Friday, May 18, 2012

परकोटों से झांकता अतीत

उपयोगिता में सौन्दर्य की सृष्टि का प्रयास माने कला। किले, गढ़ और महल रहने के लिये, सुरक्षा के लिये बनाये गये परन्तु वहां कलात्मकता का भी कोई ओर-छोर नहीं है। हवेलियों को ही लें। जैसलमेर और बीकानेर की हवेलियां सौन्दर्य में अप्रतिम है। आवासीय उपयोगिता और कलात्मकता का अद्भुत मेल जो वहां है।
 ‘स्थपतेः कर्म स्थापत्यम्’ यानी स्थापन का कार्य स्थापत्य है। नगरों की बसावट में स्थापत्य और वास्तु कला का योग ही तो रहा है। पुराने लगभग सभी नगर कलात्मक परकोटों से घिरे मिलेंगे। अलंकारयुक्त परकोटों से। भले बेतहाषा बढ़ती आबादी में परकोटों को तोड नगर अपनी सीमाएं बढ़ा रहे है परन्तु नगरों के भीतर के परकोटे द्वार आज भी निर्माण की कला की जैसे गवाही देते हैं।  
परकोटों से घिरा जयपुर  विष्व का कभी सर्वाधिक सुनियाजित षहर रहा है। कनक वृन्दावन स्थित मंदिरों में जब भी जाता हूं, आमेर घाटी से दूर तक दिखाई देने वाला षहर का सुन्दर से परकोटे का अंष मन मोह लेता है। औचक, मन में यह अहसास भी होता है कि किसी नगर का रक्षा कवच ही नहीं बल्कि सुन्दर वस्त्राभूषण परकोटा ही तो रहा है।
बहरहाल, परकोटे अब अतीत बन रहे हैं। जनसंख्या बढ़ी तो शहर की सुरक्षा के यह पहरेदार गिरा भी दिए गए। कहीं अभी भी परकोटे हैं परन्तु शहर से बाहर नहीं शहर के अंदर। यानी पुराना शहर। नया वह जो इस परकोटे से बाहर बसा है। जैसलमेर का सोनार किला विष्व में शायद पहला ऐसा दुर्ग है जहां आज भी किले में आबादी रहती है। घेरदार घाघरे की मानिंद परकोटे से घिरा विषाल दुर्ग और अंदर आबादी। बाहर से देखें तो किले के कलात्मक परकोटे से आभाष ही नहीं होता कि अंदर पूरी की पूरी एक सभ्यता वास कर रही होगी.. परन्तु सच यही है। 
परकोटों को ओढ़े षहरों में मेरा अपना षहर बीकानेर भी है। परकोटे के द्वारों से गुजरता हूं। कितने द्वार परकोटे के रहे हैं, शायद बता ही नहीं सकूं परन्तु कोटगेट के तीन द्वार, जस्सूसर गेट के तीन द्वार और नत्थूसर गेट और भी न जाने कितने द्वार अपने परकोटे सौन्दर्य से अभिभूत करते हैं। अब तो खैर सभी स्थानों पर आबादी भी इतनी हो चुकी है कि परकोटो वाले षहर और परकोटे के बाहर वाले शहर का भेद ही नहीं रहा। कभी पुराना और नया षहर कहकर जो अंतर परकोटे और परकोटे विहिन षहर का किया जाता था वह भी खत्म हो चुका है। हां, जोधपुर में परकोटे के भीतर एक षहर है और बाहर दूसरा। जालौरी गेट, सोजती गेट जैसे कितने ही गेट परकोटे से घिरे षहर में अभी भी प्रवेष कराते हैं।
भारत के साथ विष्व के दूसरे देष भी परकोटे की कला संजोए हैं। पुर्तगाल का ओबिडोस कस्बा पहाड़ी पर बसा है। परकोटे से घिरा। दूर से देखें तो किले का सा अहसास कराता। ऐसा ही इजरायल की राजधानी के साथ भी है। पवित्र नगरी जेरूषलम परकोटे से घिरा बेहद खूबसूरत ष्षहर है। हां, वहां भी परकोटे से बाहर बसावट हो चुकी है परन्तु परकोटे के भीतर अभी भी पुराना ष्षहर इतिहास की अपनी विरासत को संजोए है। यूनाईटेड किंगडम की यार्क सिटी भी परकोटे से घिरी है। यह षहर बारहवीं से चौदहवीं वीं सदी में चारों तरफ बनी लम्बी दीवार से घिरा है। चीन के झियान षहर के परकोटे का तो कहना ही क्या! परकोटे की दीवारें इतनी चौड़ी है कि आराम से वहां वाहन चल सकते हैं। ग्यारहवीं ष्षताब्दी के आस-पास बना पष्चिमी स्पेन का एविला षहर भी परकोटों की शान लिए है। इस षहर की प्राचीर में नौ द्वार बने हुए हैं और 88 टॉवर है। भूमध्य के पर्यटन स्थलों मे से एक क्रोएषिया का एतिहासिक नगर डबरोवनिक परकोटे के सौन्दर्य का अप्रतिम उदाहरण है। एड्र्यिाटिक सागर तट पर बने इस षहर को इसीलिये ‘एडियाटिक का मोती’ कहा जाता है।
जो हो, इस बात से इन्कार किया ही नहीं जा सकता कि हमारी जो प्राचीन सभ्यताएं रही हैं, उनमें सुरक्षा उपयोगिता में भी कला का अद्भुत मेल किय गया था। कला की यही तो सौन्दर्य सृष्टि है। इसीलिये तो हमारे यहां कला को जीवन से जुड़ा बताया गया है। 


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