Friday, September 12, 2014

पारम्परिकता का मोहक छंद

 एन. के. मिश्रा की कलाकृति अर्धनारीश्वर 
कला में यह वह दौर है जब कैनवस बहुत से स्तरों पर हासिए पर है। न्यू मीडिया के अंतर्गत श्रव्य-दृश्य कहन के साथ संस्थापन का जोर है। यह सही है, हर दौर में प्रयोग और आधुनिकता का आग्रह कला में जरूरी है परन्तु इतना ही सच क्या यह नहीं है कि हम अपनी जड़ों को बिसराकर जो नई जमीन बनाएंगे उसका कोई आधार नहीं होगा! 
पारम्परिक भारतीय कला और योरोपीय कला में यही तो भेद है। वहां माइकल एन्जेलो है तो उसकी मांशपेशियां पर ही जोर है। यहां कृष्ण है तो उसकी बांसूरी भी है, गाय भी है और तमाम दूसरा परिवेश है। कहें भारतीय कला समग्रता का अनुष्ठान है। हमारे यहां के कैनवस का सच यही है। अभी कुछ दिन पहले ही देश के ख्यात चित्रकार एन.के. मिश्रा के चित्रों का आस्वाद कर रहा था। लगा, चित्र ही नहीं दूसरी कलाएं भी वहां है। कलाओं के अन्र्तसंबंधों को भी वहां अनुभूत किया जा सकता है। चित्र आकारों की व्यंजना भर ही नहीं है, वहां संगीत की स्वर लहरियां हैं, नृत्य के भंगिमाएं हैं और नाट्य से जुड़ा कहन का अदीठा मुहावरा भी। सोचता हूं, पारम्परिक चित्रों की बड़ी विशेषता यह भी है कि वहां रंग और रेखाओं का एक तरह से छंद है।  
राजा रवि वर्मा की कलाकृति शिव परिवार 
राजा रवि वर्मा की कला में पौराणिक आख्यानों का आधिक्य है परन्तु यह भी सच है कि रंग-रेखाओं की लय में वह दृश्य संवेदना के मर्म में ले जाते हैं। चित्र किसी पौराणिक चरित्र का भले है परन्तु उस चरित्र से जुड़ी पूरी की कथा वहां ध्वनित होती हममें जैसे बसती है। 
उनके बरते रंग और रेखाओं में पूर्व शैलियों का मिश्रण तो है पर परम्परा की परिधि से परे बहुत से स्तरों पर नवीनता भी है। चित्रों में परिवेश एक नजर में साधारण दिखाई देता है परन्तु गौर करेंगे तो यह भी पाएंगे कि उन्होंने अपने तई इनमें संवेदना के बिम्ब भी गढ़े हैं। 
राजा रवि वर्मा की कलाकृति आदि शंकराचार्य 
राजा रवि वर्मा की भांत ही लखनऊ वाॅश पेंटिंग के कलाकार एन.के. मिश्रा के अर्द्धनारीश्वर चित्र पर जाता हूं तो पाता हूं, शिव के रूप को उन्होंने परम्परागत स्वरूपों से भिन्न रेखाओं की लय में अंवेरा है। रंग भी उन्होंने सर्वथा भिन्न रूप में बरते हैं। नृत्यरत अर्द्धनारीश्वर! नृत्य के अलंकार को उन्होंने रंगो की ओप से जीवंत करते रेखाओं के लालित्य को ही जैसे इसमें रचा है। चित्र देखते औचक नृत्य से जुड़ी संवेदना से हम जुड़ जाते हैं, स्त्री है तो पुरूष है और पुरूष है तो स्त्री है। चित्र जैसे शिव के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप की अपने तई व्याख्या भी करता है। मुझे लगता है, पौराणिक चित्रों का विषय निरूपण लगता सरल है परन्तु जो कुछ वहां दृश्य में अभी भी हम पाते हैं, वह कालजीय है। इसलिए कि चरित्र की व्याख्या भी वहां हो राजा रवि वर्मा, एन.के मिश्रा सरीखे कलाकारों ने की है। 


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