Thursday, November 11, 2021



'जनसत्ता' रविवारीय में "आँख भर उमंग"

"...प्रवहमान भाषा शैली में लिखे इस यात्रा संस्मरण को पढ़ कर पाठक लेखक के साथ जैसे विचरता चलता है।...यात्राओं का कवित्वपूर्ण, रोचक वर्णन।'

—7 नवम्बर 2021

'अमर उजाला'  में "आँख भर उमंग"

डॉ. राजेश कुमार व्यास का यात्रा संस्मरण 'आँख भर उमंग' इस समय चर्चा में है। इसमें लेखक की साहित्यिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक, प्राकृतिक और पर्यावरणीय यात्रा दृष्टि का कवित्वपूर्ण, हृदयस्पर्शी रूपांकन और इतिहास मिथक को एकरस करती किस्सागोई विशिष्ट है। मार्ग से मंजिल तक की प्रत्येक संज्ञा से जुड़े पौराणिक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक और सामाजिक संदर्भों पर लेखक की


अद्भुत पकड है। यात्रावृत्त पढते पाठक को  बार बार  लगता है कि लेखक उसे हाथ पकड़कर इतिहास, भूगोल की सीमाओं के पार स्थल विशेष के उद्भव और विकास की परिधियों तक ले गया है, और  कोने कोने को झाँककर दिखा रहा है। 

कहीं चंबल के बीहड़ों के बीच खंडहरों में सांस्कृतिक वैभव की तलाश है तो  रवींद्र की हवेली तथा शांति निकेतन में मूर्त - अमूर्त कलाओं का आभास। कहीं सिद्धार्थ से तथागत बनते गौतम बुद्ध की आत्मिक यात्रा की सहवर्ती मानसिक यात्रा है तो शिव के ज्योतिर्लिंगों तीर्थों और मंदिरों में शिवत्व का संधान। कहीं आदिवासी कलाओं में पैठकर उनकी आदिम जीवन शैली की पडताल है तो कहीं लोक देवी- देवता, लोक परंपरा और लोकाचार । कहीं हम्मीर और कान्हड़देव की वीरगाथाओं के साक्ष्य हैं तो  खेत खलिहान और गाँव की गोधूलि का आनंद भव है।

शिल्प से सरोकार तक, श्लोक से मंत्र तक, कविता से चित्र तक,सेतु से नदी तक, संग्रहालय से संस्थान तक, खंडहर से दुर्ग तक, शास्त्र से लोककथाओं तक, पाषाण से मूर्ति तक, हवेली से मंदिर तक, दंतकथाओं से जातक कथाओं तक, किंवदंतियों से प्रमाण तक, सैलानी  ने  विस्तृत यात्रा संसार संजोया है।

विरासत, धरोहरों की यात्रा में लेखक लोकश्रुतियों, किंवदंतियों की भावुक कल्पनाओं को पुरातत्व और विज्ञान के साक्ष्यों की तार्किकता से पुष्ट करते हुए अतीत  गौरव की अमिट गाथाओं को और अधिक भास्वर,  मुखरित करता है।  संसद भवन की प्रेरणा में पुर्तगाली स्थापत्य के स्थान पर मितावली के इकोत्तरसा महादेव मंदिर की मूल प्रेरणा का प्रमाण देना और इस्लाम से गुंबद निर्माण की प्रेरणा के भ्रम को, इस्लाम के आगमन से वर्षों पूर्व बनी भोजेश्वर मंदिर की गुंबदाकार छत दिखा तोडने के प्रसंग इस वृत्त को भारत के सांस्कृतिक स्वाभिमान का यात्रावृत्त सिद्ध करते हैं। “आँख भर उमंग” ऐसी ही सजीव कृति है जिसके पृष्ठ दर पृष्ठ, पंक्ति दर पंक्ति, शब्द दर शब्द पढ़ता पाठक एक पल को भी ध्यान नहीं भटका सकता।

