Friday, June 6, 2014

अनुभूतियों का सौन्दर्यान्वेषण


अंजनी रेड्डी की कलाकृति 
चित्रकला मन की भाषा है। संवेदनाओं से रचा आकाश! अनुभूतियों के गान में वहां स्मृतियां झिलमिलाती है। राजा वर्मा ने पौराणिक, ऐतिहासिक चरित्रों को कभी मन की आंख से अनुभूत किया था। शिव, पार्वती, राम, कृष्ण और दूसरे देवी-देवताओं को जैसा उन्होंने दिखलाया, वही बाद में हमारा सच बन गया। उनसे इतर यदि कहीं कुछ बनता है तो मन विश्वास नहीं करता। तो क्या यह मानें, रवि वर्मा ने देवी-देवताओं को साक्षात् देखा था!
बहरहाल, कलाकार सर्जक है। वह छवियों का संसार ही तो रचता है। यह जब लिख रहा हूं, देश की ख्यातनाम कलाकार अंजनी रेड्डी के चित्र ज़हन में कौंध रहे हैं। नारी संसार का जिस संवेदना से उन्होंने अंकन किया है, वह इधर दुर्लभ प्रायः है। स्मृतियों का भव रचते वह कैनवस पर नारी जीवन को सांगोपांग रूप मंे व्यंजित करती है। वहां स्वप्न है, यथार्थ है, प्रकृति है और है सौन्दर्यनुभूतियों की अनुठी लय। गहरे हरे, काले, पीले, नीले, लाल रंगो में रेखाओं की लय में वह रंगो का छंद रचती है। एक चित्र है जिसमें महिलाएं चैसर खेल रही है, और एक है जिसमें  लड़की तन्मय होकर हारमोनियम बजा रही है। ऐसे ही कुछ और चित्र नहीं, चित्र कोलाज हैं। सौन्दर्य से जुड़ी संवेदना को इनमें वह रंग रेखाओं में जैसे चलायमान करती है। जीवंत! दिन-प्रतिदिन के जीवन के यह एक तरह से दृश्यालेख हैं। कहीं कोई औरत एकान्त में अपने में खोई है तो कहीं कोई सोई हुई भी स्वपन्न में जैसे जीवन को बुन रही है। पर मूल बात है, उनकी दृश्य लय। तमाम नारी पात्रों के चेहरे ऐसे हैं, जैसे हमारे आस-पास से ही चेहरे लिए हुए हैं। ऐसे जिनमें अपनापे की मिठास है। 
रेखाओं में कोमलता के साथ ही गत्यात्मकता का प्रवाह है। रंग जैसे रेखाओं में गहरे से घुले हुए स्मृतियों का राग रच रहे हैं। इसीलिए अंजनीजी के तमाम चित्र भाव भंगिमाओ और दृश्य रूपों का एक तरह से सौन्दर्यान्वेषण है। खास बात यह कि वहां भारतीय लघु चित्रकला है, लोक और आदिवासी कला की छोंक है तो राजस्थानी परिवेश का अपनापा भी है। राजा रवि वर्मा की मानिंद आकृतियों का सुगठित संयोजन वहां है। रूपकों के जरिए वह दृश्य से जुड़ा तमाम परिवेश उद्घाटित करती है। माने कोई चित्र है तो वहां जो कुछ दिख रहा है, वही नहीं बल्कि उसमें निहित पर भी मन जाता है। इसीलिए कहें, चित्र नहीं रंग और रेखाओं में वहां कहानियां, वृतान्त सुने और बांचे जा सकते है। बस ठहरकर देखने भर की देर है। स्मृतियों और अनुभूतियांे की राग का आलाप सुनाई देने लगेगा। कुछ देर और ठहरेंगे तो रंग रेखाओं की लय हममें बसने लगेगी। कहें, अंजनीजी के चित्र रंग और रेखाओं में नारी जीवन का मधुर गान है।


No comments: