Friday, April 4, 2014

लीक तोड़ मौलिकता रचते कलाकार

राष्ट्रीय कला कार्यशाला, पटना 

कलाएं विचार परिष्करण की संवाहक है। सोचता हूं, कलाओं की पाण ही तो घुम्मकड़ी परवान चढ़ी है। और हर बार इससे ही नव्यतम कुछ पाने के अनुभव भी पुनर्नवा हुए ही हैं। पिछले सप्ताह एक दिन के लिए पटना में था। संस्कृति विभाग और बिहार ललित कला अकादमी ने वहां राष्ट्रीय कला कार्यशाला आयोजित की थी। महत्वपूर्ण पहल यह भी थी कि देश के तीन कला समीक्षकों को भी आमंत्रण था। कोलकता से अनिरूद्ध चारी थे, लखनऊ से अवधेश मिश्र और जयपुर से यह नाचीज़ था। कलाओं के अन्र्तसंबंधों पर बोलते लगा, कलाकारों में अपने काम के साथ दूसरों के सर्जन की अन्तःप्रक्रियाओं को जानने की गहन जिज्ञासा है। सो चित्रकला के संगीत, नृत्य, नाट्य, वास्तु और मूर्तिकला से जुड़े संबंधों पर संवाद करते जैसे खुद भी उनमें रमा। 


कला कार्यशाला पूर्वाग्रहों से मुक्त करने वाली थी। पहले लगता था, इस तरह के आयोजन सर्जन स्वतंत्रता को बांधते हैं। पर जब कैनवस पर कलाकारों को कुछ करते हुए उसीमें खोया पाया तो यह भी लगा कि बहुतेरी बार चाहकर भी जो स्वतंत्र रूप में कलाकार नहीं कर पाता, इस प्रकार के आयोजन अनुशासन में हो जाता है। अनुशासन अंतर्मन विचारों, संवेदनाओं को पंख ही तो लगाता हैं! यह सही है, इस तरह की कला कार्यशालाओं में बंधन होता है-नियत समय में कलाकृति बनाकर देने का। पर सोचता हूं, समय पर कुछ कर देने की विवशता नहीं हो तो क्या स्वयं इतना लिख पाता! कलाकारों के साथ भी तो यही होता होगा ना कि समय पर कुछ देने की सीमा में वह बहुतेरी बार बहुत कुछ महत्वपूर्ण कर देते हैं। लीक तोड मौलिकता रचते। बल्कि कला कार्यशालाएं कईं बार कुछ नहीं कर पाने के रंज भी मिटाती ही है। 

बहरहाल, कार्यशाला में हैदराबाद की अंजनी रेड्डी ने आकृतिमूलकता में अपनापे को बुना, रंग पट्टिकाओं में युसूफ ने जीवन संदर्भ दिए, विनय शर्मा ने अतीत राग सुनाया, खबरों की कैलीग्राफी में मेघाली गोस्वामी ने रंगों की उत्सवधर्मिता को जिया। मिलनदास, अजीत शील, रहीम मिर्जा, मनोज बच्चन, अमरेश कुमार, शैलेन्द्र कुमार, अर्चना,  रजत घोष आदि सभी के कलाकर्म से रू-ब-रू होते लगा, कैनवस सुहानी दीठ ही तो है! तय कर पाना मुश्किल हो रहा था कि कला परख में क्या सहेजूं, क्या छोड़ दूं। प्रेक्षागृह में जब बोल रहा था तो पता ही नहीं चला, क्या और कैसे बहुत कुछ बोल गया। बाद में मेघाली गोस्वामी ने रागमाला चित्र श्रृंखला के शोध मुजब कुछ पूछा तो समालोचक अवधेश अमन ने भारतीय रागमाला चित्रों की सूक्ष्म सूझ दी। वेदप्रकाश की कला सामयिकता अकुलाहट और अकादमी अध्यक्ष आनंदीप्रसाद बादल की धीर गंभीरता मन में अभी भी बस रही है। पटना से लौट आया हूं, पर मन अभी भी वहां के कलाकारों, कला में ही अटका है।


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