Friday, July 5, 2013

सौन्दर्य की शिल्प सर्जना

कलाएं जीवन की उत्सवधर्मिता का नाद हैं। कहें, यह कलाएं ही हैं जो मानव मन की एकरसता को तोड़ उसमें आनन्द रस उपजाती है। आखिर हमारा यह जीवन कलाओं के उजास से ही तो स्पन्दित है।  शिल्पकला में शिल्पी  सौन्दर्य को अपने तई गढ़ता ही तो है। रूपाकारों की उसकी गढ़न यथार्थ का अंकन भर ही नहीं होती बल्कि उसमें परिवेश से जुड़ी सोच, संवेदना को भी गुना और बुना जाता है। इसीलिए तो मूर्ति में निहित विषय ही महत्वपूर्ण नहीं होता बल्कि उसके गढ़न तत्वों की सौन्दर्य सर्जना का आस्वाद भी मन को बहुतेरी बार स्पन्दित करता है। 
बहरहाल, रूपाकार में ही क्यों  शिल्प में निहित गढ़न तो अमूर्त में  भी स्मृतियों में अनन्त काल तक बसती ही है। यह जब लिख रहा हूं, देश के प्रख्यात कलाकार अनिलकुमार के उकेरे  शिल्प स्मृतियों को जैसे झंकृत रहे हैं। कुछ दिन पहले भोपाल में जनजातीय संग्रहालय के उद्घाटन अवसर पर उनके मूर्तिशिल्पसे साक्षात् हुआ था। लगा, यह वह मूर्ति शिल्प नहीं है जिसका पहले कभी आस्वाद किया था।  शिल्प का यह नया आकाश हैं। ऐसा जिसमें वस्तुओं से अधिक उसका अर्थ हममें बसता है। सोचता हूं, सौन्दर्य का अर्थ आस्वाद ही तो लिए है अनिलकुमार का तमाम  शिल्पकर्म। 
अनिलकुमार ने भोपाल के जनजातीय संग्रहालय की स्थापना में महत्ती योगदान दिया है। वहां प्रदर्शित  शिल्प के बहुत से स्तरों पर वह संवाहक रहे हैं परन्तु स्वयं उनका  शिल्प भी तो अद्भुत है। कहें, स्टोन-स्टील में वह मूर्ति शिल्प देखने की हमारी एकरसता को तोड़ते हैं। देश  के वह चुनिंदा ऐसे कला शिल्पी  हैं जिन्होंने अपने अद्भुत रूपाकारों के कलाकर्म में सौन्दर्य के मर्म को गहरे से छुआ है। उनका  शिल्प संसार हमें  निर्माण के अपूर्व  में ले जाता है। ऐसे संसार में जिसमें मार्बल, ग्रेनाईट, जैसलमेर सैण्ड स्टोन के साथ स्टेनलेस स्टील में देश -काल-परिवेश  अभिव्यंजित हुआ है। मूर्ति शिल्प की प्रचलित परम्पराओं से इतर रोजमर्रा के जीवन में बरती जाने वाली वस्तुओं से प्रेरणा ले उसमें वह कलात्मकता का नया इतिहास रचते हैं। धवल मार्बल का उनका एक शिल्प आंखों में बस रहा है। मार्बल की विषिष्ट गढ़न। इसमें स्टेनलेस स्टील की रोपी हुई कीलें। कहीं भी इसे रखेंगे-छाया के अद्भुत लोक से साक्षात् होगा। ऐसे ही हरे ग्रेनाईट में सर्जित कल्पनाओं के आकाश  में नारियल के टूकड़ों सरीखा पात्र। इस रूपाकृति में स्टील के आभुषण। देखते हुए मन करता है-रूप को सदा के लिए आंखों में बसा लें। जैसलमेर के सैण्ड स्टोन की एक रूपाकृति की उनकी गढ़न में प्रयुक्त स्टील की गोलियां और उनमें प्रतिबिम्बित दृष्य। अद्भुत सौन्दर्य! और ऐसे ही हरे ग्रेनाईट, सैण्ड स्टोन की मूसली सरीखी आकृति में रखा वृत्ताकार स्टील का पारदर्शीपन । अनीष कपूर के स्काई क्लाउड की भी औचक ही यहां याद आती है। ऐसे ही एक और ग्रेनाईट-स्टील शिल्प में चांद सरीखी आकृति का रचाव सौन्दर्य के अपूर्व संसार में ले जाता है। 
मुझे लगता है, आकारों के सरलीकरण में अनिल रेखाओं की लय अवेंरते  हैं। प्रदर्शित रूप से अधिक उसका आशय वहां महत्वपूर्ण है। कहें वह अर्थगर्भित शिल्प के सर्जक हैं। पत्थर और स्टील के संयोग से वह जो गढ़ते हैं उनमें गजब का छाया प्रवाह है। माने उनके शिल्प को कहीं रखेंगे तो उसका सौन्दर्य उसके पड़ रहे छाया-प्रभाव में भी औचक महसूस होगा। रेखाचित्रों की मानिंद उनमें गतिमय दिशाओं  का अंकन जो है! लहराती, एक दूसरे में विलीन होती रेखाएं। उनके शिल्प में स्थापत्य है  नाट्य भंगिमाएं हैं और है सांगीतिक लय। सोचता हूं, सभ्यता का हमारा इतिहास पाषाण  रचित शिल्प से ही तो जुड़ा है!  इस दीठ से अनिलकुमार गढ़न का सौन्दर्य इतिहास ही तो लिख रहे हैं। आयताकार, चैकोर में वह खंड-खंड सौन्दर्य की सर्जना करते हैं!