Friday, March 7, 2014

नीरवता में रोशनी की आहट


Photo : Anurag Sharma
छायांकन में छवि का अंकन भर ही यदि होता है तो इसमें सृजनात्मक कुछ भी नहीं है। छायांकन कला का मूलाधार छवि अंकन में निहित वह दृष्टि है जिसमें दिख  रहे दृश्य को कला की दीठ से जिया जाता है। कैमरा छाया प्रकाश संतुलन के साथ छवि का सौन्दर्यांकन कर सकता है। यथार्थ-प्रकृति रंगों को मनोनुकूल भी उसमें किया ही जा सकता है पर उससे कलाकृति नहीं सिरजी जा सकती। कैमरा यदि कलाकृति निर्मित करता है तो यह वह आंख और उससे देखना, अनुभूत करना है जिसमें दृश्य के समानान्तर संवेदनाओं का सृजन किया जाता है। 
बहरहाल, जवाहर कला केन्द्र में कुछ दिनों पहले अनुराग शर्मा के जयपुर केन्द्रित छाया-चित्रों का आस्वाद करते लगा, छायाचित्र वैसे नहीं थे, जैसे आमतौर पर कैमरे से लिए जाते हैं। धरती नहीं, आसमान से निहारी छवियां। साफ-सुथरी। पुराना जयपुर, नया जयपुर और तेजी से पैर पसारती महानगरीय संस्कृति। महत्वपूर्ण यह कि जो कुछ उन्होंने कैमरे से सिरजा उसमें दूरलघुदृश्यता में सौन्दर्य को ठौड़-ठौड़ जैसे अंवेरा गया है। 
छायाचित्र प्रदर्शनी में तमाम चित्रों के कोण, प्रकाश-छाया अंकन, संयोजन के साथ ही स्थापत्य में निहित बारीकी को अनुराग ने गहरे से जिया है। माने हवामहल, जलमहल, बिड़ला मंदिर, मोतीडूंगरी ही नहीं वल्र्ड ट्रेड पार्क और फ्लाईओवरों की निर्मिती के मर्म को उनके कैमरे ने गहरे से छूआ है। यह सब छायाचित्र तो खैर सौन्दर्य की सीर लिए है ही परन्तु मोतीडूंगरी के परकोटे की दिवारों, बुर्ज का जो अंकन अनुराग ने किया है, वह तो अद्भुत है। छायाचित्र आस्वाद करते लगता है, कैमरे ने पाषाण रेखाओं की लय को पकड़ते अतीत के मौन को सुनते उसे अपनी कला दृष्टि से कैमरे में से बुना है। यह है तभी तो परकोटे का लाईन वर्क और बारिश से भीग-भीग कर पत्थरों में भरी काई का भूरभूरापन मन को जैसे आंदोलित करने लगा। लगा, स्थापत्य में जो कुछ दिखता है उससे परे सधी रेखाएं भी मंडती है और प्रकृति इन रेखाओं में जो रंग घोलती है, उसे कोई कला ही संजो सकती है। सच!  कैमरे से जुड़ी कला ही यह कर सकती है।  मन में औचक खयाल आता है, छायांकन कला अतीत और उसमें घूले प्रकृति रंगों के मौन को एक तरह से रिकाॅर्ड कर फिर से हमें सुना सकती है। माने अतीत को वहां देखा ही नहीं, सुना भी जा सकता है। क्यों नहीं कला विमर्श में छायांकन कला की इस विशिष्टता पेटे ही कहीं कोई बात आगे बढ़े। 
Photo : Anurag Sharma 
बहरहाल, अनुराग की छाया-कला दृष्टि इस रूप में भी मन को लुभाती है कि वहां रात्रि में पसरे सन्नाटे के साथ ही पेड़ों पर पड़ती रोशनी की हरितिमा और दूर तक जाती काली नागिन सी सड़क का खालीपन भी हमसे संवाद करता है। अंधेरे की नीरवता में रोशनी की आहट और सड़क का दूर तक का खालीपन। चैराहों की धातु मूर्तियों की नृत्य छवियांे का मौन सौन्दर्य भी। मुझे लगता है, अनुराग शहरी स्थापत्य की भागती-दौड़ती जिन्दगी के नहीं, मौन और दूर तक पसरे खालीपन के छायाचित्र सौन्दर्य संवाहक हैं। और हां, अपने छायाचित्रों में वह आसमान से पकड़ी दृश्य की अनूठी सौन्दर्य लय तो अंवेरते  ही है साथ ही जो कुछ दिख रहा है, उसमें अतीत, वर्तमान और भविष्य की संभावनाओं से जुड़े भावों को भी जैसे हमसे साझा करते हैं। हवामहल, मोतीडूंगरी के अतीत के साथ ही वर्तमान विकास से जुड़े दृश्य चित्रों के साथ वह बड़ी इमारतों, माॅल्स की निर्माण लय में जैसे भविष्य की आहट बुनते हैं। छायाचित्रों की उनकी सूझ में दिख रही चलचित्र के दृश्यों की मानिंद मन में हलचल करती हममें जैसे बसती है।


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