Saturday, April 17, 2010

नाटक जारी आहे!


नाट्यकला को दृश्य काव्य कहा गया है। दरअसल इसमें यथार्थ की नकल नहीं बल्कि विशेष उद्देश्य से की गयी उसकी पुनःसृष्टि होती है। अनगिनत नाटकों की दर्शकीय दीठ में सदा ही यह महसूस किया है कि नाटक में जीवन का सतही यथार्थ ही प्रतिबिम्बित नहीं होता बल्कि उसमें गहरे नैतिक और सौंदर्यमूलक विवेक से मुनष्य के कार्यों और भावों की, जीवन की विभिन्न अवस्थाओं की कलात्मक कल्पनाशील अनुकृति भी कलाकार करता है। जब तक फिल्मों का दौर प्रारंभ नहीं हुआ था, तब तक नाटक केवल रंगमंच पर ही खेले जाते थे परन्तु अब उन्हें दूरदर्शन, रेडियो, और सिनेमाघारों में भी देखा, सुना जाने लगा है।

बहरहाल, रंगकर्म के कलाकारों की कला को इसी से व्यापक दर्शक मिल गए हैं। रंगकर्म को जीते ईश्वरदत्त माथुर के बारें में जब भी विचारता हूं, मुझे लगता है अभिनय को जीवन दर्शन बनाते उसमें अपने आप को तलाशने की कोशिश उन्होंने की है। मिले तो कहने लगे, ‘नाटक ग्लेमर नहीं, चकाचौंध नहीं, बल्कि साधना है।’ वह जब यह कहते हैं तो अनायास ध्यान उनके इस कला कर्म पर जा रहा है। इब्राहिम अल्काजी, एम. वासुदेव, एच.पी.सक्सेना, रवी झांकल के साथ पारसी रंगमंच की नाट्य परम्परा से लेकर अधुनातन नाटकों को खेलते उन्होंने अभिनय को सदा ही जैसे जिया है। श्याम बेनेगल निर्मित बेहद लोकप्रिय धारावाहिक ‘यात्रा’ में इंजन ड्राइवर के रूप में उन्हें दर्शक आज भी भूले नहीं है तो ‘भारत एक खोज’ में गाए राजस्थान के इतिहास के जरिए उन्होंने जैसे राजस्थान की कला का देशभर में प्रतिनिधित्व किया। ‘पोलमपोल रो खयाल’, ‘पांचवा सवाल, ‘जसमा ओढ़न’, आजादी की नीदं’, ‘भूमिका’ जैसे बहुतेरे नाटकों के साथ ही दूरदर्शन की शुरूआत के दौर में आए ‘दायरे’, ‘भोर’ धारावाहिक और कल्याणी जैसे शिक्षाप्रद कार्यक्रमों में निभाये अपने किरदारों को जैसे उन्होंने अब अपनी पहचान में शुमार कर लिया है। कहते हैं, ‘उन दिनों की बात ही कुछ ओर थी। हम रंगकर्म को जीते थे और रंगकर्म हमें।...’

बहरहाल, उनके साथ दूरदर्शन निर्मित ‘हरित राजस्थान’ की एंकरिंग करते उन्हें निकट से जाना, समझा और तभी पहली बार लगा अभिनय करते वे कला की बारीकियों में खुद को जैसे भूल से जाते हैं। उनके भीतर का कवि, गायक और लेखक भी जैसे तब जाग पड़ता है। शायद इसीलिए कहा गया है, कलाकार जब अपनी कला प्रदर्शित करता है तो भीतर के उसके समस्त रचनात्मक बोध जीवित हो उठते हैं।...और नाटक जारी आहे!

डॉ. राजेश कुमार व्यास का ‘डेली न्यूज’ में प्रकाशित  कॉलम ‘कला तट’ दिनांक 16-4-2010

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