Friday, February 26, 2010

दृश्य की गति का नयी दीठ से पुनराविष्कार



जीवन मे जो कुछ हो रहा है, उसे हम नंगी आंख से बहुतेरी बार शायद ठीक से देख और समझ नहीं पाते। शायद इसका कारण यह भी है कि चीजें और दृश्य इस तेजी से बदलते हैं कि उनकी गति को हमारी आंख चाह कर भी पकड़ नहीं पाती। वस्तुओं के रूप, टैक्सचर, आकार जैसी चक्षुगम्य लाक्षणिकता के स्थान पर उनकी अनुभूत गति को कैमरा पकड़ सकता है, बशर्तें उसे बरतने वाला कला की संवेदनशील आंख रखता हो। हिमांशु व्यास के छायाचित्रो में कला की बारीकियों को सहज अनुभूत किया जा सकता है। उसके चित्र देखते लगता है, वह दृश्य की प्रतिकृति ही नहीं करता बल्कि उसमें अपने तई संवेदना जोड़ता दिख रहे दृश्य की गति का नयी दीठ से पुनराविष्कार भी करता है। उसके कैमरे से निकले चित्रों में प्रकृति और जीवन के रंग अपने शास्वत स्वरूप में तो हैं परन्तु खुद उसकी आंतरिक संवेदना में वे अपनी पृथक स्वायत्ता लिए भी अलग से लुभाते हैं। मसलन उसका एक बेहद खूबसूरत छायाचित्र है पानी मंे विसर्जित प्रतिमा का। प्रतिमा के बहाने जल में उभरते दूसरे बिम्ब यहां छायाचित्र की कला सर्जना के संवाहक हैं। एक छायाचित्र है जिसमें चिड़िया उड़ रही है। एक गमले से दूसरे गमले में फूदक कर पहुंचती चिड़िया की गति और पाश्र्व की हरितिमा में यहां संवेदनशीलता का जैसे काव्यात्मक सृजन किया गया है। एक कला दूसरी कला को कैसे आलोकित करती है, उसे इस दृश्य में गहरे से समझा जा सकता है।बहरहाल, हिमांशु के संवेदना चक्षु में टूटती इमारत की पानी में पड़ती स्पष्ट परछाई, रात्रि में स्ट्रीट लाईट की रोशनी में साईकिल चलाते साधु का अद्भुत अक्स, श्वेत-श्याम छायाचित्र में बादलों की लुकाछिपी में होले से निकलता सूरज और झोपड़ी की मुंडेर पर इस दृश्य का आस्वाद लेती चिड़िया और बरसात में चलते पथिक के बहाने झरते पानी की संगीत की सुर लहरियां में जैसे दर्शन लोक और जीवन की अद्भुत लय का विस्तार है। मुझे लगता है हिमांशु के छायाचित्रों में अर्थ बहुल ध्वनियां है। ये ध्वनियां कैमरे के उसके एंगल, कोण के साथ ही औचक उत्पन्न ऐसे दृश्य जिसकी पुनरावृति उसी रूप में फिर से संभव नहीं है, में विशिष्ट रूप में सुनी जा सकती है। स्मृति को सघन और उत्कट करते कैमरे से लिए हिमांशु के दृश्य इसी कारण अप्रत्याशित और अद्वितीय रूपों की सर्जना करते हैं। हर कला की अपनी स्वायत्ता होती है और वह समाज निरपेक्ष होती है, हिमांशु का कैमरा इसे और अधिक सघन और संवेदनशील अर्थों में समझाता है। उसके छायाचित्रो को देखकर कला के दूसरी कलाओं से अंतःसबंधों को भी समझा जा सकता है।



प्रति शुक्रवार को प्रकाशित डॉ राजेश कुमार व्यास का स्तम्भ "कला तट" दिनांक २६-२-10

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