Saturday, February 20, 2010

जड़त्व तोड़ती कथक नृत्यांगना का सम्मान


घरानों की परम्पराओं के बावजूद संगीत और नृत्य परिवर्तनषील है। घराने नृत्य और संगीत की पारम्परिक शास्त्रीयता का पोषण तो करते हैं परन्तु यदि कोई कलाकार घरानों की परम्परा में अपनी ओर से कुछ नहीं जोड़ता है, तो फिर उसकी कोई सार्थकता भी नहीं है। व्यक्तिगत मुझे लगता है संगीत और नृत्य परिवर्तनषील यानी क्षितिज-विहीन हैं। यदि परम्परा मंे वे चलते रहें तो फिर उनमें जड़त्व आ जाता है। इस जड़त्व को वे ही कलाकार तोड़ते हैं जो खुद अपनी ओर से उसमें कुछ जोड़ते हैं। ऐसा जिसमें पारम्परिक कला और भी निखर निखर जाती आनंदानुभूति कराती है। मुझे लगता है, कथक के जयपुर घराने की नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली ऐसी ही कलाकार हैं। इस बार जब सगीत नाटक अकादमी अवार्ड उनहें देने की घोषणा हुई तो लगा कविता की लय को उसका हक दिया गया है। उनकी नृत्य प्रस्तुतियों को बहुतेरी बार देखा है और हर बार यूं भी लगा जैसे वे पहले की ही अपनी प्रस्तुति का फिर से पुनराविष्कार कर रही हैं। परम्परागत कथक में प्रेरणा की तत्कार बेजोड़ है। वें जब नृत्य करती हैं तो घुंघरू ताल का विलक्षण चमत्कार दिखाते हैं और उनके गत और भावों का तो कहना ही क्या! यह जब लिख रहा हूं, जयुपर लिटरेरी फेस्टीवल में अषोक वाजपेयी की पढ़ी, कविता जेहन मेें कौंध रही है,- वह अपने एकान्त को भरती है/अपने शरीर की लय से,/लालित्य से/उसकी आत्मा/उसे अपलक निहारती है...’। प्रेरणा के नृत्य में कोमल कल्पनाओं, सूक्ष्म विचारों, उल्लास, प्रेम, हृदय की पीड़ा आदि मनोभावों के साथ ही दारूण दुख, स्वकीया, परकीया, नदी, समुद्र, त्याग, सन्यास आदि बहुतेरे विषयों के भाव प्रदर्षन उसकी आंख, भौहें, पलकोें और मुस्कान से सदा विषिष्ट अंदाज में जीवन्त होती है। इसमें परम्परा भर नहीं है, खुद उसके नृत्य की रची भाषा की भावाभिव्यक्ति है। गुरू कुंदनलाल गंगानी की दी परम्परा को आगे बढ़ाते प्रेरणा ने दर्षन की गहराईयों में संगीत के भावों को अपनी विषिष्ट अदाओं के संस्कार दिए हैं। वह कहती भी है, ‘मैं नृत्यांगना हूं। नृत्य मेरी भाषा है। नृत्य ने मेरे जीवन का मार्गदर्षन किया है।’सच ही तो है यह संगीत और नृत्य ही तो है जो हमारा मार्गदर्षन करते भीतर के हमारे खालीपन को भरते हैं। इस लिहाज से ताल और लयकारी की गूढ़ता के साथ भावों और कल्पनाओं के सच्चे और सूक्ष्म प्रदर्षन को जीती प्रेरणा का सम्मान परम्परा के जड़त्व को तोड़ती कथक को समृद्ध करती कलाकार का सम्मान नही है!
डेली न्यूज़ में प्रति शुक्रवार को प्रकाशित डॉ राजेश कुमार व्यास का स्तम्भ "कला तट" दिनांक १९-२-२०१०