Friday, July 18, 2014

रेखाओं में सौंदर्य सर्जना

चित्रकला का आधार रेखांकन है। रेखाओं के जरिए दृश्य का सहज, सरल कहन। इस दीठ से हेब्बार की रेखाओं पर जब भी जाता हूं, पाता हूं चंद रेखाओं, गति का सुरमय व्यंजन वहां है। इधर नाथूलाल वर्मा के रेखांकनों में भी सांगीतिक आस्वाद में रेखाओं की गति को विरल रूप मंे अनुभूत किया है। उनके रेखांकनों से साक्षात् होते लगेगा, रेखाओं में वह अनूठी सौंदर्य सर्जना करते हैं। मूर्तिशिल्प, स्थापत्य, जगहों और वहां के परिवेश, लोकाख्यानों और प्रकृति के अनगिनत रेखांकनों में वर्मा ने स्मृतियों को बुनते उन्हें अपने तईं गहरी सूझ से अंवेरा है। माने एलोरा की गुहा मूर्तियों का अंकन भी है तो उसमें मूल रूप से छेड़छाड़ नहीं करते हुए भी रेखाओं से उन्हें जैसे फिर से जिया गया है। एक रेखांकन में नायिका, चिडि़या और आंख की विरल व्यंजना है। रेखांकन नहीं रूपक। आप चंदेक रेखाओं में पूरी की पूरी कहानी जैसे बांच सकते हैं। और यही क्यों, शिव मूर्तियों का अंकन भी अनूठा है। रेखांकन में शिव के नृत्य को निहारते आप गति का हिस्सा बन जाते हैं। ऐसे ही लोक परिवेश, शांति निकेतन के संथाल जीवन और तमाम दूसरी प्रकृति अनुभूतियों की जो लय रेखाओं में उन्हेांने रची है, वह अंतर्मन संवेदनाओं को जैसे आलोकित करती है।
रेखांकन : नाथुलाल वर्मा 
मुझे लगता है, नाथूलाल वर्मा के रेखांकन परिवेश का  रेखीय संतुलन लिए है। वह अपने रेखांकनों में रूप के प्रत्येक अवयव को घोलते गति का अनूठा संतुलन रचते हैं। इस संतुलन से ही असल में रूप का वह पोषण करते हैं। उनकी स्केच बुक के रेखांकनों के विविध आयाामें में से एक एलोरा के शिव तांडव का है। रेखाओं की विरल दीठ। मगन हो शिव नृत्य कर रहे हैं। हल्की पर गत्यात्मक रेखाओं में ताण्डव का समग्र परिवेश। वह रेखाओं से नृत्य का तेजोमय रूप प्रकट करते हैं। पार्श्व से आते प्रकाश को रेखा दर रेखा से जीवंत करते उन्होंने तिमिर हरती रोशनी का अद्भुत रूप रचा है। छाया-प्रकाश की सर्जना। यह है तभी तो तांडव का उनका उकेरा रेखीय परिवेश मन में घर करता है। ऐसे ही त्रिपुरातंक, बिजोलिया, भोजपुर की शिव प्रतिमा के रेखांकन है। मुझे लगता है, प्रतिमा का रेखीय अंकन उन्होंने  किया है तो मूर्ति की स्थिति के साथ भावों की गति को भी वहां गहरे से छूआ गया है।  नाथूलाल वर्मा के रेखांकनो में गत्यात्मक प्रवाह है। सांगीतिक आस्वाद देता। हिमाचल के प्रकृति दृश्य, शांति निकेतन में संथालों के जीवन से जुड़े चितराम और स्थानों, पशु-पक्षियों के अंकन की उनकी बड़ी विशेषता यही तो है कि उनमें रेखाओं का लयात्मक संयोजन है। लय का मतलब ही है, समाना। एक का दूसरे में। लय गति है, स्थिति नहीं। इसीलिए कहूं, नाथूलालजी की रेखाएं एक दूसरे में समाती गति की संवाहक ही तो है! 

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