Friday, March 11, 2011

अतीत, वर्तमान और भविष्य की दीठ


कला सर्जना की नई विश्व भाषा स्थानीयता के आग्रह से मुक्त है। तकनीक, शैली, चित्रांकन के साथ ही संस्थापन के जो नये आयाम इधर कला में सामने आ रहे हैं, उनमें केवल आधुनिकता बोध ही नहीं है बल्कि अतीत, वर्तमान और भविष्य की उपस्थिति की सर्वथा नयी दीठ भी है।

बहरहाल, विचार संपन्नता में ही नहीं बल्कि कला बाजार की प्रवृतियों में भी इधर तेजी से बदलाव आया है। चैंकाने वाला तथ्य यह है कि हुसैन, रजा और सूजा की कलाकृतियों की बजाय सर्वाधिक मूल्य वाले पांच कलाकारों में अनिश कपूर पहले स्थान पर हैं और बाकी के चार स्थानों पर भी सुबोध गुप्ता, अतुल डोडिया, टीवी संतोष और रकीब शॉ हो गए हैं। कोलकाता से विक्रम बच्छावत द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘आर्ट न्यूज एंड व्यूज’ को पढ़ते कला की वर्तमान बाजार प्रवृतियों के साथ ही वैचारिक दृष्टि से कला में आ रहे परिवर्तनों को गहरे से समझा जा सकता है। ‘समकालीन सृजन’ के सम्पादक, ख्यात कवि-आलोचक मानिक बच्छावत ने पिछले दिनों जब इस पत्रिका के कुछ अंक प्रेषित किये तो सुखद अचरज हुआ। पत्रिका ने जनवरी से मार्च के तीन अंक समकालीन भारतीय कला पर केन्द्रित प्रकाशित किए है।

मुझे लगता है, देश की यह पहली ऐसी पत्रिका है जोे समकालीनता के बहाने भारतीय कला की बारीकियों में जाने के साथ ही कला की बाजार प्रवृतियों पर भी पैनी दृष्टि लिए है। भारतीय कला की विकास यात्रा के साथ ही, कला के अंतर्गत इधर विचार, माध्यम और तकनीक के हो रहे अधुनातन परिवर्तनों, प्रयोगधर्मिताओं की तमाम प्रवृतियों पर पत्रिका ने बेहद महत्वपूर्ण कला सामग्री पाठकों को दी है। मसलन मार्च अंक में कलाकृतियों के बाजार मूल्यों पर निगाह डालते हुए बताया गया है कि विश्व परिपे्रक्ष्य में भारतीय समकालीन कला बाजार की दृष्टि से ही नहीं बल्कि अधुनातन प्रवृतियों की दीठ से भी बेहद महत्वपूर्ण हो गयी है। आधुनिकता और परम्परा के संदर्भ में हुसैन, रामकुमार, एफ.एम.सूजा, रज्जा, विकास भट्टाचार्य, गुलाम शेख, कृष्ण खन्ना, अर्पणा कौर, गणेश हालोई, कार्तिक, गणेश पाईन जैसे कलाकारों की चर्चा करती पत्रिका की बहुतेरी सामग्री में भारतीय कला की नयी दृष्टि और पुरानी जमीन को तोड़े जाने के प्रयासों पर गहराई से विवेचन तो है ही साथ ही कलाकारों से संवाद और देशभर की कलादीर्घाओं की कला प्रदर्शनियों के बारे में भी नवीनतम जानकारियां समाहित है। नवीन अंक में प्रख्यात भारतीय कलाकार सुबोध गुप्ता और टीवी संतोष से संवाद है तो थर्ड इण्डियन आर्ट समिट, कला की नवीनतम विश्व भाषा, कला की नई पीढ़ी और कोलकाता की समकालीन कला को अतीत से निहारते जो आलेख, फीचर दिए गए हैं, उनसे भारतीय कला की नवीन प्रवृतियों की गहरी समझ अनायास ही मिलती है। नई दिल्ली की मोर्डन आर्ट गैलरी में प्रदर्शित अनिश कपूर के स्कल्पचर शो के बहाने विश्व क्षितिज पर कला के बदलते मायनों का आलोक भी इसमें अलग से है।

मुझे लगता है, ‘आर्ट न्यूज एंड व्यूज’ भारतीय कला का ऐसा आईना है जिसमें अतीत, वर्तमान और भविष्य को पढ़ा जा सकता है। कला की अकादमिक प्रकाशन प्रवृतियों से परे आलोचना की गहरी संवेदन आंख इसमें है। कलाकारों, कला मर्मज्ञों और कला पर लिखने वालों की संवेदन आंख। विक्रम बछावत की गहरी प्रकाशकीय दीठ को इसी से समझा जा सकता है कि पत्रिका के हर अंक में कला सर्जन, लेखन से जुड़ी किसी विशिष्ट शख्सियत से बतौर अतिथि सम्पादक पाठक रू-ब-रू होते हैं। इस संदर्भ में उनसे बात होती है तो कहते हैं, ‘हम चाहते हैं कि पत्रिका किसी विशेष सोच, दृष्टि में बंधी नहीं होकर कला की विचार संपन्नता की संवाहक बने।’ सच ही तो है! भारतीय कला में निहित उदात्त दृष्टि को क्योंकर सम्पादन की किसी एक दीठ से बांधा जाए। यह दृष्टि बहुलता ही तो हमारी कला थाती है और ‘आर्ट न्यूज एंड व्यूज’ इसी का तो प्रतिबिम्ब है।

राजस्थान पत्रिका समूह के "डेली न्यूज़" में प्रति शुक्रवार को प्रकाशित
डॉ. राजेश कुमार व्यास का स्तम्भ "कला तट" दिनांक 11-3-2011