Saturday, March 9, 2013

संस्कृति का अनहद नाद


नीरज गोस्वामी कैनवस पर रंगो और रेखाओं का अनूठा भव रचते हैं। कैनवस पर म्यूरलनुमा संरचनाओं में वह एक प्रकार से सभ्यता और संस्कृति का अनहद नाद अपनी कला में करते हैं। उनका कैनवस अतीत की स्मृतियां कराता है परन्तु यह खण्डहरनुमा नहीं है, रंग संगति में रेखाओं के उजास में यह भविष्य की बुनघट है। काल को ध्वनित करते उनके चित्र कोई कथा, कोई व्यथा या दृष्टांत के औचक ही संवाहक बनते हैं। हम उन्हें देखते हंै और समय के, परिवेश के संदर्भ अपने आप ही हमसे तब जुड़ने लग जाते हैं। 
बहरहाल, केन्द्रीय ललित कला अकादेमी ने कुछ दिन पूर्व ही अजमेर में राष्ट्रीय कला शिविर का आयोजन किया था। इस शिविर में नीरज गोस्वामी के चित्रों से जब साक्षात् हुआ तो लगा, वह जो बनाते हैं, उसमें रंग और रेखाओं के उजास के साथ शिल्प का माधुर्य है। अलंकारिक वस्तुनिष्ठ चित्रों को वह हमारे समक्ष रखते आकृतियों से अपनापा कराते हैं। कैनवस पर व्यक्ति और वस्तुओं के रहस्यमय अस्तित्व को वह जैसे अपने तई उद्घाटित करते हैं। 
नीरज की कला का आस्वाद करते मार्शल मैक्लुहान के उस कहे की औचक याद हो आती है जिसमें उन्होंने शिल्प विज्ञान को मानव के मस्तिष्क और हाथों की क्षमता बढ़ाने की बात कही थी। सोचता हूं, शिल्प व्यक्ति की सोच में बढ़त करता है। माने शिल्पी जब कुछ गढ़ रहा होता है तो वह केवल मूर्ति की आकृति ही नहीं  स्वयं अपने को भी गढ़ रहा होता है। शिल्पी के मन की थाह कहां कोई ले सका है! अजन्ता, एलोरा और कोर्णार्क के साथ तमाम हमारे शिल्प पर जाते हैं तो लगता है शिल्पी पत्थर पर आकृतियो को गढते संगीत, नृत्य और चित्रकला को भी अपने तई जी ही तो रहा होता है। इस दीठ से नीरज रेखाओं और रंगों में शिल्प की गढ़त करते हैं। यह गढ़त ही उनकी कला की बढ़त है।  वहां दृश्य की शिल्प सिराओं को सहज पकड़ा जा सकता है। 
दृश्य सौन्दर्य में वहां लोक कलाओं का उजास है, माया सभ्यता की समृद्ध संस्कृति वहां उद्घाटित होती है तो भारतीय शिल्पकला का माधुर्य भी वहां है। रेखीय संरचनाओं का ज्यामीतिय आयाम लिए नीरज की कलाकृतियां सुनहरे आवरण में ढकी देखने के हमारे सौन्दर्य प्रतिमानों को सवाया करती है। उनके चित्र देखते कलाकृतियों को देखने का हमारा एकरसता का ढंग बदल जाता है। औचक, लगता है-कला का एक सौन्दर्य प्रतिमान यह भी है। 
मातिस के चित्रों की मानिंद नीरज के चित्रों में प्रकाश के स्थान पर रंगो का समरूप प्रयोग भी अद्भुत है। रंगो से वह अवकाश की रचना करते संयोजन और अंकन की सहज सरलता पर अनायास ही जाते लगते हैं। उनके चित्रों से साक्षात् होते बार-बार यह अहसास भी होता है कि जो कुछ वह बनाते हैं, उसमें स्वयं की उनकी आत्मिक अभिव्यक्ति है। वहां परम्परा है परन्तु वह जड़ रूप में नहीं। आधुनिकता है पर वह प्रदर्शन की चमक लिए नहीं। सौम्यत्या में व्यक्ति-वस्तु के बाह्य रूप से आन्तरिक सत्य का साक्षात् कराते उनके चित्र आकारों के सरलीकरण के साथ उनमें निहित सौन्दर्य से मन में गहरे से बसते हैं। मैक्सिन भित्ति-चित्रण में जन भावनाओं की अभिव्यक्ति में योरपीय पच्चीकारी से लेकर अर्नुवो शैली का जिस तरह से सहारा रिवेरा, ओरोस्को आदि कलाकारों ने लिया, ठीक उसी तरह से नीरज के चित्रों में भारतीय शिल्प, यहां के मिनिएचर, अध्यात्मक की परम्परा, ध्यान आदि का सम्मिश्रण है। नीरज के चित्रों में स्मृतियों की व्याकुलता है परन्तु वह ऐसी है जिसमें किसी प्रकार की छटपटाहट और भागमभाग नहीं है। शांत! चित्रों में ध्यान के साथ भीतर के ज्ञान का जैसे चित्र दर चित्र वह प्रवाह करते हैं। 


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