Friday, June 11, 2010

श्रीनाथजी के चित्रों में परम्परा का पुनराविष्कार

श्रीनाथजी के चित्रों से रंग एवं रंगतों के निरूपण को नये आयाम देते डॉ. सुभाष मेहता ने परम्परा का जैसे इधर पुनराविष्कार किया है। उनके ऐसे चित्रों को देखने का पिछले दिनो जब सुयोग हुआ तो लगा, रंगों की सघनता के साथ ही रूपाकारों एवं भावनाओं की यथार्थवादी परिकल्पना में उनके चित्रों के एक-एक संघात में जैसे विशेष अर्थ छुपा हुआ है।

मुझे लगता है, श्रीनाथजी के उनके चित्रों में लयबद्ध गति के साथ लौकिक स्पन्दन है। कैनवस पर फ्रेस्को तकनीक की अनुगूंज, किसनगढ़ और दूसरी राजस्थानी चित्र शैलियों का सांगोपांग मेल और इन सबके साथ चटकिले रंगों का उन्मुक्त और स्वछन्द प्रयोग करते उन्होंने परम्परा के साथ आधुनिकता को भी जैसे निरंतर जिया है। विशेष रूप से उनके चित्रों की कैलीग्राफी में मधुराष्टकम्, यमुनाष्टकम के साथ ही वेद मंत्रों, ऋचाओं, प्राचीन लिपियों के रचनात्मक आधार में श्रीनाथजी, उनकी गायों और भक्तों का जो रूप अंकन हुआ है वह कला की दीठ से सर्वथा नया है। श्रीनाथजी का रूपांकन करते उन्होंने उनकी मुखाकृतियों को स्वीकृत परम्परागत लक्षणों एवं प्रमाणों के घेरे से भले दूर नहीं जाने दिया है परन्तु आधुनिक एवं कला की नव प्रवृत्तियों का लयबद्ध एवं स्वच्छन्द प्रयोग करते उन्होंने इनमें रचनात्मक सौन्दर्य के जो भाव संजोए हैं वे कला की आधुनिक संवेदना लिए अलग से आकृष्ट करते हैं। उन्होंने अपनी ऐसी कलाकृतियों में स्पेस को विभक्त करती रेखाएं अलग से खींची है। रस्सी सी ये रेखाएं कहीं चित्र के ठीक बीच में से गुजरती है तो कहीं ऊपर और कहीं नीचे चित्र के स्पेश को विभाजित करती छवि और उसे देखने वाले के बीच महीन भेद करती बहुत कुछ कहती है। ऐसे चित्रो को बगैर रेखा देखने की जब कल्पना करता हूं तो लगता है उनमें सहज सौन्दर्य जैसे औचक लोप हो गया है। मुझे लगता है, स्पेश विभाजन की यह रेखाएं ही हैं जो उनके चित्रों में आधुनिकता का गहरा सौन्दर्यबोध जगाती है।

श्रीनाथजी की विभिन्न झांकियों के उनके चित्रों में एक चित्र में बालकृष्ण के समक्ष सुरदास तानपुरा लिए गा रहे हैं। मंद मुस्काते बालकृष्ण उनके गान में इस कदर खो गए हैं कि मुरली वाला उनका हाथ अपने आप ही नीचे चला गया है...श्रीनाथजी के विराट का ऐसा मोहक रूप देखने वाले से जैसे संवाद करता है। मिनिएचर से प्रेरणा लेते उनके लगभग सभी ऐसे चित्र कला के उस आधुनिकबोध की ओर प्रवृत हुए हैं जिसमें रंग और रेखाएं देखने वाले की दृष्टि में कला की नयी सृष्टि करती है।

"डेली न्यूज़" में प्रति शुक्रवार को प्रकाशित डॉ. राजेश कुमर व्यास का स्तम्भ "कला तट" दिनांक 11-6-2010

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