Friday, April 23, 2010

परम्परा में आधुनिकता का ताना-बाना

सामान्य अनुभवों को समय के तात्कालिक संदर्भों में कलाकार जब रूपान्तरित करता है तो स्वाभाविक ही है कि दर्शक में एक तटस्थ एवं निस्संग अभिरूचि उत्प्रेरित होती है। ऐसे में बहुतेरी बार होता यह भी है कि कलाकृति में अभिव्यक्त वस्तुएं कला की दीठ से अद्वितीय रूप ग्रहण करती आनंदानुभूति कराने लगती है। इस आनंदानुभूति में कलाकृति तब वैचारिक स्तर पर विमर्श की नयी राहें भी खोलने लगती है।
अभी बहुत समय नहीं हुआ, गौरीशंकर सोनी की कलाकृतियों का आस्वाद करते लगा, वह चित्रो मे आधुनिक और पारम्परिकता के बीच के संघर्ष का ताना-बाना अपनी कलाकृतियों में कुछ इस गहराई से बुनता है कि चित्र देखने वाले के विचारों में भी उथल-पुथल मचा देेते हैं। हल्की रस्सी के साथ दो अलग हुई परतों की आकृतियों की खींचतान के उसके चित्रो में उभरा द्वन्द और बीच में गोले अनायास ही देखने वाले को कुछ सोचने को मजबूर करते हैं और कैनवस पर बरते उसके रंगों के पार्ष्व में उभरती आकृतियां जैस चित्रकला की भारतीय परमपरा से साक्षात् कराती है।
चित्रो में विषय को जीते गौरीषंकर की आकृतियों मे पंरतों का टूटना, रंगो का गहरे से हल्के होते जाना और पार्ष्व में नियत आकार नहीं होकर अजन्ता, एलोरा के गुफा चित्रों सरीखी उभरती आकृतियों में वह जैसे आधुनिकता और परम्परा का सांगोपांग मेल कराता है। उसके लगभग सभी चित्रों की संरचना में आकृतियां गोल घेरे से कभी बाहर निकली तो कभी उसमें लटकी तो कभी उसमें घूसने का प्रयास करती दिखायी देती है। गोल घेरा चित्रों के केन्द्र में रहता है, बहुत कुछ कहता मानों चित्र के विषय को पूरी तरह से व्यक्त करता मनुष्य के अंतर्द्धन्द को भी बंया करता है।...और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इधर जो चित्र श्रृंखला गौरीषंकर ने बनायी है उसकी पृष्ठभूमि में अंजता के पाषाण सौन्दर्य को गोल घेरे के पार्ष्व में दिया गया है। गोल घेरों से निकलती उसकी आकृतियां यांत्रिक जटिलता और मानव मन की दुरूहता को व्यक्त करती कुछ नहीं कहते हुए भी जैसे बहुत कुछ कहती है। चित्रों में बरते गए उसके रंग विषय को जताने के साथ ही उसके रचनाकार के द्वन्द को भी पूरी तरह से उभारते हैं। कैनवस पर गौरीषंकर बहुत सी परतों का अहसास कराता है। एक दूसरे से अलग होती परत में टूटन है तो जुड़ाव का प्रयास भी है। ऐसे ही रंगों के प्रयोग में खिंचाव और मिलनोत्सुकता को महसूस किया जा सकता है। उसके चित्रों में गति है, विषय का बेहतरीन निरूपण है और हां, रंगो की गहरी समझ का अहसास भी है।
"डेली न्यूज़" में प्रति शुक्रवार को प्रकशित  डॉ. राजेश कुमार व्यास का स्तम्भ ‘कला तट’, दिनांक 23 अप्रैल 2010