Saturday, September 4, 2010

अलहदा चित्रकार आर.के. लक्ष्मण

भारतीय कला परम्परा के अंतर्गत विष्णुधर्मोत्तर पुराण में ‘चित्रसूत्रम्’ के अंतर्गत चित्रकला के जो नौ रस बताए गए हैं, उनमें व्यंग्यचित्रकला भी प्रमुख है। विडम्बना यह है कि मूल्यांकन के अंतर्गत आधुनिक और पारम्परिक चित्रकला में भेद करते हमने हास्य-व्यंग्य चित्रकला को इधर जैसे सिरे से बिसरा दिया है। यह जब लिख रहा हूं, आर.के लक्ष्मण का कॉमन मैन याद आने लगा है। चेक का बंद गले का कोट, सर पर चंद बालों के गुच्छे, नाक पर भारी सा चश्मा लगाता अधेड़ उम्र का लक्ष्मण का हास्य-व्यंग्य चित्र किरदार कॉमन मैन हैरान और हक्का बक्का सा हमारी राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक सभी गतिविधियों से संबंधित घटनाओं का जैसे मूक साक्षी है।

एक चित्र में आर.के.लक्ष्मण ने अपने कॉमन मैन को बड़े उदर, लम्बे कान के भगवान गणेश के चित्र के समक्ष नतमस्तक होते दर्शाया है। इन दिनों जब आर.के. लक्ष्मण अस्पताल में गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। स्नेहवश उनके द्वारा भेंट किए और अपने अध्ययन कक्ष में लगाए उनके इस चित्र को देखकर मुझे औचक खयाल आता है कि उनका कॉमन मैन गणेश से अपने सृजनहार को ठीक करने की प्रार्थना कर रहा है। क्यों न करें? उनका सृजनहार सबसे अलायदा जो हैं। बारीक रेखाओं में अपने व्यंग्यचित्रों से लक्ष्मण ने जीवन के तमाम पहलुओं को हर ओर, हर छोर से जैसे बार-बार उद्घाटित किया है।

याद पड़ता है, पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे.कलाम ने जयपुर में उनके व्यंग्यचित्रों की कला प्रदर्शनी ‘लक्ष्मण रेखा’ का उद्घाटन किया था, तब उनसे लम्बा संवाद हुआ था। सवाल करें तो हर जवाब में आपसे सवाल। पैरेलेसस के बाद भी उनके काम में कोई फर्क नहीं पड़ा। कहने लगे, ‘हाथ और दिमाग काम कर रहा है...और क्या चाहिए।’ किसी से मिलना-जुलना उन्हें पंसद नहीं। न कहीं वे जाते-आते हैं, फिर उनका कॉमन मैन कैसे समकालीन जीवन की सांगोपांग अभिव्यक्ति कर देता है? सवाल जब हुआ तो बोले, ‘आम आदमी के पास जाना क्या जरूरी है? मीडिया सारा कुछ तो बताता ही है।’ रचनाकार के तौर पर कोई अपेक्षा के सवाल पर कहने लगे, ‘मैंने जो बनाया है, उसे लोग समझे बस इतनी ही।’ पहली बार ऐसा हुआ कि किसी व्यंग्यचित्रकार की कला प्रदर्शनी का राष्ट्रपति ने उद्घाटन किया। इस पर जब प्रश्न हुआ तो कहने लगे, ‘पहली बार किसी ने इतना अच्छा कार्य जो किया है। आपको नहीं लगता?’

बहरहाल, उनका जवाबनुमा यह सवाल मन में हलचल मचा रहा है। सच ही तो कहा उन्होंने, व्यंग्यचित्रकला में लक्ष्मण ने जो किया है, वह क्या कोई ओर कर सका है? है कोई, जिसमें अपने काम के प्रति इतना आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा हो? व्यंग्य चित्र कॉमन मैन जितना हुआ है कोई और व्यंग्यचित्र इतना लोकप्रिय? कॉमन मैन के साथ आईए, हम भी ईश्वर से दुआ करें। वे जल्द स्वथ हों। आमीन!

"डेली न्यूज़" में प्रति शुक्रवार को प्रकाशित डॉ.राजेश कुमार व्यास का स्तम्भ "कला तट" दिनांक 3-09-2010

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