Friday, June 17, 2011

नमन रामायण। नमन!

धर्म, अध्यात्म और साधना की छांव मंे पला-बढ़ा है हमारा पारम्परिक भारतीय संगीत। बाद में इसी संगीत ने परिमार्जित कला का रूप भी धारण किया। भजन, हरजस के साथ तुलसी, सुर, मीरा की संगीतबद्ध पदावलियों सुनें तो मन उसे गुनें। अनुभूत होता है, शास्त्रीय संगीत से निकली धाराएं कहां-कहां जा पहुंची है। साहित्य की हमारी कालजयी कृतियों को संगीत की इन धाराओं ने ही तो कभी घर-घर पहुंचाया। संगीत की परिवर्तनषीलता का यही वह गुण है जिससे इसकी जड़े हर युग में हरी रहती है।

बहरहाल, मन्ना डे के स्वर माधुर्य में मधुषाला से मन आज भी झंकृत होता है। जयषंकर प्रसाद की कामायनी, गालीब की संगीतबद्ध शायरी सुनें तो मन न भरें। लिखे को लोकप्रिय कर कंठों में उसे गुनगुनाने का अवसर संगीत ने ही सदा दिया है। रामायण को ही लीजिए। कितनी बार, कितने संगीतकारों ने इसे सुरों पुनर्नवा किया है। पार्ष्वगायक मुकेष के स्वरों में सुनी इसकी चौपाईयां की याद को इधर जयपुर के संगीतकार दीपक माथुर के संगीत ने फिर से हरा किया। कैलाष परवाल ने रामायण के सात काण्डों को सरल हिन्दी रूप दिया और इन्हें नयी दीठ से संगीतबद्ध किया है दीपक माथुर ने।

रामायण संगीत की जो धुनें हमारे मन में अर्से से रची-बसी है, उससे इतर नयी धुनों में संवारने की चुनौती भी कम नहीं रही है। दीपक ने इसे स्वीकारते परम्परा के साथ प्रगतिषीलता के संगीत के सहज गुणों से भी जैसे अनायास साक्षात्कार कराया है। राग यमन, बागेष्वरी, भीम पलाषी, तोड़ी, भैरवी आदि के साथ ही शास्त्रीय संगीत की समृद्ध भारतीय परम्परा उनकी संगीतबद्ध रामायण के पदों में हर ओर, हर छोर है। खास बात यह भी है कि उन्होंने इसमें मिश्रित वाद्य यंत्रांे का प्रयोग करते चौपाईयों में निहित संवेदना के भावों को गहरे से जिया है। मसलन बाल काण्ड, अवध काण्ड, सुन्दर काण्ड, उत्तर काण्ड और वनवास काण्ड के अंतर्गत सितार, बासूंरी, स्वरमंडल का बेहद खूबसूरत उपयोग उन्होंने किया है तो लंका काण्ड में युद्ध को रणभेरी और नगाड़ों के वाद से जीवंत किया है। यही कारण है कि रामायण के उनके श्रव्य में औचक ही दृष्य का आस्वाद होता है। वंदनाओं, सीता स्तुति, श्रीरामचन्द्र आरती, रामायण आरती को भजनमाला के अंतर्गत अलग से भी यहां संजोया गया है। जड़त्व को तोड़ते संगीत का नया उजास रचते। रकाब, हारमोनियम, स्वरमंडल, जलतरंग के साथ ही रामायण की इस नयी संगीत सर्जना में अजय प्रसन्ना की बांसूरी की तान भी अलग से ध्यान खींचती है।

मुझे लगता है, दीपक शब्द संवेदना को संगीत का नया आकाष देते स्वयं भी उसमें रचते-बसते हैं। यह है तभी तो उनकी संगीतबद्ध यह रामायण सहज कानों में रस घोलती है। वह कहते हैं, ‘पिछले तीन-चार साल से निंरतर रामायण की संगीत सर्जना में ही लगा हुआ था। हमने प्रतिदिन 4 से 10 घंटे तक इसकी रिकॉर्डिंग की है। इस बात को ध्यान में रखते कि परम्परा में आधुनिकता हावी नहीं हो जाए।’

रामायण के सात काण्डों की दीर्घ संगीत रचना को सुनता हूं तो, अनुभूत भी करता हूं कि उन्होंने इसमें नवीनता के साथ शास्त्रीयता को कहीं अलग-थलग नहीं होने दिया है। राम जन्म, सीता से विवाह, वनवास, लंका दहन, सेतु रचना, रावण वध, राम के अयोध्या आगमन और राम-भरत मिलाप के प्रसंगों का संगीत रूपान्तरण करते दीपक परम्परागत संगीत वाद्यों में आधुनिक वाद्यों का गजब का मिश्रण करते है। यह ऐसा है जिसमें आनंद का वही अपनापा है, जिसकी कि आप-हमको चाह होती है।

बहरहाल, आकाषवाणी जयपुर के एफएम रेडियो पिंकसिटी का शीर्षक संगीत दीपक का ही है तो लोकप्रिय दूरदार्षन धारावाहिक भारतायन की संगीत रचना भी उन्हीं की है। उनके संगीतबद्ध मीरा, सुर, तुलसी के भजनों को तो सदा सुनता ही रहा हू परन्तु मुझे लगता है, रामायण को उनके संगीत ने परवान चढ़ाया है। संगीत शख्स की इस कला को नमन! नमन रामायण। नमन।

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