Friday, October 5, 2012

चीन में भारतीय कला की अनुगूंज


कलाएं व्यक्ति की दृष्टि का विस्तार करती है। अरूप का रूप दिखाती हुई। अतीत की राह से भविष्य की वास्तविकताओं से हमें रू-ब-रू कराती हुई। कहें एक व्यापक सांस्कृतिक प्रतिक्रिया के भीतर कलाओं के जरिये ही हमारा समाज अपनी तमाम स्मृतियों, विस्मृतियों, खामियों और बेशक विशेषताओं के साथ मौजूद रहता है। शायद इसीलिये कलाओं के जो अन्तर्राष्ट्रीय आयोजन होते हैं उनमें देशों की दूरियां समाप्त होती विश्व को सृजनात्मकता के क्षितिज पर एक करती है। चीन की राजधानी बीजिंग में समकालीन भारतीय कला सरोकारों से जोड़ती भारतीय कलाकारों की विशेष प्रदर्शनी इसी की संवाहक है। इसलिये कि इसमें देशज विशेषताओं के साथ कला में विश्व स्तर पर हो रहे बदलावों और रूप परिवर्तनों को भारतीय कलाकारों ने अपनी कला में गहरे से संजोया है।
 सितम्बर माह की 28 तारीख से प्रारंभ हआ पांचवा बिजिंग अन्तर्राष्ट्रीय आर्ट बिनाले 22 अक्टूबर तक चलेगा। केन्द्रीय ललित कला अकादमी द्वारा इस बिनाले में ग्यारह भारतीय कलाकारों की 26 कलाकृतियां प्रदर्शित की गयी है। इनमें कैनवस पर रंग और रेखाओं के सरोकार हैं, फाईबर, ग्लास, बोंज और मार्बल से रचित शिल्प है, कैलिग्राफी में गूंथा सृजन है और इसके साथ ही संस्थापन के जरिये दृश्यों आधुनिक सरोकार भी हैं।  ललित कला अकादमी के सचिव सुधाकर शर्मा ने इस कला प्रदर्शनी को अपने तई किये प्रयासों से संभव बनाया। बाकायदा इसके लिये देशभर के कलाकारों और उनकी कलाकृतियों में से वह खास ढूंढा गया जिससे अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर भारतीय कला अपनी विशिष्टता का प्रतिनिधित्व कर सके। कलाकृतियों में निहित संवेदना और आधुनिकता के अपनापे की ही वजह कहें कि भारतीय कला को स्वयं चीन ने अपने इस प्रतिष्ठित बेनाले आयोजन के लिये मेजबानी दी। 
बहरहाल, पिछले दिनों जब दिल्ली जाना हुआ तो सुधाकर शर्मा से इस बारे में संवाद हुआ। उद्घाटन समारोह में शिरकत कर लौटे सुधाकर कहने लगे, ‘इस बार प्रदर्शित कलाकृतियां में भारतीय संस्कृति की अनुगूंज देखने वालांे के लिये विशेष आकर्षण लिये है।’ यह कहते बीजिंग में प्रदर्शित भारतीय कलाकृतिया का छायाचित्र आस्वाद भी उन्होंने कराया। आस्वाद करते लगा, कोई एक दीठ नहीं बल्कि सृजन की दृष्टि बहुलता उन कलाकृतियों में है। यह भी लगा कि देश की सभ्यता और संस्कृति के ताने-बाने को विश्व कला परिवर्तनों से जोड़ते भारतीय कलाकार इधर बहुत कुछ महत्वपूर्ण रच रहे हैं। मसलन सीमा कोहली की कलाकृति देखते लगता है, वह अपने बोंज स्कल्पचर में कुण्डलिनी जागृति के जरिये भारतीय ध्यान और योग परम्परा को उद्घाटित कर रही है तो परमेश्वर राजू केलिग्राफी की देश की शानदार कला के जरिये पौराणिक चरित्रों और उनमें निहित विश्वास को स्वर दे रहे हैं। के.एस. राधाकृष्णन के स्कल्पचर में टैक्सचर की सघनता में स्ट्रक्चर का खास पहलू, के.के. मुहम्मद, सुमन गुप्ता विजय बागोरी के ग्राफिक और पंेटिंग में भारतीय परम्परा में आधुनिकता की छोंक है। अंजू डोडिया, दीपक शिन्दे के कैनवस पर रंग-रेखा सरोकार गहरे से उद्घाटित होते हैं तो रियाज कोमू और चित्रांकन मजूमदार के विडियो संस्थापनों में दृश्य की संवेदना को गहरे से जिया गया है। मुझे लगता है ललित कला अकादमी ने इस बार बीजिंग के अन्तर्राष्ट्रीय कला मेले के लिये कलाकृतियां का चयन करते हुए इस बात का भी विशेष ध्यान रखा है कि सांस्कृतिक विविधता में वहां कला के वर्तमान भारतीय सरोकारों के तमाम आयाम सम्मिलत हों। बीजिंग बेनाले की थीम भी ‘भविष्य और वास्तविकता’ है। इस दीठ से भी कला के बदलते रूपों में सृजनात्मकता का सांगोपांग प्रवाह कराती लगती है प्रदर्शित भारतीय कलाकृतियां। 
कभी मार्को पोलो ने चीन शब्द को विश्वभर में प्रसारित किया था और आज विश्व के शक्तिशाल देशांे में यह सुमार है। इस शक्तिशाली राष्ट्र में ललित कला अकादमी के प्रयासों से समकालीन भारतीय कला की संपन्नता की अनुगूंज हो रही है तो यह हमारे लिये गौरव की ही बात है। 

डेली न्यूज़ में प्रति सप्ताह एडिट पेज पर प्रकाशित डॉ राजेश कुमार व्यास का स्तम्भ "कला तट" दिनांक 5-10-2012

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