Friday, July 4, 2014

रेत का हेत


कलाकृति : सुदर्शन पटनायक 
कलाओं का आधार रस है। चेतना का मूल यह रस ही तो है! तमाम कलाएं इसे ही अपने तई उद्घाटित करती हैं। ओडिसा के सुदर्शन पटनायक रेत से कला की विरल रसानुभूति कराते है। समुद्र तट की रेत से संवेदनाओं का आकाश रचते वह जैसे रेत का हेत बंचाते हैं।

बहुत समय नहीं हुआ, अटलांटिक में विश्व रेत कलाकृति प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था। सुदर्शन पटनायक की ताजमहल से संबद्ध कलाकृति को इसमें सर्वश्रेष्ठ कलाकृति का सम्मान मिला। इन दिनों विश्व मीडिया में उनकी वह कलाकृति ही छाई हुई है। अमेरीकी सहयोगी कलाकार मैथ्यू डीबर्थास के साथ 10 टन रेत से इसे उन्होंने सृजित किया। मूलाधार में दिल के आकार के आवरण में शाहजहां और मुमताज और इस संरचना पर कैमरे की रूपाकृति और छायांकन लैंस से झांकता ताज! रूप की विरल दीठ। रेत से भावों की इस व्यंजना में इतिहास की निधि अंवेरती छायांकन कला के सरोकार हैं तो वह कला दृष्टि भी है जिसमें यथार्थ से बगैर किसी प्रकार की छेड़छाड़ किए दृश्य सौन्दर्य का सर्वथा मौलिक भव रचा जाता है। सुदर्शन की रेत कला की यही विशेषता है। 

पुरी के समुद्र तट पर सुदर्शन कलाकृति सिरजते 
बालू से कलाकृतियां सिरजने वाले सुदर्शन पटनायक इस विधा के देश के पहले कलाकार हैं। मूर्ति के लिए बालू की अस्थाई सरंचना आसान नहीं है। अपने रचे सौन्दर्य की क्षणभंगुरता को जानते हुए भी उन्होंने इसमें अपने को साधा। इसमें रचे और बसे। छायांकन कला की पाण उनकी कलाकृतियां से साझा होते अनुभूत होता है, रेत में जीवनानुभूतियों की व्यापक व्यंजना है उनकी कला। उनके  कलात्मक सौन्दर्य का स्वरूप और उसका सच यही है। दुर्गा का मोहक रूप, गणेश, जगन्नाथ और भी देवी-देवताओं को पुरी के समुद्र तट पर रचते उन्हें बहुतों ने देखा है। पर इधर उनके रूपांकन में प्रकृति के साथ पर्यावरण से जुड़े मुद्दे भी जुड़ गए हैं। 

बहरहाल, सुदर्शन पटनायक रेत रमे कलाकार हैं। पुरी में जन्में। समन्दर ने ही उन्हें रचने की प्रेरणा दी। वह बताते हैं, ‘सात वर्ष का था, तभी अलसुबह उठ समुद्र तट पहुंच जाता। देखता, समन्दर की लहरें आती, बालू बहाकर ले जाती और रेत अपने रूप पल-पल बदलती। मुझे मिट्टी रूप गढ़ने बुला रही है।’ बस फिर क्या था! समुद्र तट उनका कैनवस बन गया, उंगलियां ब्रश। अभी कुछ दिन पहले ही फ्रंास के कान फिल्म फेस्टिवल में सत्यजीत रे की रेत मूरत सिरजी। रे और साथ में मूवी रोल। अंतर्मन संवेदनाओं से एक कलाकार का दूसरी कला के कलाकार को नमन! सुदर्शन ऐसा ही करते हैं, जब कभी कहीं कोई घटना होती है या फिर उनका मन किसी प्रसंग, संदर्भ के लिए व्याकुल होता है-समुद्र तट पर उनकी उंगलियां हरकत करती रेत को गुनती है, इसी में फिर वह अपने को या कहें कलाकृतियों को बुनते है। 

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