Friday, July 2, 2010

कबीर का अनहत नाद, कुमार गंधर्व का गान

चौंसठ  कलाओं में सर्वश्रेष्ठ और पहली कला संगीत है। इसलिए कि यह संगीत ही है जो बगैर किसी मध्यस्थ के सीधे श्रोता के हृदय को स्पर्श करता है। संगीत के हर अलाप में ध्वनि से भावों की व्यंजना की जाती है। कुमार गंधर्व को जब भी सुनता हूं, संगीत के इन गुणों को जीने लगता हूं। मुझे लगता है संगीत के जरिए वह मन के भीतर झांकने का अवसर देते हैं। अशोक वाजपेयी के शब्दों मे कहूं तो वह जब गाते हैं तो समय ही नहीं बल्कि समयातीत भी बोलता है। मित्र सुनीत मुखर्जी के बहाने उनकी गायी कबीर की वाणी ‘उड़ जायगा हंस अकेला...’ फिर से सुनी तो लगा संगीत श्रव्य सुख ही प्रदान नहीं करता मन की आंखों को जगाने का कार्य भी करता है। यह कुमार गंधर्व ही हैं जो श्रव्य में मनःदृश्य का ऐसा आस्वाद कराते हैं।

बहरहाल, कबीर की वाणी अनहत नाद है। अलायदा फक्कड़पन लिए वह जब कहते हैं, ‘गुरू की करनी गुरू जायेगा, चेले की करनी चेला...’ तो जीवन का मर्म गहरे से समझ आने लगता है। कहीं कोई बनावटीपन नहीं। शब्दों का व्यर्थ आडम्बर नहीं। सीधे सपाट जो कहना है, कहा है..और कबीर के शब्दों में कुमार गंधर्व ‘ज्यों की त्यों धर दीनी...’ की तरह संगीत में उसे वैसे ही सुनने वालों के सामने रख देते हैं। शास्त्रीय गान में अमूर्तन से परे कुमार गंधर्व अनूठी वाचिकता प्रदान करते हैं। ऐसी जिसमें मन की आंखे खुल जाती है। तब असार जीवन का जो चित्र उभरता है, उसमें लगता है सारे पड़पंच व्यर्थ है। कर्म गति का गंधर्व गान अलभ्य कलात्मकता से मन के भीतर अनूठा आलोक देता है।

सच! यह कुमार गंधर्व ही हैं जिन्होंने  कबीर की रचनाओं को शास्त्रीय रागरूप प्रदान करते उसके भीतर के मर्म को इस गहराई से छुआ है। सुनने वाला उनके गान में कबीर के फक्कड़पन, दिगंबरत्व को सहज अनुभूत कर सकता है।

कबीर तो लोकोन्मुखी ही थे परन्तु उनकी वाणी का शास्त्रीय संगीत में लोकोन्मुखीकरण करने का कार्य कुमार गंधर्व ने ही किया। अलंकार रहित उनके गान में साजों पर ध्यान नहीं जाता, इसलिए कि वहां उनका गायन प्रमुख है। आरोह-अवरोह के उनके भाव महत्वपूर्ण है। वह कबीर को अपने गान में हृदय की अंतरतम गहराईयों से जीते हैं। कबीर के सीधे सपाट शब्द वहां हैं परन्तु उनके अचूक अर्थों की अनुभूति संगीत स्वतः कराता है। कबीर की वाणी का अनहत नाद ही क्या सृष्टि के संगीत का सच नहीं है!
"डेली न्यूज़" में प्रति शुक्रवार को प्रकाशित डॉ. राजेश कुमार व्यास का स्तम्भ "कला तट"
दिनांक 2-07-2010