 

—31 अक्टूबर 2021

'राजस्थान पत्रिका' में "आँख भर उमंग"

केन्द्रीय साहित्य अकादमी से सम्मानित रसज्ञ कवि, कलाविद् डॉ.राजेश कुमार व्यास की राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से प्रकाशित 'आंख भर उमंग' कृति एक दशक की उनकी यात्राओं का भाव भरा प्रस्फुटन है।  यह यात्रा चंबल के जंगलों, नालंदा के खंडहर, नर्मदा की धाराओं, पहाड़ों की नैसर्गिक छटाओं के साथ-साथ भारत की लोक संस्कृति, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक अन्तर्यात्राओं को भी समाहित करती है, जहां प्रकृति,वास्तु शिल्प, इतिहास एवं कला का वैभव चाक्षुष बिम्ब के रूप में व्यक्त होता है।

डॉ. व्यास के इस यात्रा संस्मरण में पहाड़ों की यात्रा में रोमांच के साथ प्राकृतिक सुषमा का मोहक दृश्य लेखनी की मंत्रमुग्ध गति है। भीमताल की यात्रा करते हुए वे लिखते हैं, " गाड़ी पहाड़ से नीचे उतर रही है। पेड़ों का झुरमुट... और बीच में इकट्ठा जल। बरखा के पानी को जैसे धरित्री ने अपनी छोटी सी अंजुरी में बहुत जतन से समेट लिया है।" यह भावमयी क्षिप्रता आकर्षण पैदा करती है।

यात्रा के साथ साथ पुस्तक में लोक संस्कृति से तादात्म्य हमारी आंतरिक लय को भी गतिमान कर देता है। 'दहकते अंगारों पर सबद नाद' शीर्षक यात्रावृत्त में जसनाथी नृत्य का वर्णन करते हुए लेखक स्वयं चमत्कृत होकर लिखते हैं, "लाल दहकते अंगारों पर जसनाथी नृत्य। तेज होते वाद्यों की गति और शब्द नाद के साथ नर्तक अपनी धुन में मगन! औचक एक नर्तक अंगारे को हाथों में उठा मुँह में डाल रहा है तो दूसरा उसे अपनी हथेली में ले मजीरे की तरफ फोड़ रहा है।" यह वर्णन पाठक को भी रोमांचित कर देता है।

डॉ. व्यास प्रकृति के चितेरे हैं। ऐसी स्थिति में पदार्थवादी दुनिया के प्रति उनका विकर्षण स्वाभाविक है। कश्मीर की वादियों में विचरते हुए अपने मन की थाह लेते हुए कह उठते हैं, "शहरीपन से आए बदलावों पर जब भी विचारता हूँ, मन जैसे बुझ जाता है। ढूंढने लगता हूँ, इस गडरिए जैसी उस मस्ती को जो अब न जाने कहाँ लोप हो गई है।"

इसी तरह कवि मन, कला हृदय लेखक ने गाँव, नगर, दुर्ग, नदियों, पहाड़ों, मंदिरों से लेकर खेत खलिहानों तक की यात्रा को जीवंत रूप में प्रवाहमयी शैली के साथ प्रस्तुत किया है। उल्लेखनीय है कि यात्रावृत्त रिपोर्ताज शैली में ना लिखकर भाव-भरी रसात्मक शैली में प्रांजल शब्दावली के साथ है,जिसमें पाठक लेखक के साथ ठहरता हुआ यात्रा करता है। लघु आकार में अनावश्यक शब्द बोझिलता और अलंकरण से बच पाना लेखक की उदारता का प्रमाण है। छिहत्तर यात्रावृत्तों की 250 पृष्ठों में समाहित 'आंख भर उमंग' पुस्तक संपूर्ण भारत की परिक्रमा है। पुस्तक में लेखक द्वारा लिए छायाचित्र भी मोहक है।

—राजस्थान पत्रिका, 24 अक्टूबर 2021



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