Friday, April 2, 2010

कला में अर्थ अभिव्यंजना


किसी भी कला के लिए रूपाकार को स्वतंत्र और जगत का सत्व मान लेना ही पर्याप्त नहीं है। छायाचित्रकारी की ही बात करें। यथार्थ में अन्तर्निहित जो है, उसकी जो संवेदना है, उसके भीतर के सच का जो अर्थ है, उसे यदि कैमरा व्याख्यायित करता है, तो वह उसकी कला परिणति हो जाती है। ऐसा करते छायाचित्रकार स्थूल तत्वों, जो कुछ घटित हो रहा है, तेज-मंद हो रहे प्रकाश, विविध रंगों, नादों और आकार और अर्थ के संयोग को ही तो निरूपित कर रहा होता है।

मालवीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान की क्रिएटिव आर्ट सोसायटी के फोटोग्राफी क्लब के अंतर्गत निर्णायक के रूप में जब सम्मिलित हुआ तो अभियांत्रिकी विद्यार्थियों की देशभर से आयी छायाचित्र प्रविष्टियों को देखकर मन में यही सब कौंध रहा था। यह तय करना बेहद मुश्किल हो रहा था कि कौनसी प्रविष्टियों का चयन किया जाए। विद्यार्थियों ने दिखाई देने वाले दृश्यों से अप्रासंगिक वस्तुओं और विषयों को बाहर निकालकर अर्थपूर्ण ही नहीं बनाया था बल्कि अपने तई सौन्दर्य की भी जैसे नई सृष्टि की थी। डाल पर लटकी चींटी, नृत्यांगना का नुपूर पहना पांव, सूरज की ढ़लती किरणों में उछलता युवामन, पानी के भीतर तैर रहे तिनकों की सर्वथा नयी अर्थ अभिव्यंजना और ऐसे ही बहुतेरे दूसरे छायाचित्रों में आकृति की तीक्ष्णता, कुछ के तीव्र और तटस्थ भाव औचक अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे।

अभियांत्रिकी शिक्षण संस्थानों में फोटोग्राफी क्लब तो बने हैं परन्तु वहां आयोजन की उदासीनता विद्यार्थियों में अर्न्तनिहित कला को पंख नहीं लगने देती। छायाकार मित्र महेश स्वामी अभियांत्रिकी विद्यार्थियों में उनकी कला के लिए जो जोश भर रहे हैं, उससे छायाचित्रकला की भविष्य की उम्मीदें जगती है। बच्चा बन वे जिस तरह से हमारे साथ अपनी नहीं विद्यार्थियों की छायाचित्रकला की बारीकियों का बखान कर रहे थे, वह भी सर्वथा नयी अनुभूति थी।

बहरहाल, अभियांत्रिकी छात्रों की फोटोग्राफी देखते यह अहसास भी हो रहा था कि छायाचित्रकार भी किसी दार्शनिक से कम नहीं होता। कैमरे का वह यांत्रिक उपयोग ही नहीं करता बल्कि ऐसा करते वह उसमें अपनी रचना, सृजन और चिंतन को भी जोड़ता है। अच्छा जो दिख रहा है, उसे कैमरे में कैद कर लेना ही कला नहीं है। सूक्ष्म और ऐन्द्रजालिक चित्ताकर्षण को मन के भीतर की संवेदना से जोड़ते जब अपने तई व्याख्यायित किया जाता है तो उसे नयी कला की अर्थ अभिव्यंजना मिलती है। छायाचित्रकारी ही क्यों, सभी कलाओं का सच भी क्या यही नहीं है!
डॉ. राजेश कुमार व्यास का "डेली न्यूज़" में प्रति शुक्रवार को एडिट पेज पर प्रकाशित स्तम्भ "कला तट" दिनांक २ अप्रैल २०१०

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