Friday, July 23, 2010

स्वर, राग और ताल का अनूठा आस्वाद

वाद्य संगीत में स्वर, राग और ताल का कहीं परिपूर्ण मेल है तो वह है बीन में। बीन माने वीणा। तार वाद्यों के सम्पूर्ण संकुल की द्योतक। अव्यवहित आकर्षण में संगीत का समग्रता में सृजन करती हुई। यह वीणा ही है जो शब्दों से परे नाद सौन्दर्य में व्यक्ति और वस्तु के बीच की विसंधि को वीलिन करती है। इसलिए कि प्रकट संगीतीय अभिव्यक्ति कंठ माध्यम की अपेक्षा वीणा अधिक प्रांजल जो है।

बहरहाल, जवाहर कला केन्द्र में पिछले दिनों जब अखिल भारतीय रूद्र वीणा समारोह का आयोजन हुआ तो कर्नाटक से आयी देश की पहली महिला रूद्र वीणा वादक ज्योति हेगड़े को सुनते नाद सौन्दर्य को जैसे गहरे से जिया। रूद्र वीणा वादन में वह ध्वनि में अन्र्तनिहित सौन्दर्य की जैसे बढ़त करती है। वह वीणा बजा रही थी परन्तु लग ऐसे रहा था जैसे वह गा रही है। वाद्य संगीत को कंठ संगीत की प्रतिकृति करते वह स्वरों के पूर्ण प्रलंबों और सूक्ष्म गमक में मन को भीतर तक झंकृत करती है। अपनेपन से भरते। राग मीया मल्हार का उनका रूद्र वीणा वादन सुना तो लगा स्वरों की बढ़त में जैसे वह हर बार अपने आपको ही रचती हैं। उनका यह रचना ऐसा है जिसमें संगीतीय अन्तरावधियों की समग्रता को सहज अनुभूत किया जा सकता है। मुझे लगता है, यह रूद्र वीणा ही है जिसमें संगीतीय मुहावरे के साथ-साथ उसकी गति को सुनने वाला अनुभूत कर सकता है। उस पर नजर रख सकता है।

ज्योति हेगड़े ने रूद्र वीणा में अपने आपको पूर्णतः साधा है। गत में लय को क्रमशः बढ़ाते हुए रूद्र वीणा पर चलती उनकी अंगुलियां राग और ताल को एकमेक करती अनूठा रस प्रदान करती है। राग मीया मल्हार में वर्षा की गिरती टप-टप बूंदों को उसने इस करीने से रूद्र वीणा में साधा कि बंद प्रेक्षागृह में भी झमा-झम का अहसास होने लगा। रूद्र वीणा के तारों में जब वह बढ़त कर उसे क्लाइमेक्स पर ले जाती है तो उत्तेजना के विपरीत प्रशांति पर बल देती है। वादन का उनका यह संगीतीय मुहावरा ही उन्हें ओरों से जुदा करता है।

बहरहाल, प्राचीन एवं मध्यकालीन संगीत शास्त्रीय ग्रंथों में अलापिनी, घोष, चित्रा, किन्नरी, सरस्वती वीणा, त्रितंत्री, सार वीणा, नारद वीणा, विपंची और रूद्र वीणा का विशेष रूप से उल्लेख मिलता है। शिव के एक नाम से व्युत्पन्न और शिव द्वारा सृजित होने के कारण रूद्र वीणा बाहर और भीतर से सौन्दर्य की प्रतीक है। इसे सुनते लगता है, वाद्य संगीत अनायास ही शब्दों से परे नाद के शुद्धतर विश्व से साक्षात् कराता है।
"डेली न्यूज़" में प्रति शुक्रवार प्रकाशित डॉ.राजेश कुमार व्यास का स्तम्भ "कला तट" दिनांक 23-7-2010

2 comments:

prabhat ranjan said...

aapka blog achha laga. suruchipurn aur vishaybadhh. sachmuch swar, raag aur taal ka ismen anutha sangam hai. badhai

kala-waak.blogspot.in said...

prabhatji,
aap yanha aaye. sukhd laga.
aabhari hun.
rajesh