Sunday, February 7, 2010

कुछ कविताए

शब्दों के घाव
चुन-चुन कर
फेंक दिए हमने
सभी अक्षर
अंधे कुओं में।
भाषा के चेहरे पर
इसी से लगे हैं
शब्दों के घाव।

शब्द-एक
शब्दों की नहीं होती
कोई अंतिम यात्रा
अलिखित और मौन में भी
शास्वत है
चरैवेति, चरैवेति।


शब्द-दो
नाप लेते हैं
शब्द
अरबों-खरबों
मीलो की दूरियां
पाट देते हैं
मन की
गहरी खुदी खाइयां।
औचक
भौचक करते
सप्रयास न बन सकने वाला
बना देते हैं
जब वे कोई वाक्यांश
अहसास कराने लगते हैं वे
बूझ ली हो जैसे उन्होंने
मन के भीतर की
अनसूलझी
हजारों-हजार पहेलियां।
शब्द सेतु है
जीवन का।

3 comments:

फारूक आफरीदी said...

KAVITAEN ACHCHHI HAIN.

astro-vastu said...

Rajesh Ji,It was really a fantastic experience to meet you here. Badhaaee
Atul Kanak

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

नाप लेते हैं
शब्द
अरबों-खरबों
मीलो की दूरियां
पाट देते हैं
मन की
गहरी खुदी खाइयां।-sahi kha aapne.shabd ki achhi vyakhya ki hai aapne.