Friday, June 20, 2014

शिव का नृत्यधाम कैलाश-मानसरोवर


यह समय कैलाश-मानसरोवर यात्रा का है। सृष्टि विधान रूप में संगीत और नृत्य के आदिदेव भगवान शिव का नृत्य स्थल। कहते हैं, पहली बार शिव का महानृत्य कैलाश पर्वत पर ही हुआ। और तब से जगत रक्षा के लिए हर सांझ इस पर्वत पर ही होता है शिव का नृत्य। 

कम प्रकाश में नृत्य की कल्पना नहीं की जा सकती फिर भी शिव ने नृत्य के लिए अंधेरे की ओर गमन करती संध्या को ही चुना। पर अंधेरा प्रकाशित किससे होता है? शिव से ही तो! कल्पना करता हूं, कैलास पर रत्नजडि़त सिंहासन पर जगज्जननी उमा विराज रही है। वाग्देवी की वीणा झंकृत हो उठी है। और लो, इंद्र ने मुरली भी बजा दी। विष्णु मृदंग और ब्रह्मा करतल से दे रहे हैं ताल। भगवती रमा गा रही है। चन्द्रमा धारण किए डमरू बजाते शिव का नृत्य प्रारंभ हो गया। चहुं ओर भ्रमण करते तारों के साथ घूमने लगा आकाश।  यही तो है, शिव का तेजोमय कला रूप! तो बताईए, उनके नृत्य में और प्रकाश की क्या दरकार! यूं शिव रोद्र रूप है पर सांध्यनृत्य सौम्य और मनोरम। शिव ताण्डव स्त्रोत में रावण की व्यंजना है, ‘धिमि-धिमि बजते हुए मृदंग के गंभीर मंगल घोष के क्रमानुसार जिनका प्रचण्ड ताण्डव हो रहा है, उन भगवान शंकर की जय हो!’ सोचता हूं, नृत्यनाट्य के मूल स्तम्भ ही तो हैं भगवान शिव। नटराज प्रतिमाओं का बाहुल्य दक्षिण में है। शायद इसीलिए नटराज की परिकल्पना वहां से मानी जाती है। पर शिव नृत्य के इस रूप का प्रथम स्थल तो कैलाश ही है। 

कन्हैयालाल वर्मा की कलाकृति 
यह विडम्बना नहीं तो और क्या है? जिस नटराज रूप का उद्गम कैलाश से है, वह हमारे देश में नहीं परदेश में है। यह सही है, राजनीतिक दृष्टि से तिब्बत कभी चीन का हिस्सा नहीं रहा। परम्पराओं और संस्कृति में तिब्बत भारत से जुड़ा रहा है। नई दिल्ली में 1947 में एफ्रो-एशियाई सम्मेलन में तिब्बत स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर ही आया था। नेहरूजी की भयंकर भूल की परिणति अभी तक देश भोग रहा है। लोहियाजी तो कहते भी रहे, ‘तिब्बत आजाद रहता तो हम अपने कैलाश-मानसरोवर इलाके को, जो कभी हिंदुस्तान का राजकीय हिस्सा था, उसे तिब्बत की रखवाली में रख सकते थे।’ चीन ने दुनिया की छत तिब्बत को तो हड़पा ही, हमारी आस्था पर भी प्रहार करते 1962 में कैलाश-मानसरोवर यात्रा पर रोक भी लगा दी। पर 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी तो विदेश मंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने यात्रा खोलने के लिए पहल की। यात्रा तो खुल गई पर संकटो से सदा ही घिरी भी रही। उम्मीद कर सकते हैं, नई सरकार भगवान शिव के सांध्य नृत्य स्थल कैलाश-मानसरोवर की यात्रा बाधाएं दूर कर इसे हर आम और खास के लिए सुगम करेगी। आखिर हमारी आस्था और संस्कृति की जड़ें कैलाश-मानसरोवर में ही तो है। यह यात्रा नहीं अर्न्‍तयात्रा है। शास्वत। अनवरत! 

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