Monday, August 6, 2012

मोहन वीणा की सौन्दर्य रस सृष्टि



वीणा भारतीय संस्कृति का संवाहक वाद्य है। बाहर और भीतर सौन्दर्य से परिपूर्ण। वीणा का अर्थ ही है कल्याणी, शुभता, उत्कृष्टता और उदात्तता। नटराज षिव के विष्व नृत्य में सरस्वती वीणा बजाती है। भोले स्वयं भी तो वीणाधर है। दक्षिणामूर्ति। वैणिकों के राजा। षिव जब तांडव करते हैं तो पार्वती लास्य करती है। वह श्रेष्ठ नर्तकी ही नहीं वीणा वादिनी भी है। रामायण के सुंदर कांड में नौ तारों की विपंची वीणा का उल्लेख है। यह वीणा ही है जिसमें सूक्ष्म और जटिल ध्वनियों के जरिये स्वर का परिस्कार होता है। वादन में अध्यात्म के साथ सौन्दर्य रस की अनुभूति करनी हो तो वीणा सुनें। सुनेंगे तो लगेगा मन भी तरंगायित हो मौन में गाने लगा है।
बहरहाल, पिछले दिनों जवाहर कला केन्द्र में पंडित विष्वमोहन भट्ट की वीणा को सुना। सुना पहले भी है परन्तु इस बार न जाने क्यों सुना तो लगा उसे गुनूं। सो गुना। लगा सप्तकों में वह सुनने के जिस रस का सर्जन करते हैं, उसमें मन उल्लसित होता है। विष्वमोहन जो वीणा बजाते हैं उसका उल्लेख वीणा के इतिहास में कहीं नहीं मिलता। उसे उन्होंने अपने तई आविष्कृत किया है। हवाईयन गिटार में कुछ और तार जोड़ वीणा में उसे रूपान्तरित कर उन्होंने उसमें भारतीय रस की सृष्टि की। नाम दिया मोहन वीणा। अपने नाम के साथ मिला उन्होंने इस वाद्य को पारम्परिक भारतीय शास्त्रीय रागों के माधुर्य से जोड़ विष्वजनीन किया। मोहन वीणा गिटार का संषोधित शास्त्रीय रूप है। 
विष्वमोहन भट्ट ने संगीत की षिक्षा पं. रविषंकर से ग्रहण की। इसीलिये शास्त्रीय रागों की उनकी समझ गहरी है। रागों के मूल को बचाते वह समयानुरूप उनमें सुनने के तमाम रसों को मिलाते रहे हैं। जवाहर कला केन्द्र में मोहन वीणा के तारों पर उनकी उंगलियां मिंया मल्हार पर बज रही थी परन्तु झाला, विलम्बित में वह सुनने के अदभुत रस की ही जैसे वृष्टि कर रहे थे। मिंया मल्हार वर्षा ऋ़तु की राग है। वर्षा के मौसम में यह सर्वकालिक हो जाती है। पं. विष्वमोहन भट्ट ने अपनी वीणा में इस राग में बंद सभागार में वर्षा बूंदों से भिगने की अनुभूति करायी तो वर्षा जल के साथ बहती हवा में पत्तों की सरसराहट, कोयल, मोर, पपैये बोलने की अनुगूंज भी अनायास करायी। उनके वादन की बड़ी विषेषता यह भी है कि वह वीणा के तारों पर माधुर्य की बढ़त करते हैं। माने राग के तीव्रतम स्वरों में वह तारों को छेड़ उनके नैरन्तर्य का गजब का निभाव करते हैं। यही कारण है कि उनकी वीणा जब माधुर्य के चर्म पर होती है तो उसका असर वह तारों के दबाव से देर तक कराते हैं। उनके साथ बनारस के पंडित रामकुमार मिश्र ने तबले की भी अद्भुत संगत की। वीणा के तार जहां मंद पड़ते वहां तबले की उनकी थाप राग की समग्रता में अपने होने को गहरे से अनुभूत कराती। मुझे लगता है, पंडित विष्वमोहन भट्ट ने पाष्चात्य वाद्य गिटार का मोहन वीणा में रूपान्तरण कर उसे शास्त्रीय वाद्य जरूर बना दिया है परन्तु इसमंे शास्त्रीय रागों के माधुर्य में बहुतेरी बार खटका भी होता है। गिटार के तारों की बोझिल झनझनाहट राग माधुर्य में बाधा जो उत्पन्न करती है। 
बहरहाल, यह वाद्य संगीत ही है जो शब्दों के परे नाद की शुद्धता के जग में ले जाता है। वस्तु और व्यक्ति के बीच की संधी को विलिन करते हुए। सच! वीणा आंतरिक भावों, मन के उल्लास, उमंग की अनुभूतियों को संगीतात्मक ध्वनि लय तथा बोलों से प्रकट करने वाला उपकरण है। मोहन वीणा विष्वमोहन भट्ट का वह सर्जन है जिसे सुनते शास्त्रों में उल्लेखित विचित्र वीणा की अनुभूति भी अनायास होती है। जवाहर कला केन्द्र में हालंाकि पंडितजी ने उस्ताद गाजीखां मांगणियार और साथी कलाकारों के साथ अपनी वीणा से लोक सुर भी बिखेरे, सस्ते संगीत का भी कथित रस बिखेरा परन्तु उसमें वह बात कहां जो राग मिंया मल्हार में थी!


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