Friday, March 15, 2013

छायाकला आकाश


छायाकार दिखाई दे रहे रूप को अपने तई अर्थपूर्ण बनाता है। वह यथार्थ का अपने कैमरे से रूपान्तरण ही नहीं करता बल्कि उसमें छिपे रंग, स्पेस, रेखाओं के जरिए तमाम कलात्मक संभावनाओं का आकाष हमारे समक्ष खोलता है। औचक ज़हन में कईं प्रष्न घुमड़ने लगे हैं। शब्द प्रकाष को चाह कर भी क्या पकड़ पाते हैं? गति को चाह कर भी क्या व्यंजित कर पाते हैं? झरने के झर-झर, पानी के उथलेपन को ठीक वैसे ही क्या जता पाते हैं? नहीं ना! परन्तु छायाकला में यह सब संभव है। इसलिए कि वहां छायाकार दृष्य की छवि अंकित करने के साथ अनुभूति के उस अपूर्व का भी रूपान्तरण कर रहा होता है, जिस तक शब्द चाहकर भी पहुंच नहीं पाते। मुझे लगता है, छायांकन चित्रों की मूक भाषा है। ऐसी जिसे हर कोई समझ सकता है। छवि को अंकित करते छायाकार वहां कैमरे का ही सहारा नहीं ले रहा होता बल्कि मनष्चक्षु से दिख रही छवियों को अपने तई पुर्नसृजित भी कर रहा होता है। वह दृष्य के साथ उसके अनूठे सौन्दर्यबोध से भी हमारा नाता जो करा रहा होता है! 

बहरहाल, मालवीय नेषनल इन्स्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलोजी की फोटोग्राफी क्लब क्रिएटिव सोसायटी संभवतः देष का पहला ऐसा उद्यम कहा जा सकता है जो विद्यार्थियों को छायाकंन के जरिए कला संवेदनाओं से गहरे से जोड़ता है। सर्वाधिक सक्रिय क्लब। इस मायने में कि हर वर्ष इसके अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर की फोटोग्राफी प्रदर्षनी के साथ प्रतिस्पद्र्धा आयोजित होती है। क्लब की सक्रियता और आयोजनधर्मिता के पीछे जिस संवेदनषील कला शख्स की अहम भूमिका है, वह है चर्चित छायाकार महेष स्वामी। महेष छायांकन को कला संवेदना से जोड़ने के उपक्रमों में जुनून की हद तक अपने को एक प्रकार से झोंके हुए हैं।  मालवीय संस्थान के फोटोग्राफी क्लब के अंतर्गत देष के भिन्न-भिन्न  प्रांतों के विद्यार्थियों की छायाकला प्रदर्षनी के साथ विषयवार छायाचित्रों से चुनिंदा का चयन कर उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। खास बात यह कि यह क्लब पूर्णतः स्वप्रेरणा से कार्य करती है। फोटो प्रदर्षनी के आयोजन से लेकर उसके समापन तक की तमाम औपचारिकताओं में विद्यार्थी ही प्रमुख होते हैं और उनकी इस भूमिका को पंख दे रहे होते हैं, क्लब के सलाहकार महेष। इस बार स्वामी के प्रयासों से नई पहल यह भी हुई कि देष के सुप्रसिद्ध छायाकार षिवनारायण जोषी ‘षिवजी’ विद्यार्थियों से रू-ब-रू हो सके। महेष के आग्रह पर प्रदर्षनी समापन पर खाकसार ने भी विद्यार्थियों से संवाद किया। सुखद लगा यह अनुभूत कर कि तकनीकी षिक्षा के छात्र-छात्राएं कलाओं के मर्म की गहराई में जाना चाहते हैं। संवाद में इन पंक्तियों के लेखक ने प्रस्तावित भी किया कि रोजमर्रा के जीवन से दृष्यों को हम छायाकला में जीएं। दृष्य में निहित  संवेदना को पकडें़, दृष्य में निहित गति के अदृष्य को छूएं। इसी से वस्तुओं के प्रेत हमसे बतियाएंगे। यथार्थ स्मृतियों में रूपान्तरित होकर हमसे संवाद करेगा। 

ब्हरहाल, छायाकला वह दर्पण जिसमें झांकने वाला स्वयं ही प्रतिबिम्बित होता है। आरोन शोर्फ ने अपनी पुस्तक ‘आर्ट एंड फोटोग्राफी’ और आल्फ्रेड स्टाइग्लिट्ज ने अपनी पत्रिका ‘कैमरा वर्क’ के जरिए कभी छायाकंन को कला का स्थान दिलाने की नींव रखी थी। आज तमाम दूसरे माध्यमों में छायाकंन की कला भूमिका साफ दिखाई दे रही है। क्या ही अच्छा हो, मालवीय नेषनल इन्स्टीट्यूट आॅफ टेकनोलोजी  के फोटोग्राफी क्लब के संरक्षक और वहां के सृजनषील निदेषक प्रो. आई.के. भट्ट छायांकन से संबंधित कुछ व्याख्यान तमाम अपने छात्र समुदाय के लिए आयोजित करे। तकनीकी षिक्षण संस्थाओं में इस तरह की पहल इसलिए भी जरूरी है कि इसी से छात्र भविष्य के संवेदनषील अभियंता के रूप में समाज को अपूर्व दिषा दे सकने मंे समर्थ हो सकेंगे।

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