Saturday, January 12, 2013

कला का उजास


आत्मान्वेषण की सूक्ष्म अभिव्यंजना है चित्रकला। स्मृतियों, कल्पनाओ और स्वप्न संकेतों में वहां अर्न्तनिहित का सुगठित संयोजन जो होता है! चित्रकार रंग-रेखाओं में जो कुछ बनाता है, उसमें स्वयं उसकी अभिव्यक्ति व्याकुलता के साथ जीवनगत सौन्दर्य से जुड़े संस्कार भी तो होते हैं। प्रकाष, छाया तथा संदर्ष की अनगिनत छवियां कलाकार जब आंकता है तब उन्हें देखने वाले अपने तई अर्थ तलाषते हैं। कला का यही तो है आनंद हेतु। 
पिछले दिनों मनन चतुर्वेदी के रंग सरोकारों के साथ किसी कलाकार के आनंद हेतु से भी जैसे सीधे साक्षात् हुआ। यह ऐसा था जिसमें किसी कला मन के उर की उमंग उन बच्चों के लिए समर्पित थी, जिनका इस जहां में कोई नहीं है। ऐसा, जिसमें लगातार 72 घंटे रंगो में प्यार और स्नेह की छांव संजोयी जा रही थी। सोचता हूं, बच्चे इस जग में प्यार के फरिष्ते ही तो हैं! निराश्रित और परित्यक्त बच्चों के लिए कुछ करने के ‘एंजिल ऑफ लव’ केन्द्रित कला उपक्रम के बारे में भारतीय पुलिस सेवा के बेहद संजिदा, मगर कलाकार मन अधिकारी बी.एल. सोनी ने जब बताया तो मनन की कलाकृतियांे से रू-ब-रू होने का औचक ही मन हुआ था। 
ठिठुरती सुबह में धूप के ताप का तब सुखद आगाज हुआ ही था, जब मनन की बन रही कलाकृतियांे को देखने औचक पहुंच गया था। ढेरों बने चित्रों में उभरती मूर्त-अमूर्त आकृतियों में जीवन का उल्लास जैसे बंया हो रहा था। अनुभूत किया, वहां लोक का उजास भी था। जीवन से जुड़े संघर्ष थे तो जो है, उसे सहेजने का जतन भी और जो नहीं है, उसे बिसारने की सहज उत्कंठा भी। हरे, पीले, नीले-चटक, धुसरित रंगों में जीवन रचाव को देखने जब पहुंचा तब मनन की अनवरत कलायात्रा के 68 घंटे व्यतीत हो चुके थे। पता चला, मनन इस दौरान न सोयी है, न थक कर बैठ विश्राम किया है। बस कलाकृतियों के रचाव में ही लगी रही है। मगन मनन रच रही थी रंगों से कैनवस।  बगैर ब्रष। उंगलियों के पोरों से। हाथों की थाप से। उपस्थिति का बगैर भान कराये कुछ देर यह नाचीज़ मनन की अनथक कला में ही खोया रहा। देखा, वह कैनवस पर कभी रंग छिड़क रही थी तो कभी हाथों से रंगों का लेप़ करती जैसे अपने को ही उनमें बुन रही थी। औचक, एक चित्र में नन्हीं सी कोई बच्ची झूला झूलती उभरी तो दूजी में धुसरित रंगों में गांव और गांव का जीवन बंया हो रहा था। वहां हरे खेत थे, मृण पात्र थे और थे जीवन से जुड़े तमाम सरोकार।  
मनन समाज सेवा से मन से जुड़ी कलाकार है। बच्चों में रमती, उनमें ही बसती। पता चला, कभी निराश्रित एक बच्चे को वह अपने घर ले आयी थी। उसे पालते-पोषते ही कलाकार मन को लगा, ऐसे बच्चे जहां में और भी हैं जिनका कोई नहीं। क्यों नहीं, उन्हें भी प्यार की छांव दी जाए। बस इस सोच से ही नींव डाली मनन ने सुरमन आश्रम की। आज इस बाल आश्रम में परित्यक्त, निराश्रित 88 बच्चें हैं। स्वाभाविक ही है, मनन के कलाकार मन में भी यही बच्चे बसते हैं। इसीलिए तो उसकी कलाकृतियों में बच्चों की ईच्छाओं, उनकी हंसी के रंग हैं तो जीवन से जुड़ा वह दर्द भी औचक बंया होता है जिसमें नन्हीं कोंपलों के लिए आसमान की छत के सिवा कोई और सहारा नहीं। रंगों से जुड़े जीवन सरोकारों की अपनी कलाकृतियों की बिक्री से मनन नन्हीं कांेपलों के सुखद भविष्य के स्वप्न संजोए हुए हैं। उनके यह स्वप्न पूरे हों। आमीन! 
बहरहाल, किसी कलाकार की यह अद्भुत सर्जना ही तो है, जिसमें अपने लिए नहीं दूसरों के लिए कुछ करने का आत्मान्वेषण रंगों से यूं बंया हुआ है। आप क्या कहेंगे!


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