Friday, May 14, 2010

अमूर्तोन्मुख आकृतियां का कला दस्तावेज

कला रूप और अंतर्वस्तु का सम्मिश्रण है। कोई कलाकृति जब हमें अपने रूप सौन्दर्य से आकृष्ट करती है तो सहज ही मन में अवर्णनीय उल्लास, उमंग की अनुभूति होती है।...कलादीर्घाओं में प्रदर्शित कुछ कलाकृतियां अन्तर्मन में बस जाती है परन्तु समय के अन्तराल के बाद कला और उससे संबंधित कलाकार हमसे दूर होते चले जाते हैं। इस दूरी को कम करने की दृष्टि से ही ललित कला अकादमियां द्वारा महत्वपूर्ण कलाकारों पर मोनोग्राफ प्रकाशित करने की परम्परा रही है। इधर इस प्रवृति में लगभग सभी स्तरों पर शिथिलता सी आ गयी है।

राज्य ललित कला अकादमी, उत्तरप्रदेश ने पिछले दिनों जब देश के चर्चित कलाकार, कला आलोचक अवधेश मिश्र लिखित मो. सलीम का मोनोग्राफ प्रेषित किया तो औचक ही अकामियों द्वारा प्रकाशित मोनोग्राफ परम्परा पर फिर से जैसे ध्यान गया।

समकालीन कला के देश के महत्वपूर्ण सैरां (दृश्य) चित्रकार मो. सलीम का मोनोग्राफ देखता हूं। नजर मोनोग्राफ मंे प्रकाशित उनके बनाए प्रकृति लैण्डस्केपों पर जाती है। रंगों का सुगठित संयोजन। रेखाओं की बारीकियां। पहाड़, पहाड़ी जीवन को आत्मसात करती अमूर्तोन्मुख आकृतियां। प्रकृति दृश्यावलियों के अंतर्गत बिम्बों में उन्होंने रंगों का अनूठा लोक रचा है। ऐसा, जिसमें खुद उनकी स्मृतियां जैसे झांक रही है। अवधेश ने उनके जिन चित्रों का चयन मोनोग्राफ में किया हैं, वे उनकी सात दशकों की कला यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव लगते हैं। नीले, हरे, लाल, पीले रंगों की अप्रत्याशित, स्तब्धकारी छटाएं सलीम के इन चित्रों में हर ओर, हर छोर है। जल रंगों में उनके लैण्डस्केप अवधेश मिश्र के शब्दों में अनुभवातीत रागात्मकता लिए पहाड़ी जीवन को वृहद, भव्य और सर्वथा नया अर्थ देते हैं।

मो. सलीम के रेखाचित्रों, उनके तैल, जल एवं एक्रेलिक रंगों की कलाकृतियों और समग्र कलाकर्म पर अवधेश मिश्र ने बेहद संजिदगी से लेखन किया है। वह सलीम के कलाकर्म की गहराईयों में गए हैं। रंगों की उनकी तानों और संयोजन की संवेदना को मोनोग्राफ में एक तरह से जीते अवधेश ने हिन्दी में जो लिखा है, उसका उसी गंभीरता से मोनोग्राफ में डॉ. लीना मिश्र ने अंग्रेजी में अनुवाद किया है। सरकारी प्रकाशनों की लीक से अलग बहुरंगी इस मोनोग्राफ का सधा हुआ ले आउट भी अलग से आकर्षित करता है। ऐसे दौर में जब कला अकादमियां में प्रकाशन की प्रवृतियां धीरे-धीरे समाप्त सी होती जा रही है, क्या यह सुखद नहीं है कि कोई अकादमी कलाकार के जीवन को उसके रचनाकर्म से यूं उजागर करे!
"डेली न्यूज़" में प्रति शुक्रवार को प्रकाशित डॉ. राजेश कुमार व्यास का स्तम्भ "कला तट" दिनांक १४-५-१०

1 comment:

अविनाश आचार्य said...

abhi abhi tumahra blog dekha...kala pr tumahra likha aub nirantr padhne ko milega..yah jo tumne likha hai, usme gager me sagar bhara hai.
Avinash Acharya