Friday, July 9, 2010

अविगत गति कछु कहति न आवै...

बारिश की बूंदे मन को गढ़ती है, कुछ रचने के लिए। आसमान से टप-टप गिरती बूंदे जैसे हमें जगाती है-कुछ करने के लिए। इस बार जब बारिश हों तो आप उसे देखें नहीं, उसे सुनें और गुनें। आपको लगेगा प्रकृति गा रही है। प्रकृति के इस मधुर गान में, लगेगा आपके भीतर का कलाकार भी गा रहा है। मन तब जो गाता है, वही अनाहत नाद है। साहित्य, संगीत और कलाओं का अग्रज यह भीतर का हमारा अनाहत नाद। अंर्तध्वनि का प्रतीक यह सधे हुए वाद्य वृन्द की भांति बजता है। यह बजाया नहीं जाता फिर भी परमानंद के रूप में बज पड़ता है। अनाहद नाद का मूल स्त्रोत हमारी अनुभूति है। प्रकृति को महसूस करने की हमारी दृष्टि है। भावात्मक होने से अव्यक्त यानी अविगत है यह। इसीलिए अनाहत नाद भी अव्यक्त है। कहा भी तो गया है, ‘अविगत गति कछु कहति न आवै।...’

संगीत के इतिहास लेखक सांबमूर्ति कहते हैं, ‘अनाहत नाद को हमे महत्व देना चाहिए। नाद से ही यह समस्त विश्व निनादित जो है।’ सच ही तो कहते हैं सांब! बारिश जब होती है तो मोर बोलते हैं। कोयल गाती है। चिड़ियाएं चहचहाती हैं। प्रकृति मौन में भी अनूठे संगीत का आस्वाद कराने लगती है। कलाकृति प्रकृति के इन गुणों से ही क्या नहीं निकलती!

इस बार की बारिश में मन के भीतर के इस नाद को सुनें। आपको लगेगा आप वह नहीं है जो हैं। आप अपने भीतर के कलाकार को पहचानने लग जाएंगे। आपको लगेगा, आप भी कुछ रच सकते हैं। संगीत, नृत्य, चित्रकलाओं का जन्म आपके भीतर के कलाकार से ही तो होता है। वह प्रकृति से ही तो प्रेरणा ग्रहण करता है। इसीलिए तो हमारे यहां कहा गया है, कलाएं केवल शरण्य ही नहीं हैं। आश्रय भी हैं। जिनमें अपने आपको अभिव्यक्त करते बहा जा सकता है। तैरा जा सकता है। सच्ची कला आपको वहां ले जाती है जहां आप पहले कभी न गए हों।...भले कईं बार वह जानी-पहचानी जगह पर भी ले जाती है परन्तु तब उस स्थान को अप्रत्याशित ढंग से देखने के लिए वह आपको विचलित भी करती है। यह प्रकृति है, बारिश की बूंदे हैं जो परम्पराओं के भान में स्मृतियों का गान कराती है।

आईए, इस बार बारिश को देखें नहीं उसे सुनें भी। इस सुनने मंे जो सुकून है, उसे अनुभूत करें। प्रकृति के अनाहत नाद में बचेगा वही जो रचेगा।...तो आईए, बारिश की बूंदों को रचें। कैनवस पर उकेरे सृष्टि के इस अनुभव के भव को। प्रकृति कितना दे रही है। हम क्या उससे उतना ले रहे हैं!

"डेली न्यूज़" में प्रति शुक्रवार को प्रकाशित
डॉ.राजेश कुमार व्यास का स्तम्भ "कला तट" दिनांक 9-7-210

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