Friday, December 3, 2010

जलरंगों में दृश्य यथार्थ की नयी दीठ

दृश्यकला में चित्रकला ही ऐसी है जो आधार और माध्यम की दृष्टि से सर्वाधिक सूक्ष्म है। यथार्थ का अंकन भी उसमें यदि होता है तो वह खाली यथार्थ भर नहीं होता बल्कि सूक्ष्म रूप में उसमें कलाकार अपनी आंतरिक एकता और अनुशासन में नई दृष्टि का विस्तार करते देखे हुए का एक प्रकार से पृनर्सृजन करता है। नागपुर शासकीय चित्रकला महाविद्यालय के आचार्य मारूति सेलके के आग्रह पर इस सोमवार को वहां के विद्यार्थियो ंको जब कला की संवेदना पर संबोधित करना हुआ तो प्रकृति चित्रो के अनंत आकाश को जैसे फिर से जिया। स्थान विशेष और प्रकृति के लैण्डस्केप शायद इसीलिए हर कोई पंसद करता है कि उनमें सौन्दर्य की चाक्षुष दीठ होती है। सच कहूं, यह स्थान विशेष और प्रकृति के नाना रूपों के लैण्डस्केप ही थे, जिन्होंने कला से मेरा पहले पहल रिश्ता कराया। ख्यात-विख्यात कलाकारों के बनाए लैण्डस्केप देखने में बाद में इतना प्रवृत हुआ कि ढूंढ-ढूंढ कर स्थानों के बनाए चित्रों का आस्वाद करने लगा। बहुतेरी बार ऐसा भी हुआ कि कोई लैण्डस्केप देखता, फिर उस स्थान पर जाता। मुझे लगता प्रत्यक्ष जो देखता हूं, उसके परे भी बहुत कुछ ऐसा है जो कलाकार ने अपने चित्र में बनाया है। उसे यथार्थ में हमारी आंख शायद पकड़ नहीं पाती। कलाकार के संवेदना चक्षु ही हमें तब सर्वथा नयी दृष्टि देते है। कला ही यह जो दीठ है, उसी ने बाद में कला के मेरे लेखक को बाहर निकाल, कलाकृतियों पर लिखने की ओर निरंतर प्रवृत किया।

बहरहाल, नागपुर के शासकीय चित्रकला महाविद्यालय में भविष्य के कलाकारों के साथ संवाद के बाद प्रो. मारूति सेलके अपने घर ले गए। वहां उनके बनाए बहुत से चित्रों को देखते औचक दृष्टि उनके बनाए एक लैण्डस्केप पर गयी। जलरंगों में प्रकृति जैसे वहां गा रही थी। मैंने उस चित्र पर जब ज्यादा गौर किया तो बेहद संकोच से वह बोले, ‘ये तो बस ऐसे ही बनाया है।’ मैंने उनके उन चित्रों में बेहद उत्सुकता दिखायी तो वे पूरी की पूरी एक श्रृंखला ले आए। नागपुर के ज्ञात-अज्ञात स्थानों की उनकी इस जलरंग श्रृंखला में प्राच्य स्थलों के साथ ही आधुनिक निर्माण, पेड़-पौधे, तालाब, मंदिर, महल और रोजमर्रा के जीवन को उन्होंने इनमें जैसे जिया है। देखे हुए यथार्थ और उनसे उपजी अनुभूतियों और अंतर्दृष्टि का रंगों और रेखाओं से कागज पर पुनराविष्कार करते वह नागपुर की जैसे पूरी सैर ही करा देते हैं। नागपुर की अंबाझरी झील, शिवन गांव, महल, तेलम खेड़ी, दीक्षाभूमि और प्रकृति के उल्लास को रंगों और आकृतियों के संयोजन में गहरे से उद्घाटित करते सेलके अपने चित्रों में कला का जटिल व्याकरण नहीं रचते बल्कि जल रंगों के सुन्दर लोक में ले जाते हैं। यह ऐसा है जिसमें सघन, शुद्ध और मूल रंगों की उत्सवधर्मिता है तो मौन में निहित ध्वनि को भी इनमें सुनते स्थान विशेष के एकांत को अनुभूत किया जा सकता है। और सबसे बड़ी बात यह भी है कि रेखाओं की सहज वर्तुलता और विषयवस्तु के गठन और संयोजन के बीच के स्थान और अवकाश को भी उन्होंने इन चित्रों में गहरे से पकड़ा है। जल रंगों का उजास तो इनमें हर ओर, हर छोर है ही। सेलके स्थान, काल और पात्र को अपनी कूची में विस्तार देते उन्हें अनूठा रंग सूत्र देते हैं। इन सूत्रों में स्मृतियां, देखी हुई छवियां सर्वथा नये ढंग से उद्घाटित होती हैं। यथार्थ एक प्रकार से नई अर्थवत्ता प्राप्त करता यहां सौन्दर्य का सर्वथा नया आकाश रचता है।

दरअसल सेलके वस्तु, स्थानों और प्रकृति के चाक्षुष स्वभाव को निश्चित करते रंग, रूप, धरातल और उभार में अपने अनुभव और अंतर्मन संवेदना की दृष्टि का एक प्रकार से विस्तार करते हैं। ऐसे में जो कुछ वह देखते रहे हैं, उससे प्राप्त अनुभवों का कला रूपान्तरण मन को भाता है, कुछ कहने को विवश करता भीतर की सौन्दर्य दृष्टि को एक प्रकार से जगाता है। नागपुर के इतिहास, वहां की संस्कृति, रोजमर्रा के जीवन, स्थान विशेष की दृश्यावलियों के जल रंगों के सेलके के भव को अनुभूत करते उन्हें प्रस्तावित करता हूं कि क्यों नहीं इस श्रृंखला की ही एक प्रदर्शनी आयोजित की जाए। इसलिए भी कि बहुत से स्तरो पर वह इन दृश्यावलियों में प्रकाश-छाया प्रभावों के अंतर्गत दृश्य यथार्थ का सर्वथा नया बिम्ब भी रचते हैं। इस बिम्ब में क्षैतिज एवं समरैखिक दृष्टि का अद्भुत सांमजस्य है। जल रंगों के बरतने का उनका गुण तो खैर अनूठा है ही जिसमें देखे हुए को अपने संवेदना चक्षु से वह और अधिक सुन्दर, भावपूर्ण बनाते ऐसा माहौल भी अनायास उत्पन्न करते हैं जिससे रंग देखने वाले से जैसे संवाद करते है। सेलके के जलरंगों की यही वह मौलिकता है, जो उन्हें ओरों से जुदा करती है।
राजस्थान पत्रिका समूह के "डेली न्यूज़" में प्रकाशित
डॉ. राजेश कुमार व्यास का साप्ताहिक स्तम्भ "कला तट" दिनांक 3-12-2010

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