Friday, July 16, 2010

अर्थपूर्ण स्पष्टता में भावों का सघन संचरण

चित्रकला में रंग, रेखाएं, टैक्सचर और स्थापत्य मिलकर बिंबो और रूपकों को रचते है। इस दृष्टि से युवा चित्रकार सुरेन्द्र सिंह के चित्रों का कला आकाश विशेष रूप से लुभाता है। उसके चित्रों में रूपकों की तलाश में दृष्टियों की बहुलता है। किसी एक थीम की बजाय एक साथ बहुत से विषयों को कैनवस पर निरूपित करते उसके चित्रों की बड़ी विशेषता यह है कि आकृतिमूलकता में अमूर्तन का रोचक अध्याय है। सद्य बनायी उसकी ‘प्रकृति’ श्रृंखला चित्रों को देखते मुझे लगता है, माध्यम से अधिक आशय की अर्थवत्ता में वह कला की बारीकियों में गया है।

बहरहाल, उसके चित्रों से रू-ब-रू होते यह अहसास स्पष्ट ही होता है कि वह किसी खास संकल्पना और विचार को लेकर कार्य प्रारंभ नहीं करता। जो कुछ हो रहा है, वह उसके कैनवस पर भी वैसे ही घटित होता है। हां, महत्वपूर्ण यह जरूर है कि प्रतिकात्मकता मंे कैनवस पर फूल और पत्तियों के जरिए ही वह संवाद करता है। पार्श्व में हल्के काले रंग को धूसरित करते वह औचक कहीं लाल और कहीं हरे रंगों में अनूठे बिम्बों की सर्जना करता है। एक्रेलिक, ऑयल और जल रंगो के उसके चित्रों में त्रिआयामी प्रभाव भी है। यह ऐसा है जिसमें लोक चित्रो में प्रयुक्त अलंकरण, फूल-पत्तियों की सौरभ तो है ही समकालीन बोध की विशिष्ट अर्थ छवियां भी है। खास बात यह जरूर है कि अमूर्तन होते हुए भी उसके ऐसे चित्रों मे आधुनिकता द्वारा पैदा विभ्रम नहीं है। मुझे लगता है समकालीन सरोकारों के अपने कला बोध में वह अपने चित्रों में प्रकृति और जीवन को सर्वथा नये ढंग से रूपायित करता है। यही उसके चित्रों की वह विशेषता है जो उसे अपने समकालीनों में भी सर्वथा अलग पहचान देता है।

प्रकृति के पंचभुत तत्वों में अग्नि, जल, वायु को अपने चित्रों में केन्द्र में रखते वह कला के गतिशील प्रवाह की सृष्टि भी करता है। कैनवस पर चित्रों का उसका लोक इसलिए भी लुभाता है कि उसमें स्वयंमेव प्रतिष्ठित होने का आग्रह नहीं है। मैटेलिक कलर के पार्श्व में उसके बहुतेरे चित्रों में गहरे से हल्के होते रंगों के बीच उभरते मोर पंख, रंग बिरंगे फूूल और परम्परा बोध के तहत उकेरी गयी पत्तियां में अनुभव का अनूठा भव है। विषय वस्तु में चित्र यहां आकारनिष्ठ हुए भी यहां रूपों को नैसर्गिकता प्रदान करते हैं। ग्राफिक में मटमेले होते रंगों में सुरेन्द्र सिंह के चित्रों में अर्थपूर्ण स्पष्टता और भावों का सघन संचरण है। किसी भी कला का वैशिष्ट्य और उसकी सफलता व्यक्तिगत आनंद की यह समाजगत अनुभूति करा देना ही क्या नहीं है!

"डेली न्यूज़" में प्रति शुक्रवार को प्रकाशित डॉ. राजेश कुमार व्यास का स्तम्भ "कला तट" दिनांक 16-07-2010

4 comments:

दुलाराम सहारण said...

अच्‍छी अभिव्‍यक्ति। अच्‍छा प्रोजेक्ट

दुलाराम सहारण said...

भाई सुरेन्‍द्र का प्रकृति पर अच्‍छा प्रोजेक्‍ट। उनकी कल्‍पनाएं रंगों के माध्‍यम से साकार हुईं।
पुरोवाक् में अच्‍छा लगा।

बधाई।

yogendra kumar purohit said...
This comment has been removed by the author.
yogendra kumar purohit said...

thanks if you have promot the art work of master surendra.we have master from a same collage in a same time we are first passout of masters of rajasthan school of art.
here you have express the full art sound of surendra he is very hard worker about his art and he have a tachanical art view for his art work here you have show that by your writting so i want to say thanks to you and my best wishes for surendra .
regards
yogendra kumar purohit
M.F.A.
BIKANER,INIDA
http://yogendra-art.blogspot.com
www.yogendra-art.page.tl