Friday, August 2, 2013

टेराकोटा छायाचित्रों का संवेदना आकाश



कलाएं संवेदना की सृष्टि करती है। भावनाओं के अनंत आकाश में व्यक्ति अपने होने को कलाओं में ही तो सार्थक करता है। शिल्प की ही बात करें। कलाकार जब कोई मूरत गढ़ रहा होता है तो वहां मूरत ही प्रधान नहीं होती कलाकार का स्व भी तो रूपान्तरित होता है। पाषाण, धातु और मिट्टी के शिल्प इसीलिए तो देखने वालों को लुभाते हैं कि वहां कलाकार का संवेदन मन भी कहीं निहित होता है। 

बहरहाल, हिम्मत शाह इस युग में मिट्टी के अनूठे सर्जक हैं। खंड खंड अखंड के मूर्तिशिल्पी। माने जो कुछ उन्होंने बनाया है, देखने में केवल वही नहीं बल्कि सर्जना के सर्वांग को हम उनके शिल्प में अनुभूत कर सकते हैं।

यहां उनके जिक्र की वजह यह भी है कि हाल ही उनके टेराकोटा का एक एलबम आया है, जिसमें शिल्प छायाचित्रों में मिट्टी की संवेदना को गुना गया है। टेराकोटा ऐसे जिन्हें देखा ही नहीं स्पर्श करके भी उनकी सर्जना को अनुभूत किया जा सकता है। कागज उभरे रंगीन चित्रों को स्पर्श करेंगे तो मिट्टी का भूरभूरापन, उसकी खुदाई, पक्काई के साथ शिल्प सर्जना जैसे आपके समक्ष जीवंत हो उठेगी। जो कुछ उन्होंने गढ़ा उस श्रेष्ठ की बानगी है उनका टेराकोटा एलबम, ‘टेराकोटा बाय हिम्मत शाह’।

लकड़ी के बोर्ड की जिल्द और उसमें आवरण पर गोल डिस्कनुमा कला। इस गोल में फिर से एक गोल। मिट्टी की छोटी सी मूरत। इस पर स्वयं हिम्मत शाह का लिखा अपना नाम। इसके बाद पृष्ठ खोलेंगे तो उनके स्कल्पचरं नजर आएंगे। एक नहीं पूरे 288 पन्नों पर मंडे स्कल्पचर के रंगीन चित्र। शिल्प के चित्र भर नहीं बल्कि उसमें निहित माटी से जुड़ी संवेदना भी। हाथ से स्पर्श करेंगे तो संवेदना से साक्षात् होगा। शिल्प का दृश्य ही नहीं स्पर्श रूपान्तरण। 

मिट्टी से अपनापा रखते भांत-भांत के रूप हिम्मत शाह ने गढ़े हैं। वह मिट्टी को मथते, उसे पकाते और फिर उसी में बसते रूप की अनथक यात्रा कराते हैं। गौर करेंगे तो पाएंगे उनकी मृण कला में राजस्थान के गांव, मरूस्थल, देवरे और ग्रामीण सभ्यता के चिन्ह भी बहुत से स्तरों पर हैं। मंदिरों है तो उस पर लहराती ध्वजा भी। दीवार है तो उससे जुड़ स्पेस भी। पाबूजी और दूसरे लोकदेवताओं के थान भी हैं। गांव के लोगों द्वारा इस्तेमाल में ली जाने वाली वस्तुएं हैं-पर यह सब वैसे ही नहीं जैसे कि दिखते हैं बल्कि इन सबका कुछ-कुछ आभास हैं उनका शिल्प कर्म। इसलिए कि वहां अर्थ का आग्रह नहीं है। इसीलिए जो कुछ जीवंत एलबम में रखा है, वहां कहीं कोई शीर्षक नहीं है। 

बहरहाल, ‘टेराकोटा बाय हिम्मतशाह’ का आस्वाद करते कबीर की साखी ‘माटी एक रूप धरी नाना’ ज़हन मंे कौंधती है।  कबीर के कहे को मूर्तिशिल्पों में जीवंत आप यहां देख सकते हैं, स्पर्श से अनुभूत कर सकते हैं। वहां बोतलें हैं, पेड़ के तन्ने हैं, गांव का हैडपंप सरीखा कुछ है तो हुक्का जैसा भी कुछ है पर कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे ठीक से हम शब्दों से व्यंजित कर सकंे। कोई अर्थ दे सकें। 


माने आप रूप के अर्थ और उसके भीतर के अर्थ तलाशते रहेंगें। एक बार देखने के बाद बार-बार देखे को देखना चाहेंगे। यही उनकी कला की विशेषता है। वह मिट्टी से जो गढ़ते हैं उसमें हमारा यह जीवन स्पन्दित होता है। मुझे लगता है, कागज पर शिल्प की स्पर्श संवेदना की ‘टेराकोटा बाय हिम्मत शाह’ अनूठी कल्पना है। 

एक साथ हिम्मत शाह के अद्भुत शिल्पों का आस्वाद करना हो तो, इससे आपको गुजरना होगा। मिट्टी की जीवंत मूर्तियों का संग्रह। लगेगा, कागज के पन्नों से हेाते हुए माटी षिल्प की किसी सभ्यता में हम प्रवेष कर गए हैं। इस सभ्यता में देवराज डाकोजी, ज्योति भट्ट, कुमार शाह, राघव कनेरिया, रघुराय, रवि शेखर, शेलन पार्कर के हिम्मत शाह के बनाए शिलप छायाचित्रों का कला आस्वाद भी अवर्णनीय है। हिम्मत शाह ने यह जीवंत शिल्प अपने मित्र रामूकाटकम को समर्पित किए हैं।


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