मन संवेदनाओं के साथ दर्षन की गहराईयां में उभरे ज्यामीतिय कोलाज  में वह कला का सर्वथा नया मुहावरा हमारे समक्ष रखते हैं। 
बहरहाल, अब्दुल करीम के चित्रों से रू-ब-रू होते पिकासो की याद आती है, जॅक्सन पोलाक याद आते हैं और ओरोस्को शागाल के नायाब चित्रों की कुछ स्मृतियां जेहन में कौंधती है। आखिर कलाकार स्मृतियां ही तो कैनवस में रूपान्तरित करता है। शैली का रूपान्तरण वहां नहीं होता। यही तो है कला की मौलिकता। इसी में तो कलाकार प्रकृति और जीवन को जैसा है वैसा ही देखने की बजाय आंतरिक चक्षु से सर्वथा नये ढंग से देखे जाने का आग्रह करता है। यह जब लिख रहा हूं, अब्दुल करीम के चित्रों में उभरे बिम्ब और प्रतीक फिर से मन को मथने लगे हैं। आप क्या कहेंगे!

1 comment:

Hetprakash vyas said...

Bahut khoob Boss. Kuch offbeat padhne ka man hota to mayusi hoti thi, lekin apka blog dekhkar accha laga ki kahin to ankheen tahar sakti hain.