Friday, May 30, 2014

चित्त शिक्षित हो, मन सर्जक


सांस्कृतिक संसाधनों को शिक्षा से जोड़ने के उद्देश्य से कभी देश में संस्कृति मंत्रालय के अधीन सीसीआरटी यानी सांस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की गई थी। अपने तई सांस्कृतिक शिक्षण के लिए प्रशिक्षण की पहल भी एनसीईआरटी के सहयोग से संस्थान ने कुछ समय पहले की परन्तु व्यावहारिक रूप में अपने उद्देश्य में अब तक यह पूरी तरह से विफल ही रही है। इससे बड़ा इसका और उदाहरण क्या होगा कि बहुत से स्तरों पर स्वयं इस संस्थान की पहचान भी अभी तक बन नहीं पाई है।  
बहरहाल, शिक्षण में बड़ी जरूरत इस समय चित्त शिक्षित हो और मन सर्जक बनने की है। हो उलट रहा है। शिक्षण संस्थान रोजगार की होड़ जगा रहे हैं। सांस्कृतिक मूल्य वहां दरकिनार है। संस्कारों से जुड़ी सोच वहां कहीं नहीं है। मानवीयता का पाठ जैसे वहां सिरे से गायब कर दिया गया है। इसीलिए तो सहजता, अपनापे के भावों का शिक्षण में कोई मोल नहीं है। शिक्षण माने ऐसा रोबोट तैयार करना जो प्रौद्योगिकी से जुड़ा भौतिक विकास जुटाए। दीर्घकाल में यह प्रवृति मानवीय विकास विरोधी ही है। सोचिए जब संवेदना ही नहीं होगी तो जीवन में रंग कहां से आएंगे! 
इस समय जो संस्कृति है वह बाजार के तीव्र परिवर्तनों से प्रभावित है। क्षणिक। शास्वत वह है जो प्रकृति प्रदत्त है। प्रकृति माने हमारी धरोहर। हमारी सांस्कृतिक विरासत। इसलिए शिक्षण में आज इसीकी सबसे बडी आवश्यकता है। भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम जीवंत संस्कृतियों में से एक इसीलिए है कि वहां मानव मूल्यों पर जोर है। पर शिक्षण में अभी यह गौण है। शिक्षण में संस्कृति हो पर वह पूर्ववर्ती कलाकारों, कला सिद्धान्तों ही केन्द्रित नहीं हो। वह संस्कृति से जुड़े विषयों पर छात्रवृत्ति प्रदान करने वाली नहीं हो। पर सांस्कृतिक संस्थानों का इस समय का सच यही है। सीसीआरटी से या संस्कृति मंत्रालय से कोई पूछेगा तो तपाक से जवाब मिलेगा फलां वर्ष में सांस्कृतिक जागरूकता के लिए हमने इतनों को स्काॅलरशिप दी, इतनों को अनुदान दिया। इससे संस्कृति के कौनसे संस्कार मिलने वाले हैं या कहें अब तक मिले हैं।
कला या संस्कृति शिक्षा की व्यापकता इस बात में नही ंहै कि विद्यार्थी पूर्ववर्ती कलाकारों, सांस्कृतिक धरोहर के बारे में अध्ययन करे। इसमें ंहै कि शिक्षण संस्थान में  मौलिक दृष्टि का विकास हो। यह विद्यार्थी में अपने देश, संस्कृति के इतिहास के प्रति गौरव भाव जगाने से संभव है। अनुभवों की सीर इसमें मदद कर सकती है। संस्कृति की सोच से जुड़े लेखकों, कला मर्मज्ञों के अनुभव आधारित ज्ञान का प्रसार यह संभव कर सकता है। यह कठिन नहीं है। सीसीआरटी  जैसे संस्थान इसकी पहल सकते हैं। पहली बार पूर्ण बहुमत से किसी दल की सरकार बनी है। ‘चित्त शिक्षित हो, मन सर्जक’ की उम्मीद तो उससे की ही जा सकती है।

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