Friday, March 12, 2010

स्मृतियों के दृष्यालेख



सैयद हैदर रज़ा के चित्र स्मृतियों के दृष्यालेख हैं। ऐसे जिन्हें आप देखकर सुकून पा सकते हैं, पढ़ सकते हैं और हां, यदि घूंट घूंट आस्वाद लंेगे तो अर्से तक आप उन्हें भुला भी नहीं पाएंगे। वे आपकी स्मृतियों को झंकृत करते रहेंगे। रजा दअरसल चित्रों से देखने वाले का रागात्मक संबंध स्थापित कराते हैं। बेषक, चित्रों में उभरी स्मृतियां उनकी वैयक्तिक हैं, उनके अपने संदर्भ है परन्तु वे देखने वाले की अंतर्मन भाव सत्ताओं को गहरे से छूती है। ड्राइंग के अंतर्गत रेखाओं का उनका सहज लयात्मक संतुलन और कोमलता हर देखने वाले को आत्मीयता का बोध कराती है। उनके चित्रों में जिस प्रकार की सफाई, रंग स्पर्ष से झलकने वाली कोमलता नजर आती है, वह अमूर्तन में इधर न के बराबर दिखायी देती है। यह रजा की कला के गंभीर आत्मसयंम की ही परिणति है, जिसमें वे कैनवस पर अनुभूति और संवेदनाओं के अपने आत्मकथ्य की खोज बाहर की ओर नहीं करके भीतर की ओर करते हैं, देखने वालों को करवाते हैं।बहरहाल, रज़ा के चित्रों पर पहले भी लिखा है, परन्तु इस बार जब जवाहर कला केन्द्र में लगे उनके चित्रों की प्रदर्षनी देखी तो लगा वे इस उम्र भी में भी निंरतर कला की बढ़त की ओर ही उन्मुख है। रंगों का तो वे अद्भुत लोक रचते हैं। रंग उनके चित्रांे का माहौल बनाते हैं। भावों के उद्वेग में रंग एक निर्मम तटस्थता भी प्रदान करते हैं। आंतरिक तन्मयता और आग्रहषीलता से रजा अपनी ऐन्द्रिकता को कैनवस पर रूपायित करते जैसे दृष्यों को लेख बंचवाते हैं। प्रकृति और जीवन के रहस्यों को कैनवस की भाषा में परोटते उनके चित्र अभिप्राय बहुत अधिक चर्चित भले नहीं हो परन्तु बौद्धिक आडम्बर उनमें नहीं है। मसलन पंचभुत तत्व का उनका चित्र ही लें या फिर बिन्दू के उनके चित्र या फिर उनके रेखांकन-सभी में ज्यामितिक आकारों के उभरते बिम्ब और प्रतीक अदम्य ऊर्जा लिए हैं। उनके चित्रों की बड़ी विषेषता यह भी है कि वे पावन शंांति का अहसास कराते हैं। ऐसे दौर में जब रंग और रेखाएं कैनवस में कला की सघनता की बजाय बाजार की संभावनाओं की दस्तक देती हों, यह बेहद महत्वपूर्ण है कि रजा के चित्र कला के सच से हमंे रू-ब-रू कराते आषय की अर्थवत्ता की तलाष कराते हैं। उनके बरते रंग मन में उत्सवधर्मिता का जैसे आगाज करते हैं। कोलकाता की आकार-प्रकार आर्ट गैलरी के जरिए प्रदर्षित उनके चित्र हाल ही बनाए हैं और वे सभी ‘लिरिकल’ हैं, हॉं, कुछ में जबरदस्त दोहराव भी है परन्तु समग्रता में उनके चित्रों के रंग और रूपाकार एक अतीन्द्रिय सत्ता के संवाहक बनते, सूक्ष्म बौद्धिक संवेदनाओं का सांगीतिक आस्वाद लगभग सभी स्तरों पर कराते हैं।


"डेली न्यूज़" में प्रति शुक्रवार को प्रकाशित डॉ राजेश कुमार व्यास का स्तम्भ "कला तट" दिनांक १२-३-१०

2 comments:

Urmi said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

Apanatva said...

Raza jee kee painting se sakshatkar ke liye dhanyvad.