Friday, June 4, 2010

कला, कलाकार और रूप


भारतीय चित्रकला की परम्परा में रूप के स्पष्टीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया है। मूर्त ही नहीं अमूर्त भी यदि कुछ बनाया गया है तो उसके पीछे एक सोच, एक दृष्टि और उसकी स्पष्टता जरूरी है। शायद इसीलिए हमारे यहां कलाकार अपने अनुभवों, स्मृतियों को आकार देते हुए रूप को निरंतर सरलीकृत करते रहे हैं। रेखाचित्रों में तो यह बात विशेष रूप से रही है। सहज, सरल रेखाओं की ऐसी कलाकृतियां सर्जनात्मक अभिव्यक्ति की संवाहक बनती मानव मन को झकझोरती है। व्यक्ति चित्र और जो कुछ दिखायी देता है, उस यथार्थ के अंकन में भी वहां कलाकार की कला की स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता स्प्ष्ट नजर आती है। अनुभव और संवेदनाओं के अमूर्तन में भी कलाकार का अपना निजत्व वहां बरकरार मिलेगा।

बहरहाल, इधर नये कलाकारों का लाईन वर्क में जरा भी रूझान नहीं दिखायी देता। लगता है, मस्तिष्क और हाथ के अनुशासन में उनकी कोई रूचि ही नहीं है। यही कारण है कि आधुनिक कलाकृतियों के नाम पर जो कुछ बन रहा है, उनमें लय नहीं है। रूप की जटिलता पर वहां ज्यादा जोर है। कुछ ऐसा बने जो समझ से परे हो। अमूर्तन के नाम पर स्पष्टता को जैसे निरंतर बिसराया जा रहा है। कैनवस पर अनुभव और संवेदनाओं के बिम्ब प्रकट में भले सूक्ष्म और अमूर्त लगे परन्तु वास्तव में इनका एक आकार और एक निश्चित स्वरूप होता है। देखने वाले को यह स्पष्ट नजर आना चाहिए। यदि इसमंे अस्पस्टता है तो फिर आकृतियों मे चाहे जैसे रंगो का सुन्दर प्रयोग कर दिया जाए, रंगों के थक्कों के अतिरिक्त देखने वाला वहां कुछ अनुभूत नहीं करेगा। अमूर्त यदि स्प्ष्ट है तो देखने वाला रंग नहीं होते हुए भी किसी कलाकृति में कलाकार के संवेदना बिम्बों के जरिए रेखाओं में रंगों की लय का सांगीतिक आस्वाद कर सकता है।

अभी बहुत समय नहीं हुआ, के.के. हेब्बार की एक पुस्तक आयी थी, ‘द सिंगिंग लाईन’। अभी भी यह मस्तिष्क पर जैसे छायी हुई है। पुस्तक में हेब्बार के कम से कम रेखाओं द्वारा अधिकतम प्रभाव के ऐसे रेखांकन हैं जिनमें संगीत और नृत्य को अनुभूत किया जा सकता है। वहां रूप की जटिलता नहीं है। फार्म को सर्वथा सरलीकृत करते हेब्बार ने जो चित्र बनाए हैं, उनमें रेखाओं का अनूठा प्रवाह है, आकृतियों की सुस्पष्टता है। संवेदना, अनुभूतियां और स्मृतियों के अनेक बिम्ब वहां हैं परन्तु सब कुछ स्पष्ट है। अस्पष्ट नहीं। अमूर्तन में भी सहजता ऐसी कि हर कोई देखकर सुकून महसूस करे। कला का परम सत्य क्या यही नहीं है? जो कुछ कलाकार बनाए, उसमें अर्थ गांभीर्य तो हो परन्तु अस्पष्टता की संपे्रषणीय बाधा नहीं हो।

"डेली न्यूज़" में प्रति शुक्रवार को प्रकाशित डॉ.राजेश  कुमार व्यास का स्तम्भ "कला तट" दिनांक 4-6-2010

1 comment:

सम्पादक, अपनी माटी said...

itane achhe blog par comment nahi aanaa. paathako ki agyaanataa hai. pls thoda ise publise karen.