Friday, June 25, 2010

कैनवस पर प्रकृति का गान

अदिति चक्रवर्ती के चित्रों में अमूर्तन की सर्वथा नयी व्यंजना है। प्रकृति को सम्पूर्ण फलक पर अपने तई आधुनिकता में परोटते वह रंगों और रूप के सर्वथा नये बिम्ब रचती है। उसके कैनवस पर एक दूसरे से जुड़ते-विलग होते अनेक रंगों के थक्के हैं। अमूर्तन में वह अलंकारों का अधिक रचाव नहीं करते हुए भी सूक्ष्म दृष्टि में अद्भूत लैण्डस्केप की निर्मिती करती है। यह ऐसा है जिसमें दूर तक के पहाड़, चट्टानें, नदियां, कल-कल बहता झरना, धरित्री पर दूर तक पसरी हरितिमा और पक्षियों के कलरव को साफ सुना जा सकता है।...रंगों के आलोक में वह दूरी और नैकट्य का, सन्निधि का कैनवस पर बेहद खूबसूरत संयोजन करती है।

कैनवस पर एक्रेलिक रंगों में ‘वेली आॅफ जॉय’, ‘वाईल्ड फ्लोवर’, ‘स्प्रेडिंग लाईट’ जैसे अपने चित्रोें में अदिति कैनवस प्रकृति का एक प्रकार से पुनराविष्कार करती है। उसका एक बेहद खूबसूरत सा चित्र है, ‘ग्रीन पॉयम’। पर्वतों पर उमड़ते-घुमड़ते काले, भूरे बादल, हरियाली से लदे पहाड़, उनमें बहते झरने, धरती पर कल-कल बहती नदी और पक्षियों की उड़ान और इन सबके साथ प्रकृति के संगीत को कैनवस पर यहां कुची से जैसे साधा गया है। कैनवस पर रंग उड़ेलते इस कलाकृति में सृष्टि के सौन्दर्य को इस कदर जीवन्त किया गया है कि मन करता है, निहारते रहें कलाकृति।

दरअसल, रंगों को बरतने का अदिति का अपना अंदाज है। इस अंदाज में वह कैनवस पर रंग बहाती है। इन बहते हुए रंगों में ही वह कैनवस पर माप व आकारों को विकसित करती है। उसके चित्रों पर गौर करें तो पाएंगे कि वहां प्रकृति का पूरा एक नाट्यवृत्त तैयार होता है। समृद्ध और गैर पारम्परिक रंगों के अंतर्गत वह विभिन्न रंगों का एक साथ प्रतिरोधी रूप भी तैयार करती है, ठीक वैसे ही जैसे प्रकृति पल-पल में अपना रंग और रूप बदती कभी विकराल होती है तो कभी सौन्दर्य की अद्भुत सृष्टि करती है। काले रंग में भी वह प्रकृति का रूपान्तरण बेहद खूबसूरती से करती है तो हरे, नीले, लाल, पीले रंगों का उसका प्रयोग भी सर्वथा नयापन लिए है। उसके कैनवस पर जंगल की हरियाली, बहती नदी, फूल, पत्तियां, झरनों और सूर्य की रोशनी के अद्भुत बिम्ब हैं। इन बिम्बों की खास बात है-आकारों की असीमितता, स्वच्छन्द संयोजन और विषय वस्तु की स्वतंत्रता। मूर्त-अमूर्त के बीच संघर्ष का नाद यहां है तो विषय की समग्रता में व्याप्ति भी है। हॉं, बिम्बों की पुनरावृति भी अदिति के चित्रों में है परन्तु नयेपन की व्यंजना के कारण उसकी पुनरावृति खलती नहीं है बल्कि हर बार अनूठा भावबोध देती है। मुझे लगता है, एक्रेलिक रंगों में चित्रों की उसकी अमूर्तता चित्त और चेतस् को हरने वाली है। सच! सौन्दर्य के प्रतीकों की सृष्टि में अदिती अपने चित्रों में सांगीतिक आस्वाद कराती है। मन करता है, कैनवस पर प्रकृति के उसके इस कला गान को सुनें और फिर निरंतर गुनें।

"डेली न्यूज़" में प्रति शुक्रवार को प्रकाशित डॉ. राजेश कुमार व्यास का स्तम्भ "कला तट" दिनांक 25-6-2010

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